chitthiyon ki Anokhi Duniya Ka Saransh
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लेखक ‘पत्र’ की महत्ता बताते हैं की आज का युग वैज्ञानिक युग है। मनुष्य के पास अनेक संचार के साधन हैं फिर भी मनुष्य पत्रों का सहारा जरूर लेता है। वे कहते हैं इनके नाम भी भाषा के अनुसार अलग-अलग हैं। तेलगू में उत्तरम, कन्नड़ में कागद, संस्कृत में पत्र, उर्दू में खत, तमिल में कडिद कहा जाता है। आज भी कई लोग अपने पुरखों के पत्र सहेजकर रखें हैं। हमारे सैनिक अपने घर वालों के पत्रों का इंतजार बड़ी बेसब्री से करते हैं।
उन्होंने यह बताते हुए कहा है कि आज भी सिर्फ भारत में प्रतिदिन साढ़े चार करोड़ पत्र डाक में डाले जाते हैं। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी पत्र के महत्त्व को माना है। लेखक कहते हैं कि २०वीं शताब्दी में पत्र केवल संचार का साधन ही नहीं अपितु एक कला मानी गई है। इसे पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया तथा कई पत्र लेखन प्रतियोगिताएँ आयोजित की गई। लेखक का मानना है इस संसार में कोई ऐसा मनुष्य नहीं होगा जिसने कभी किसी को पत्र न लिखा हो।
पत्र सिर्फ एक संचार माध्यम ही नहीं हैं, ये मार्गदर्शक की भूमिका भी निभाते हैं। मोबाइल से प्राप्त एसमएस तो लोग मिटा देते हैं परन्तु पत्र हमेशा सहेज कर रखते हैं। आज भी संग्रहालय में महान हस्तियों के पत्र शोभा बने हुए हैं। महात्मा गांधी के पास पूरे विश्व से पत्र आते थे और वे उनका जवाब तुरंत लिख देते थे। ‘रवीन्द्रनाथ टैगोर’ और ‘महात्मा गांधी’ के पत्र व्यवहार को “महात्मा और कवि” के शीर्षक से प्रकाशित किया गया है।
भारत में पत्र व्यवहार की परम्परा बहुत पुरानी है। सरकारी की अपेक्षा घरेलु पत्र मुख्य भूमिका निभाते हैं क्योकि ये आम लोगो को जोड़ने का काम करते हैं। चाहे गरीब हो या अमीर सभी को अपने प्रियजनों से प्राप्त पत्र का इन्तजार रहता है। गरीब बस्ती में तो मनीऑर्डर लेकर आने वाले डाकिए को लोग देवता समझते हैं। अंत में वे कहते हैं कि अत्यधिक संचार साधनों के होने के बावजूद भी पत्रों की अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका है।