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सोना तपने पर कंचन बनता है। ठीक यही बात आदमी के साथ भी है। हमारे धर्मग्रथों में लिखा था कि दुनिया में सब दुर्बल आदमी का शरीर है। सारे प्राणियों में आर्मी को ऊंचा मारा गया है इसलिए कि आदमी के पास बुद्धि है विकास है। संसार में जितने जी से अवतरित हुई है, सब बुद्धि के ऊपर हुए। आज हजारों मील की यात्रा घंटों में हो जाती है। यह सब आदमी की बुद्धि से संभव हुआ है जिसके पास जितनी चीज़ें हो वह तुरंत याद दुनियादारी की चीज के पीछे पड़ कर उसे उचित नहीं है। मिट्टी का प्रयोग उसके बराबर आगे बढ़ने के लिए करना चाहिए। जिन्होंने ऐसा किया है। उन्होंने महान बता की पड़ी सेवा की है। उनका नाम अमर हो गया है। दिन का कोटा आदमी को तब मालूम होता है जो वह खराब होने लगता है। खराब होने का अर्थ यह नहीं है कि इंसान घर बार छोड़ दे, जंगल में चले जाए और भगवान को चरणों में लो लगा कर बैठा रहै। बहुत से लोग ऐसा करते भी है पर यह रास्ता सब का रास्ता नहीं है। दुनिया में जाए तैयार लोग को वास्ता अपने घर के लोगों से ही नहीं दूसरों के साथ से भी पड़ता है। उत्तम पुरुष वही है जो अपनी बुराइयों को दूर करता है और नैतिक का जीवन बिताते हुए अपने देश और समाज के काम आता है, सब से प्रेम करता है और सब के सुख दुख में काम आता है।
१)बुद्धि विकास का प्रयोग किस कार्य में होना चाहिए?
२)सभी प्राणियों में मानव को सर्वश्रेष्ठ क्यों माना है?
३)धन की निरर्थकता का अहसास कब होता है?
४)धर्म ग्रंथ किसे दुर्बल बताते हैं?
५)'श्रेष्ठ' कौन है?