chini bhai summary in hindi
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BRILLIANT QUESTION...............,
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मुझे चीनियों में पहचान कर स्मरण रखने योग्य विभिन्नता कम मिलती है। कुछ समतल मुख एक ही साँचे में ढले से जान पड़ते हैं और उनकी एकरसता दूर करने वाली, वस्त्र पर पड़ी हुई सिकुड़न जैसी नाक की गठन में भी विशेष अंतर नहीं दिखाई देता है। कुछ तिरछी अधखुली और विरल भूरी वरुणों की आँखों की तरल रेखाकृति देख कर भ्रांति होती है कि वे सब एक नाप के अनुसार किसी तेज धार से चीर कर बनाई गई हैं। प्राकृतिक पीतवर्ण धूप के चरणचिह्नों पर पड़े हुए धूल के आवरण के कारण कुछ ललछौहे सूखे पत्ते की समानता है जो इसे लेता है। आकार, प्रकार, वेशभूषा सब मिल कर इन दूर देशवासियों को यंत्रवत पुतलों की भूमिका दे देते हैं, इसी से कई बार देखने पर भी एक फेरी वाले चीनी को दूसरे से भिन्न कर के पहचानना कठिन है।
पर आज उन मुखों की वनरूप समति में मुझे एक प्रमुख गुरु नीलिमामयी दृष्टि के साथ स्मरण आता है जिसका मौन स्पष्टिमा कहती है - हम कार्बन की कापियाँ नहीं हैं। हमारी भी एक कहानी है। यदि जीवन की वर्णमाला के संबंध में आपकी आँखें निरक्षर नहीं हैं तो आप पढ़ रहे हैं न! कई साल पहले की बात है मैं ताँगे से उतर कर भीतर आ रहा था कि भूरे कपड़े का गट्ठर पहनना कंधे के सहारे पीठ पर लटकाए हुए और दाहिने हाथ में लोहे का गज घुमाता हुआ चीनी फेरी वाला फाटक के बाहर आता हुआ दिखा। संभवत: मेरा घर को बंद पाकर वह लौटा जा रहा था। 'कुछ लेगा मेमोरियल' - दुर्भाग्य का हिट चीनी। उसे क्या पता कि यह संबोधन मेरे मन में रोश की सबसे तुंग तुरंग उठा देता है। मइया, माता-पिता, जीजी, दिदिया, बिटिया आदि न जाने कितने संबोधनों से मेरा परिचय है और सब मुझे प्रिय हैं, पर यह विवादास्पद संबोधन मानो सारा परिचय छीन कर मुझे गाउन में खड़ा कर देता है। इस संबोधन के उपरांत मेरे पास सेust तक न लौटना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है।
मैं अवज्ञा से उत्तर दिया- 'मैं विदेशी - फ़ॉरेन - नहीं ख़रीदती। '' हम फ़ॉरेन हैं? हम तो चाईना से आता है 'कहने वाले के कंठ में सरल विस्मय के साथ उपेक्षा की चोटों से उत्पन्न अंक भी था। इस बार हकार, उत्तर देनेवाले को ठीक से देखने की इच्छा हुई। धूल से मटमैले सफ़ेद किरमिच के जूते में छोटे पैर छिपाए, और पैजामे का सम्मिश्रित परिणाम जैसे पैजामे और कुरते और कोट की एकता के आधार पर सिला कोट पहने, उधड़े किनारों से पुरानेपन की घोषणा करते हुए हैट से आधा माथा ढके, दाढ़ी - दाढ़ी - मूंछ विहीन दुबली नाटी जो मूर्ति खड़ी थी वह तो शाश्वत चीनी है। उसे सबसे अलग कर के देखने का प्रश्न जीवन में पहली बार उठा।
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