Hindi, asked by shruti9526, 10 months ago

chintpurni ki yatra ka varnan ​


shruti9526: its urgent

Answers

Answered by vansh921
1

Explanation:

चिंतपूर्णी धाम हिमाचल प्रदेश मे स्थित है। यह स्थान हिंदुओं के प्रमुख धार्मिक स्थलो में से एक है। यह 51 शक्ति पीठो मे से एक है। यहां पर माता सती के चरण गिर थे। इस स्थान पर प्रकृति का सुंदर नजारा देखने को मिल जाता है। यात्रा मार्ग में काफी सारे मनमोहक दृश्य यात्रियो का मन मोह लेते हैं और उनपर एक अमिट छाप छोड़ देते हैं। यहां पर आकर माता के भक्तों को आध्यात्मिक आंनद की प्राप्ति होती है।दूर्गा सप्‍तशती और देवी महात्यमय के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच में सौ वर्षों तक युद्ध चला था जिसमें असुरो की विजय हुई। असुरो का राजा महिसासुर स्वर्ग का राजा बन गया और देवता सामान्य मनुष्यों कि भांति धरती पर विचरन करने लगे। देवताओं के ऊपर असुरों द्वारा काफी अत्याचार किया गया। देवताओं ने इस विषय पर आपस में विचार किया और इस कष्‍ट के निवारण के लिए वह भगवान विष्णु के पास गये। भगवान विष्णु ने उन्हें देवी की आराधना करने को कहा। तब‍ देवताओं ने उनसे पूछा कि वो कौन देवी हैं जो हमारे कष्टो का निवारण करेंगी। इसी योजना के फलस्वरूप त्रिदेवो ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों के अंदर से एक दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ जो देखते ही देखते एक स्त्री के रूप में परिवर्तित हो गया। इस देवी को सभी देवी-देवताओं ने कुछ-न-कुछ भेट स्वरूप प्रदान किया। भगवान शंकर ने सिंह, भगवान विष्णु ने कमल, इंद्र ने घंटा, समुंद्र ने कभी न मैली होने वाली माला प्रदान की। इसके बाद सभी देवताओं ने देवी की आराधना की ताकि देवी प्रसन्न हो और उनके कष्टो का निवारण हो सके। और हुआ भी ऐसा ही। देवी ने प्रसन्न होकर देवताओं को वरदान दे दिया और कहा मैं तुम्हारी रक्षा अवश्य करूंगी। इसी के फलस्वरूप देवी ने महिषासुर के साथ युद्ध प्रारंभ कर दिया। जिसमें देवी की विजय हुई और तभी से देवी का नाम महिषासुर मर्दनी पड़ गया।फरवरी के मध्य से अप्रैल के मध्य तक मौसम सुहाना रहता है। अप्रैल के मध्य से गर्मियां शुरू हो जाती है। गर्मियों के समय में दिन का मौसम काफी गर्म हो जाता है। रात्रि के समय का मौसम हल्का ठंड़ा होता है। जून से सितंबर तक यहां पर बारिश होती है। अक्टूबर से नवंबर के समय में दिन तो गर्म रहता है जबकि सुबह और रात ठंडी होती है। दिसंबर से जनवरी के माह में यहां पर काफी ठंड होती है और यहां का तापमान माईनस 5 डिग्री तक पहुंच जाता है। चिंतपूर्णी जाने का उपयुक्त समय फरवरी से अप्रैल तक का है। इन दिनो यहां का मौसम सुहाना होता है।

चिंतपूर्णी गांव जिला ऊना हिमाचल प्रदेश राज्य में स्थित है। चिंतपूर्णी मंदिर सोला सिग्ही श्रेणी की पहाड़ी पर स्थित है। भरवाई गांव जो होशियारपुर-धर्मशिला रोड पर स्थित है वहा से चिंतपूर्णी 3 कि॰मी॰ की दूरी पर है। यह रोड राज्य मार्ग से जुड़ा हुआ है। पर्यटक अपने निजी वाहनो से चिंतपूर्णी बस स्टैण्ड तक जा सकते हैं। बस स्टैण्ड चिंतपूर्णी मंदिर से 1.5 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। चढाई का आधा रास्ता सीधा है और उसके बाद का रास्ता सीढीदार है।

गर्मी के समय में मंदिर के खुलने का समय सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक है और सर्दियों में सुबह 5 बजे से रात्रि 10 बजे तक का है। दोपहर 12 बजे से 12.30 तक भोग लगाया जाता है और 7.30 से 8.30 तक सांय आरती होती है। दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु माता के लिए भोग के रूप में सूजी का हलवा, लड्डू बर्फी, खीर, बतासा, नारियल आदि लाते हैं। कुछ श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी हो जाने पर ध्वज और लाल चूनरी माता को भेट स्वरूप प्रदान करते हैं। चढाई के रास्ते में काफी सारी दूकाने है जहां से ही श्रद्धालु माता को चढाने का समान खरीदते हैं। दर्शनो से पहले प्रत्येक पर्यटक को हाथ साफ करने पड़ते हैं और उन्हें अपने सर पर रूमाल या कपड़ा ढकना पड़ता है। मंदिर के मुख्य द्वार पर प्रवेश करते ही सीधे हाथ पर आपको एक पत्थर दिखाई देगा। यह पत्थर माईदास का है। यही वह स्थान है जहां पर माता ने भक्त माईदास को दर्शन दिये थे। भवन के मध्य में माता की गोल आकार की पिण्डी है। जिसके दर्शन भक्त कतारबद्ध होकर करते हैं। श्रद्धालु मंदिर की परिक्रमा करते हैं। माता के भक्त मंदिर के अंदर निरंतर भजन कीर्तन करते रहते हैं। इन भजनो को सुनकर मंदिर में आने वाले भक्तो को दिव्य आंनद की प्राप्ति होती है और कुछ पलो के लिए वह सब कुछ भूल कर अपने को देवी को समर्पित कर देते हैं। मंदिर के साथ ही में वट का वृक्ष है जहां पर श्रद्धालु कच्ची मोली अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए बांधते हैं। आगे पश्चिम की और बढने पर बड़ का वृक्ष है जिसके अंदर भैरों और गणेश के दर्शन होते हैं। मंदिर का मुख्य द्वार पर सोने की परत चढी हुई है। इस मुख्य द्वार का प्रयोग नवरात्रि के समय में किया जाता है। यदि मौसम साफ हो तो आप यहां से धौलाधर पर्वत श्रेणी को देख सकते हैं। मंदिर की सीढियों से उतरते वक्त उत्तर दिशा में पानी का तालाब है। पंड़ित माईदास की समाधि भी तालाब के पश्चिम दिशा की ओर है। पंड़ित माईदास द्वारा ही माता के इस पावन धाम की खोज की गई थी।

Similar questions