Hindi, asked by Anonymous, 4 months ago

chitrgupt kaun hai
ch... Bholaram ka Jeev ​

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Answered by Anonymous
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चित्रगुप्त एक प्रमुख हिन्दू देवता हैं। वेदों और पुराणों के अनुसार धर्मराज श्री चित्रगुप्त जी अपने दरबार में मनुष्यों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा करके न्याय करने वाले बताए गये हैं। भगवान चित्रगुप्त जी भारत[आर्यावर्त] के कायस्थ कुल चित्रवंश के जनक देवता हैं।

ऐसा है स्वरूप

भगवान चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात है। ये कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलता है। कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विधान है। यमराज और चित्रगुप्त की पूजा एवं उनसे अपने बुरे कर्मों के लिए क्षमा मांगने से नरक का फल भोगना नहीं पड़ता है। इस संदर्भ में एक कथा यहां उल्लेखनीय है।

मंत्री श्री धर्मराजस्य चित्रगुप्त: शुभंकर:।

पायान्मां सर्वपापेभ्य: शरणागत वत्सल:।।

चैत्र एवं कार्तिक मास में अवश्य पढ़ें भगवान चित्रगुप्त की यह कथा...

एक बार युधिष्ठिरजी भीष्मजी से बोले- हे पितामह! आपकी कृपा से मैंने धर्मशास्त्र सुने, परंतु यम द्वितीया का क्या पुण्य है? क्या फल है? यह मैं सुनना चाहता हूं। आप कृपा करके मुझे विस्तारपूर्वक कहिए।

भीष्मजी बोले- तूने अच्छी बात पूछी। मैं उस उत्तम व्रत को विस्तारपूर्वक बताता हूं। कार्तिक मास के उजले और चैत्र के अंधेरे की पक्ष जो द्वितीया होती है, वह यम द्वितीया कहलाती है।

युधिष्ठिरजी बोले- उस कार्तिक के उजले पक्ष की द्वितीया में किसका पूजन करना चाहिए और चैत्र महीने में यह व्रत कैसे हो? इसमें किसका पूजन करें?

भीष्मजी बोले- हे युधिष्ठिर! पुराण संबंधी कथा कहता हूं। इसमें संशय नहीं कि इस कथा को सुनकर प्राणी सब पापों से छूट जाता है। सतयुग में नारायण भगवान से, जिनकी नाभि में कमल है, उससे 4 मुंह वाले ब्रह्माजी उत्पन्न हुए जिनसे वेदवेत्ता भगवान ने चारों वेद कहे।

नारायण बोले- हे ब्रह्माजी! आप सबकी तुरीय अवस्था, रूप और योगियों की गति हो, मेरी आज्ञा से संपूर्ण जगत को शीघ्र रचो।

हरि के ऐसे वचन सुनकर हर्ष से प्रफुल्लित हुए ब्रह्माजी ने मुख से ब्राह्मणों को, बाहुओं से क्षत्रियों को, जंघाओं से वैश्यों को और पैरों से शूद्रों को उत्पन्न किया। उनके पीछे देव, गंधर्व, दानव, राक्षस, सर्प, नाग, जल के जीव, स्थल के जीव, नदी, पर्वत और वृक्ष आदि को पैदा कर मनुजी को पैदा किया। इनके बाद दक्ष प्रजापतिजी को पैदा किया और तब उनसे आगे और सृष्टि उत्पन्न करने को कहा। दक्ष प्रजापतिजी से 60 कन्याएं उत्पन्न हुईं जिनमें से 10 धर्मराज को, 13 कश्यप को और 27 चन्द्रमा को दीं।

कश्यपजी से देव, दानव, राक्षस इनके सिवाय और भी गंधर्व, पिशाच, गो और पक्षियों की जातियां पैदा हुईं। धर्मराज को धर्म प्रधान जानकर सबके पितामह ब्रह्माजी ने उन्हें सब लोकों का अधिकार दिया और धर्मराज से कहा कि तुम आलस्य त्यागकर काम करो। जीवों ने जैसे-जैसे शुभ व अशुभ कर्म किए हैं, उसी प्रकार न्यायपूर्वक वेद शास्त्र में कही विधि के अनुसार कर्ता को कर्म का फल दो और सदा मेरी आज्ञा का पालन करो।

ब्रह्माजी की आज्ञा सुनकर बुद्धिमान धर्मराज ने हाथ जोड़कर सबके परम-पूज्य ब्रह्माजी को कहा- हे प्रभो! मैं आपका सेवक निवेदन करता हूं कि इस सारे जगत के कर्मों का विभागपूर्वक फल देने की जो आपने मुझे आज्ञा दी है, वह एक महान कर्म है। आपकी आज्ञा शिरोधार्य कर मैं यह काम करूंगा जिससे कि कर्ताओं को फल मिलेगा, परंतु पूरी सृष्टि में जीव और उनके देह भी अनंत हैं। देशकाल ज्ञात-अज्ञात आदि भेदों से कर्म भी अनंत हैं। उनमें कर्ता ने कितने किए, कितने भोगे, कितने शेष हैं और कैसा उनका भोग है तथा इन कर्मों के भी मुख्य व गौण भेद से अनेक हो जाते हैं एवं कर्ता ने कैसे किया, स्वयं किया या दूसरे की प्रेरणा से किया आदि कर्म चक्र महागहन हैं। अत: मैं अकेला किस प्रकार इस भार को उठा सकूंगा? इसलिए मुझे कोई ऐसा सहायक दीजिए, जो धार्मिक, न्यायी, बुद्धिमान, शीघ्रकारी, लेख कर्म में विज्ञ, चमत्कारी, तपस्वी, ब्रह्मनिष्ठ और वेद शास्त्र का ज्ञाता हो।

धर्मराज के इस प्रकार प्रार्थनापूर्वक किए हुए कथन को विधाता सत्य जान मन में प्रसन्न हुए और यमराज का मनोरथ पूर्ण करने की चिंता करने लगे कि उक्त सब गुणों वाला ज्ञानी लेखक पुरुष होना चाहिए। उसके बिना धर्मराज का मनोरथ पूर्ण न होगा।

तब ब्रह्माजी ने कहा- हे धर्मराज! तुम्हारे अधिकार में मैं सहायता करूंगा।

इतना कह ब्रह्माजी ध्यानमग्न हो गए। उसी अवस्था में उन्होंने 1,000 वर्ष तक तपस्या की। जब समाधि खुली तब अपने सामने श्याम रंग, कमल नयन, शंख की-सी गर्दन, गूढ़ सिर, चन्द्रमा के समान मुख वाले, कलम-दवात और पानी हाथ में लिए हुए, महाबुद्धि, देवताओं का मान बढ़ाने वाला, धर्माधर्म के विचार में महाप्रवीण लेखक, कर्म में महाचतुर पुरुष को देख उससे पूछा कि तू कौन है?

तब उसने कहा- हे प्रभो! मैं माता-पिता को तो नहीं जानता किंतु आपके शरीर से प्रकट हुआ हूं इसलिए मेरा नामकरण कीजिए और कहिए कि मैं क्या करूं?

ब्रह्माजी ने उस पुरुष के वचन सुन अपने हृदय से उत्पन्न हुए उस पुरुष को हंसकर कहा- तू मेरी काया से प्रकट हुआ है इससे मेरी काया में तुम्हारी स्थिति है इसलिए तुम्हारा नाम कायस्थ चित्रगुप्त है। धर्मराज के पुर में प्राणियों के शुभाशुभ कर्म लिखने में उसका तू सखा बने इसलिए तेरी उत्पत्ति हुई है।

ब्रह्माजी ने चित्रगुप्त से यह कहकर धर्मराज से कहा- हे धर्मराज! यह उत्तम लेखक तुझको मैंने दिया है, जो संसार में सब कर्मसूत्र की मर्यादा पालने के लिए है। इतना कहकर ब्रह्माजी अंतर्ध्यान हो गए।

❤Sweetheart❤

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Answered by OyeeKanak
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Answer:

धर्मराज श्री चित्रगुप्त जी अपने दरबार में मनुष्यों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा करके न्याय करने वाले बताए गये हैं।

mood off kyun??:(

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