Hindi, asked by satyamkumarOBC, 3 months ago

Class 10 क्षितिज पाठ एक मे
उद्यौ कौन थे।​

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Vikramjeeth: jaisalmer se hun ji
Anonymous: pali se
Vikramjeeth: nhi hum jaiselmer se hai
Anonymous: ok byy I am teaching
Anonymous: nahi me pali se
Vikramjeeth: teaching yaa learning
Vikramjeeth: sis
satyamkumarOBC: ☺☺☺☺
Anonymous: teaching
Anonymous: learning toh thodi der baad me karti hun

Answers

Answered by Anonymous
5

Answer:

श्री कृष्ण के बड़े भाई उद्धव


Anonymous: haa muje yesterday bolna chahiye tha tune toh comments ki jadi lags di bhaiyu
Anonymous: sorry bhaiyu wrong answer dene ke liye
satyamkumarOBC: ok
satyamkumarOBC: oi nhi
satyamkumarOBC: koi nai
Anonymous: but mene sahi diua tha bus mene pura explain nahi kara ye hi problem ho gaya hai n
Anonymous: hii bro learning ho gayi kiya tumhari
Vikramjeeth: Hello
Anonymous: I don't want to talk to you
Vikramjeeth: okk
Answered by Vikramjeeth
7

उद्धव श्री कृष्ण के अभिन्न मित्र थे l उद्धव वह व्यक्ति थे जो संसार में ज्ञान को ही सर्वश्रेष्ठ मानते थे l उन्हें प्रेम से कोई लगाव नहीं था l तो उन्हें सबक सिखाने श्री कृष्ण ने कहां की

" हे उद्धव गोपियां हमेशा कन्हैया कन्हैया जब्ती रहती हैं l वे कुछ ना खाती है ना ही पीती हैं वह हर बार मेरा ही नाम जपती रहती है क्या तुम गोपियों को कह आओगे कि अब श्री कृष्ण अब राजा है और गोपियां उनकी प्रजा है तो वह बस प्रजा की बात मानेंगे l उनसे कह देना कि मैं उनके पास अब नहीं आ पाऊंगा l "

तो जानते ही हो कि उद्धव श्री कृष्ण के अभिन्न मित्र है तो वह मित्र की बात टाल तो नहीं सकते हैं l तो उद्धव वहां चले गए l और जब वह द्वारका श्री कृष्ण जी के पास आए तो वह तुम बहुत रोते रोते आए l तुम्हें पता है क्यों वह रोते-रोते द्वारका आए l इस पूरे दोहे में तुम्हारा उत्तर छिपा हुआ है l उस ज्ञानी उद्धव को प्रेमी गोपियों ने परास्त कर दिया l

तो इससे हमें क्या सीख मिलती है कि प्रेम सबसे बड़ा चीज है ज्ञान से भी इस दुनिया में l

अब चलो आते हैं दोहे पर:-

यह दोहा जो है यह सूरदास जी द्वारा लिखा गया है l

इस दोहे को मैं एक बार समझा देता हूं :-

उधो तुम हो अति बड़भागी

अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन ही मन अनुरागी l

पुरइनि पात रहत जल भीतर , ता रस देह ना दागी l

ज्यों जल माह तेल की गागरि, बुंद ताकौ लागी l

प्रीति नदी पांव ना बोरियू, दृष्टि ना रूप परागी l

सूरदास अबला हम भोरी , गुर चांटी ज्यों पागी l

इस दोहे को मैं संक्षिप्त में वर्णन करना चाहता हूं:-

"प्रस्तुत पद में गोपियां उद्धव पर व्यंग करती हुई कहती हे उद्धव तुम बहुत ही भाग्यशाली हो l तुम प्रेम के धागे से कहीं भी बंद ही नहीं हो, तुम्हारा मन किसी में अनुरक्त नहीं है l तुम तो जल में रहने वाले कमल के फूल के समान हो जो जल में रहते हुए भी जल से दूर है l जैसे पानी में तेल की गागर रहने पर भी उस पर पानी का प्रभाव नहीं रहता l इसका मतलब तुम दिन रात कृष्ण के समीप रहती हो फिर भी कृष्ण के प्रति अनुरक्त नहीं हो l तुमने कृष्ण के प्रेम रूपी नदी में अपने पैर नहीं डुबोए, ना तुमने कभी कृष्ण के रूप सौंदर्य का रसपान किया l सूरदास जी कहते हैं कि यह तो हम ब्रज की भोली भाली अबला नारियां है जो कृष्ण के प्रेम में ऐसे आसक्त हो गई जैसे चीटियां गुड से चिपक जाती है l"

आशा है कि आप को यह पूरी बात समझ में आ गई होगी l


Vikramjeeth: it's ok
satyamkumarOBC: can you give me the explanation of chapter उत्साह , अट नही रही है
Vikramjeeth: yes
Vikramjeeth: i can give
Vikramjeeth: let me give half an hour
Vikramjeeth: i will solve your problem
satyamkumarOBC: ok i am posting this question
satyamkumarOBC: it will help me a lot
Anonymous: Fantastic!!❤
Vikramjeeth: thanks
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