Hindi, asked by Smithareghu970, 11 months ago

class7 hindi mahabharatha question:

लाख का घर क्यों बनाया गया था?

please answer very urgent.....​

Answers

Answered by vivektripathi1234
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Answer:

उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद जिले में एक तहसील है – हड़िया| हड़िया को मुंशीगंज भी कहते हैं| हड़िया से एक सड़क गंगा के तट की ओर एक बहुत बड़े गांव की ओर जाती है| उस गांव का नाम लाक्षागृह है|

लाक्षागृह में बड़े-बड़े टीले भी मिलते हैं| लाक्षागृह का अर्थ होता है – लाह का घर| पहले उस गांव का नाम वारणावत था, पर जब वहां लाह का घर बनाया गया, तो उसे लाक्षागृह के नाम से पुकारा जाने लगा| प्राचीन काल में वहां बड़े-बड़े मेले लगते थे| आज भी वहां स्नान के बड़े-बड़े मेले लगते हैं| लाह एक पदार्थ होता है, जिसे आग बहुत शीघ्र पकड़ लेती है, तो शीघ्र जला करके ही छोड़ती है| बहुत-से लोग लाह को लाख भी कहते हैं| आजकल लाख का उपयोग चूड़ियां बनाने में किया जाता है| वारणावत में लाह का घर किसने और कब बनाया था, महाभारत के पृष्ठों में इसका वर्णन विस्तार के साथ किया गया है| हम उस कहानी को यहां संक्षिप्त रूप में सामने रख रहे हैं| कहानी राजनितिक चक्रों से उलझी हुई है| बड़ी हृदयकंपक है|

पाण्डु और धृतराष्ट्र दोनों भाई थे| पाण्डु उम्र में छोटे थे, पर छोटे होने पर भी वे हस्तिनापुर के राजसिंहासन पर बैठे| इसका कारण यह था कि धृतराष्ट्र दोनों आंखों से अंधे थे| राजकार्य करने में असमर्थ थे| किंतु पाण्डु अधिक दिनों तक जीवित नहीं रह सके| वे अपने पांच पुत्रों को छोड़कर स्वर्गवासी हो गए| उनके पुत्रों में युधिष्ठिर सबसे बड़े थे| उनकी मृत्यु के पश्चात धृतराष्ट्र ने राज्य की बागडोर अपने हाथों में ले ली| उनके सौ पुत्र थे| उनके पुत्रों में दुर्योधन सबसे बड़ा था|

धृतराष्ट्र के साथ उसका साला शकुनि रहता था| वह बड़ा ही कूटनीतिज्ञ था| वह धृतराष्ट्र के अंधे होने का लाभ उठाने लगा| वह दुर्योधन को अपने हाथों का खिलौना बनाकर, ह्स्तिनापुर के राजकुल में शतरंज की चालें चलने लगा| वह राजकाज में दखल तो देने ही लगा, अधर्म और अन्याय का चक्र भी चलाने लगा|

धृतराष्ट्र मंत्रियों, शकुनि और दुर्योधन की सहायता से शासन का कार्य चलाया करते थे| उनके सामने सबसे बड़ी कठिनाई तो उस समय आई, जब उसके मन में युवराज के पद को भरने का विचार उत्पन्न हुआ| वे किसे युवराज बनाएं, यह प्रश्न उनके सामने विकट रूप में खड़ा हुआ|

राजकुमारों में दो ही व्यक्ति ऐसे थे, जिनमें से किसी एक को युवराज बनाया जा सकता था| उन दोनों व्यक्तियों में एक का नाम युधिष्ठिर और दूसरे का नाम दुर्योधन था| नियमानुसार युधिष्ठिर को ही युवराज बनाया जाना चाहिए था| वे सबसे अधिक योग्य तो थे ही, उम्र में भी सबसे बड़े थे| दुर्योधन धृतराष्ट्र का अपना पुत्र था| उसके मन में उसके प्रति आसक्ति भी थी, किंतु वे नियमों की अवहेलना करते हुए डरते भी थे| उधर, जनता में युधिष्ठिर का प्रभाव था| धृतराष्ट्र मन ही मन सोचते थे, यदि उन्होंने मोहवश दुर्योधन को युवराज बनाया, तो उसका परिणाम अच्छा नहीं होगा| जनता में उसकी निंदा होगी|

अंत में धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर को ही युवराज बनाने का विचार किया| दुर्योधन और शकुनि ने उनके इस विचार का तीव्र विरोध किया| दुर्योधन ने तो स्पष्ट शब्दों में कहा, “वह पांडवों की गुलामी नहीं करेगा| यदि युधिष्ठिर को युवराज बनाया गया, तो वह या तो आत्महत्या कर लेगा या वह हस्तिनापुर छोड़कर अन्यत्र चला जाएगा|” यद्यपि दुर्योधन गांधारी के समझाने से उस समय मौन रह गया, किंतु जब युधिष्ठिर को युवराज पद पर प्रतिष्ठित किया गया, तो उसके हृदय में द्वेष की आग जल उठी| शकुनि बड़ी ही सावधानी के साथ उस आग में फूंक मारने लगा|

युधिष्ठिर के युवराज बनने पर दुर्योधन और शकुनि-दोनों ने भली प्रकार समझ लिया कि जब तक पांडव जीवित रहेंगे, हस्तिनापुर राज्य का एकछत्र स्वामी दुर्योधन नहीं बन सकता| यदि पुरे हस्तिनापुर राज्य को अपने हाथों में लेना है, तो चाहे जैसे भी हो, पांडवों को अपने रास्ते से हटाना होगा|

अत: पांडवों को हटाने के लिए शकुनि और दुर्योधन ने कपट से भरी हुई एक योजना तैयार की| दुर्योधन उस योजना के अनुसार वारणावत में पुरंजन के द्वारा लाह का घर बनवाने लगा| पुरंजन उसका मंत्री था| वह भवन-निर्माण की विद्या में बड़ा चतुर था| पुरंजन धन मांगता जाता था, दुर्योधन उसकी मांग को पूरी करता जाता था| योजना यह थी कि जब भवन बनकर तैयार हो जाएगी, तो दुर्योधन धृतराष्ट्र से कहेगा कि वे पांडवों को मेला देखने के लिए वारणावत भेजें| जब पांडव वारणावत जाएंगे तो पुरंजन उन्हें लाह के भवन में ठहराकर उसमें आग लगा देगा| फिर तो पांडव अपनी मां कुंती सहित उसी भवन में जलकर भस्म हो जाएंगे|

लाह के भवन का निर्माण और उसमें ठहराकर पांडवों को जलाकर मार डालने की योजना बहुत गुप्त रखी गई थी| दुर्योधन और शकुनि यही समझते थे कि उन दोनों और पुरंजन को छोड़ चौथा अन्य कोई व्यक्ति उस योजना को नहीं जानता, पर सच बात तो यह है कि उस योजना को एक चौथा व्यक्ति भी जानता था| वे व्यक्ति थे विदुर| विदुर भगवान के बहुत बड़े भक्त तो थे ही, पांडवों के बड़े हितैषी भी थे| उन्हें जब दुर्योधन और शकुनि की योजना का पता चला तो

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