Class 9th hindi sparsh chapter 12 explanations
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1 stanza of poemएक महामारी प्रचंड रूप से फैली हुई थी जिसने लोगों की अश्रु धाराओं को उद्वेलित कर दिया था और दिलों में आग लगा दी थी। जिन औरतों की संतानें उस महामारी की भेंट चढ़ गई थीं उनके कमजोर पड़ते गले से लगातार करुण रुदन निकल रहा था। उस कमजोर पर चुके रुदन में भी अपार अशांति का हाहाकार मचा हुआ था।
2 stanza of poemइस कविता का मुख्य पात्र अपनी बेटी सुखिया को बार बार बाहर जाने से रोकता था। लेकिन सुखिया उसकी एक न मानती थी और खेलने के लिए बाहर चली जाती थी। जब भी वह अपनी बेटी को बाहर जाते हुए देखता था तो उसका हृदय काँप उठता था। वह यही सोचता था कि किसी तरह उसकी बेटी उस महामारी के प्रकोप से बच जाए।
3 stanza of poemलेकिन वही हुआ जिसका कि डर था। एक दिन सुखिया का बदन बुखार से तप रहा था। उस बच्ची ने बुखार की पीड़ा में से बोला कि उसे किसी का डर नहीं था। वह तो बस देवी माँ के प्रसाद का एक फूल चाहती थी ताकि वह ठीक हो जाए।
4 stanza of poemसुखिया में इतनी भी ताकत नहीं बची थी कि मुँह से कुछ आवाज निकाल पाए। उसके अंग अंग शिथिल हो रहे थे। उसका पिता किसी चमत्कार की आशा में चिंति बैठा हुआ था। पता ही न चला कि कब सुबह से दोपहर हुई और फिर शाम हो गई।
5 stanza of poemचारों और अंधकार ही दिख रहा था जो लगता था कि उस मासूम बच्ची को डसने चला आ रहा था। ऊपर विशाल आकाश में चमकते तारे ऐसे लग रहे थे जैसे जलते हुए अंगारे हों। उनकी चमक से आँखें झुलस जाती थीं।
6 stanza of poemजो बच्ची कभी भी स्थिर नहीं बैठती थी, आज वही चुपचाप पड़ी हुई थी। उसका पिता उसे झकझोरकर पूछना चाह रहा था कि उसे देवी माँ के प्रसाद का फूल चाहिए।
7 stanza of poemपहाड़ की चोटी के ऊपर एक विशाल मंदिर था। उसके प्रांगन में सूर्य की किरणों को पाकर कमल के फूल स्वर्ण कलशों की तरह शोभायमान हो रहे थे। मंदिर का पूरा आँगन धूप और दीप से महक रहा था। मंदिर के अंदर और बाहर किसी उत्सव का सा माहौल था।
8 stanza of poemभक्तों के झुंड मधुर वाणी में एक सुर में देवी माँ की स्तुति कर रहे थे। सुखिया के पिता के मुँह से भी देवी माँ की स्तुति निकल गई। फिर उसे ऐसा लगा कि किसी अज्ञात शक्ति ने उसे मंदिर के अंदर धकेल दिया।
9 stanza of poemपुजारी ने उसके हाथों से दीप और फूल लिए और देवी की प्रतिमा को अर्पित कर दिया। फिर जब पुजारी ने उसे प्रसाद दिया तो एक पल को वह ठिठक सा गया। वह अपनी कल्पना में अपनी बेटी को देवी माँ का प्रसाद दे रहा था।
10 stanza of poemअभी सुखिया का पिता मंदिर के द्वार तक भी नहीं पहुँच पाया था कि किसी ने पीछे से आवाज लगाई, “अरे यह अछूत मंदिर के भीतर कैसे आ गया? इस धूर्त को तो देखो, कैसे सवर्णों जैसे पोशाक पहने है। पकड़ो, कहीं भाग न जाए।“
2 stanza of poemइस कविता का मुख्य पात्र अपनी बेटी सुखिया को बार बार बाहर जाने से रोकता था। लेकिन सुखिया उसकी एक न मानती थी और खेलने के लिए बाहर चली जाती थी। जब भी वह अपनी बेटी को बाहर जाते हुए देखता था तो उसका हृदय काँप उठता था। वह यही सोचता था कि किसी तरह उसकी बेटी उस महामारी के प्रकोप से बच जाए।
3 stanza of poemलेकिन वही हुआ जिसका कि डर था। एक दिन सुखिया का बदन बुखार से तप रहा था। उस बच्ची ने बुखार की पीड़ा में से बोला कि उसे किसी का डर नहीं था। वह तो बस देवी माँ के प्रसाद का एक फूल चाहती थी ताकि वह ठीक हो जाए।
4 stanza of poemसुखिया में इतनी भी ताकत नहीं बची थी कि मुँह से कुछ आवाज निकाल पाए। उसके अंग अंग शिथिल हो रहे थे। उसका पिता किसी चमत्कार की आशा में चिंति बैठा हुआ था। पता ही न चला कि कब सुबह से दोपहर हुई और फिर शाम हो गई।
5 stanza of poemचारों और अंधकार ही दिख रहा था जो लगता था कि उस मासूम बच्ची को डसने चला आ रहा था। ऊपर विशाल आकाश में चमकते तारे ऐसे लग रहे थे जैसे जलते हुए अंगारे हों। उनकी चमक से आँखें झुलस जाती थीं।
6 stanza of poemजो बच्ची कभी भी स्थिर नहीं बैठती थी, आज वही चुपचाप पड़ी हुई थी। उसका पिता उसे झकझोरकर पूछना चाह रहा था कि उसे देवी माँ के प्रसाद का फूल चाहिए।
7 stanza of poemपहाड़ की चोटी के ऊपर एक विशाल मंदिर था। उसके प्रांगन में सूर्य की किरणों को पाकर कमल के फूल स्वर्ण कलशों की तरह शोभायमान हो रहे थे। मंदिर का पूरा आँगन धूप और दीप से महक रहा था। मंदिर के अंदर और बाहर किसी उत्सव का सा माहौल था।
8 stanza of poemभक्तों के झुंड मधुर वाणी में एक सुर में देवी माँ की स्तुति कर रहे थे। सुखिया के पिता के मुँह से भी देवी माँ की स्तुति निकल गई। फिर उसे ऐसा लगा कि किसी अज्ञात शक्ति ने उसे मंदिर के अंदर धकेल दिया।
9 stanza of poemपुजारी ने उसके हाथों से दीप और फूल लिए और देवी की प्रतिमा को अर्पित कर दिया। फिर जब पुजारी ने उसे प्रसाद दिया तो एक पल को वह ठिठक सा गया। वह अपनी कल्पना में अपनी बेटी को देवी माँ का प्रसाद दे रहा था।
10 stanza of poemअभी सुखिया का पिता मंदिर के द्वार तक भी नहीं पहुँच पाया था कि किसी ने पीछे से आवाज लगाई, “अरे यह अछूत मंदिर के भीतर कैसे आ गया? इस धूर्त को तो देखो, कैसे सवर्णों जैसे पोशाक पहने है। पकड़ो, कहीं भाग न जाए।“
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