Hindi, asked by sujata6275, 10 months ago

class 7 Veer Kunwar Singh chapter summary NCERT book in hindi​

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Answered by coolthakursaini36
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उत्तर-> वीर कुंवर सिंह की गिनती उन महान स्वतंत्रता सेनानियों में होती है जिन्होंने देश को आजाद करने के लिए बहुत ही कठोर संघर्ष किया था वीर कुमार सिंह ने सन 1857 के व्यापक सशस्त्र विद्रोह ने भारत में ब्रिटिश शासन की जड़ों को हिला दिया था।

वीर कुंवर सिंह का जन्म बिहार के शाहाबाद जिले के जगदीशपुर में सन 1782 ईसवी में हुआ था। उनके पिता का नाम साहबजादा सिंह और माता का नाम पंच रतन कुंवर था। वीर कुंवर सिंह की पढ़ाई लिखाई के लिए उनके पिताजी ने घर पर ही व्यवस्था की थी। वीर कुंवर सिंह को घुड़सवारी तलवारबाजी कुश्ती आदि कार्य में बहुत मजा आता था जिससे वह आगे चलकर स्वतंत्रता सेनानी बढ़ने में सहायक सिद्ध हुए।

जगदीशपुर के जंगलों में बसुरिया बाबा नाम के एक सिद्ध संत रहते थे उन्होंने ही कुंवर सिंह को देश भक्ति एवं स्वाधीनता की भावना उत्पन्न की थी।

स्वतंत्रता की लड़ाई के साथ-साथ उन्होंने बहुत से सामाजिक कार्य भी किए थे जैसे आरा बलिया सड़क का निर्माण, कुओं का निर्माण और भी बहुत से सामाजिक कार्य किए थे।

Answered by devimeenakshi745
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Answer:

इस पाठ में सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा कुँवर सिंह की वीरता और साहस का वर्णन किया गया है। अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने पर 8 अप्रैल, सन 1857 ई० को मंगल पांडे को फाँसी दे दी गई थी। 10 मई, सन 1857 को मेरठ में भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन किया। 11 मई को उन्होंने दिल्ली पर कब्ज़ा कर बहादुरशाह ज़फ़र को भारत का शासक बना दिया।

सन 1857 में ब्रिटिश सरकार की जड़ें हिलाने वाले स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख सेनानी थे- मंगल पांडे, नाना साहेब, ताँत्या टोपे, बख़ खान, अजीममुल्लाखान, रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल, कुंवर सिंह, मौलवी अहमदुल्लाह, बहादुर खान, राव तुलाराम आदि थे। इस आंदोलन में कुंवर सिंह जैसे वयोवृद्ध व्यक्ति ने भी ब्रिटिश शासन के खिलाफ बहादुरी के साथ युद्ध किया|

वीर कुंवर सिंह का जन्म 1782 में बिहार के शाहाबाद जिले के जगदीशपुर रिसायत में हुआ था। उनके माता-पिता पंचरतन कुँवर और साहबजादा सिंह थे। कुँवर सिंह अपने पिता की तरह ही वीर, स्वाभिमानी और उदार थे। पिता की मृत्यु के बाद 1827 ई. में उन्होंने जगदीशपुर रियासत की ज़िम्मेदारी सँभाली। उन्होंने अंग्रेजी सरकार से डटकर लोहा लिया|

25 जुलाई, सन 1857 को दानापुर की सैनिक टुकड़ी ने विद्रोह कर दिया और वे सोन नदी पार कर आरा की ओर चल पड़े। कुँवर सिंह ने आरा पर विजय प्राप्त कर ली। उस समय आरा क्रांति का मुख्य केंद्र बन गया। जमींदारों का अंग्रेजों के साथ सहयोग और आधुनिक शस्त्रों की कमी के कारण अंग्रेजों ने जगदीशपुर पर कब्जा कर लिया| लेकिन कुँवर सिंह ने हार नहीं मानी और वे भावी संग्राम की योजना में तुरंत लग गए। उन्होंने सासाराम से मिर्जापुर, रीवा, कालपी, कानपुर, लखनऊ, आजमगढ़ में क्रांति की आग को जलाए रखा। लगातार अंग्रेजों से युद्ध करते हुए कुँवर सिंह ने 22 मार्च, सन 1858 को आजमगढ़ पर कब्ज़ा कर लिया। अंग्रेजों के आक्रमण करने पर उन्हें दोबारा भी हराया और कुंवर सिंह 23 अप्रैल, सन 1858 को स्वतंत्रता का विजय झंडा लहराकर जगदीशपुर चले गए। लेकिन इसके तीन दिन बाद 26 अप्रैल, सन 1858 को वीर कुंवर सिंह का निधन हो गया।

वीर कुंवर सिंह युद्ध-कला में पूरी तरह कुशल थे| वे अत्यंत चतुर तथा साहसी योद्धा थे। उन्होंने अनेकों बार अंग्रेजों को चकमा दिया। एक बार गंगा नदी को पार करने के लिए अंग्रेज सेनापति डगलस को झूठी खबर में फँसाकर अपनी सेना के साथ शिवराजपुर से गंगा पार कर गए| कुँवर सिंह कुशल योद्धा के साथ-साथ सामाजिक कार्य भी करते थे। उन्होंने अपने समय में निर्धनों की सहायता की, कुएँ खुदवाए, तालाब बनवाए। वे अत्यंत उदार एवं संवेदनशील व्यक्ति थे। लोकभाषाओं में आज भी उस वीर सेनानी का यशगान किया जाता है।

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