Composition on chotta parivar in Hindi
Answers
Answered by
1
छोटा परिवार सुखी परिवार
भूमिका- परिवार समाज की सबसे छोटी किन्तु महत्त्वपूर्ण इकाई है । माता-पिता तथा उनके बच्चों को मिला कर के एक परिवार बनता है । जब किसी परिवार को रहने के लिए अच्छा-सा घर, पहनने के लिए कपड़ा और खाने के लिए रोटी मिल . जाए बच्चों की शिक्षा के लिये उचित साधन उपलब्ध हों तो हम ऐसे परिवार को सुखी परिवार कहते हैं । वैसे भी जिसके पास रोटी कपड़ा और मकान ये तीनों हों, उसे सुखी समझा जाता है ।
बाल-बच्चे भगवान् की देन हैं- पहले कोई समय था जब बाल-बच्चों को भगवान् की देन समझा जाता था । लोग उस व्यक्ति को बड़ा भाग्यशाली समझते थे । जिसके बाल-बच्चे ज्यादा हों अर्थात् बड़ा वह था जिसका परिवार बड़ा था । इसका प्रमुख कारण यह था कि देश में जनसंख्या बहुत कम थी । खाने-पीने की वस्तुओं की कोई कमी न थी । महंगाई का नाम तक न था । लोग पेट भर कर खाना खाते तथा सुख की नींद सोते थे ।
समय बदल गया है- आज पहले जैसा समय नहीं है । आज समय बहुत ही बदल गया है । आज खाने-पीने तथा अन्य सभी प्रकार जीवनोपयोगी वस्तुओं का राशन है । महंगाई दिनों-दिन इतनी बढ़ती जा रही है कि लोगों के नाक में दम आ गया है । आज खाने की कोई भी वस्तु शुद्ध नहीं मिलती । दूध-श्री का तो नाम भी नहीं लेना चाहिए । आज गाय के दूध की जगह सोयाबीन का दूध मिलता है । घी की जगह मूंगफली का तेल, वह भी शुद्ध नहीं । छाछ या लस्सी का नाम तो आज की पीढी ने सुना ही नहीं । आज राजा से लेकर भिखारी तक सभी चाय पीने के शौकीन तथा अभ्यस्त हो चुके हैं । आओ, आज जरा इस के मूल कारण पर विचार करें ।
विदेशी राज- पहले हमारे देश में विदेशी राज्य था । उस समय हमारे देश में निर्धनता, अकाल, भुखमरी तथा अविद्या का ‘ बोल-बाला था । मलेरिया, चेचक या प्लेग हर साल असंख्य लोगों की जान ले लेते थे । महामारी में गांव के गांव उजड़ जाते थे । जितने व्यक्ति पैदा होते थे, उतने ही मर जाते थे । इस तरह देश की जनसंख्या सीमित ही रहती थी ।
विज्ञान का युग- आज का युग विज्ञान का युग है । इस युग में विज्ञान की सहायता से ऐसी औषधियां की गई हैं जिन से महामारियों पर काबू पा लिया गया है । लोगों के लाभ के लिए सरकार ने स्थान-स्थान पर अस्पताल और औषधालय खोल दिये हैं जिस से मृत्यु दर बहुत घट गई है । पहले 100 में 5 – 10 व्यक्ति ही बचते थे, किन्तु अब 60 – 70 से भी अधिक बचते हैं । जन्म दर वही है जो पहले थी । पहले लोगों की औसत आयु 32 वर्ष थी किन्तु अब 52 है । इसलिये देश की जनसंख्या बड़ी तीव्रता से बढ़ रही है ।
स्वतन्त्रता के बाद भारत की जनसंख्या 30 करोड़ थी । किन्तु आजकल भारत की जनसंख्या 121 करोड़ के ऊपर है । इसलिए तूफान की तरह बढ़ रही जनसंख्या आज हमारे देश के लिए अभिशाप सिद्ध हो रही है । दिन-प्रतिदिन बढ़ती हुई जनसंख्या ही गरीबी और बेकारी का मूल कारण है । जनसंख्या के बढ़ जाने से बहुत सारी भूमि पर मकान बन गए हैं । योजनाओं द्वारा देश की प्रगति तो हुई है किन्तु उसका प्रभाव कहीं दिखाई नहीं देता । इससे स्पष्ट हो जाता है कि जनसंख्या की वृद्धि पर रोक लगाने से ही देश के लोग सुख की सांस ले सकते हैं । इसके विपरीत यदि यह जनसंख्या अबाध गति से बढ़ती गई तो एक दिन ऐसा आएगा जब व्यक्ति घर की भीड़ में, घर नगर की भीड़ में और नगर देश की भीड़ में खो जाएगा और यह कहने के लिए विवश होना पड़ेगा ।
उनके दर्जन भर बच्चे जब मिलकर चिल्लाते हैं मेरे मन की बिजली के सब बल्व बुझ जाते हैं । वे लूं-मैं करते रहते हैं, न कपड़ा है, न खाना है, मैं सोच रहा हूँ आखिर, यह घर है या चिड़ियाखाना है ।
छोटा परिवार सुखी परिवार-जनसंख्या को कम करने का एक ही उपाय है कि परिवार सीमित हो अर्थात् छोटा हो । छोटा परिवार सुखी परिवार है । आज जो बड़ा परिवार है वह दुःखों का घर है, अभिशाप है । माता-पिता की सीमित आय से बड़े परिवार का पालन-पोषण उचित ढंग से नहीं हो सकता न ही बच्चों को उच्च शिक्षा दी जा सकती है ।
उपसंहार- वास्तव में यह है कि छोटा परिवार सुखी परिवार है । छोटे परिवार में मां-बाप अपने एक या दो बच्चों का सही ढंग से पालन-पोषण कर सकते हैं । उन्हें उच्च शिक्षा दिला सकते हैं । इसलिये छोटे परिवार की .महत्ता तथा विशेषता को समझना चाहिए । छोटे परिवार में माता-पिता स्वस्थ एवं सुखी रह सकते हैं । बच्चे भी स्वस्थ एवं सुन्दर हो सकते हैं । इसलिये सुख. . का सार है, छोटा परिवार । इसलिये ” छोटा परिवार सुखी परिवार ” यह नारा शत-प्रतिशत ठीक है । अत: अपने परिवार को सुखी रखने के लिए प्रत्येक भारतीय को अपने परिवार को छोटा रखने का प्रयत्न करना चाहिए ।
भूमिका- परिवार समाज की सबसे छोटी किन्तु महत्त्वपूर्ण इकाई है । माता-पिता तथा उनके बच्चों को मिला कर के एक परिवार बनता है । जब किसी परिवार को रहने के लिए अच्छा-सा घर, पहनने के लिए कपड़ा और खाने के लिए रोटी मिल . जाए बच्चों की शिक्षा के लिये उचित साधन उपलब्ध हों तो हम ऐसे परिवार को सुखी परिवार कहते हैं । वैसे भी जिसके पास रोटी कपड़ा और मकान ये तीनों हों, उसे सुखी समझा जाता है ।
बाल-बच्चे भगवान् की देन हैं- पहले कोई समय था जब बाल-बच्चों को भगवान् की देन समझा जाता था । लोग उस व्यक्ति को बड़ा भाग्यशाली समझते थे । जिसके बाल-बच्चे ज्यादा हों अर्थात् बड़ा वह था जिसका परिवार बड़ा था । इसका प्रमुख कारण यह था कि देश में जनसंख्या बहुत कम थी । खाने-पीने की वस्तुओं की कोई कमी न थी । महंगाई का नाम तक न था । लोग पेट भर कर खाना खाते तथा सुख की नींद सोते थे ।
समय बदल गया है- आज पहले जैसा समय नहीं है । आज समय बहुत ही बदल गया है । आज खाने-पीने तथा अन्य सभी प्रकार जीवनोपयोगी वस्तुओं का राशन है । महंगाई दिनों-दिन इतनी बढ़ती जा रही है कि लोगों के नाक में दम आ गया है । आज खाने की कोई भी वस्तु शुद्ध नहीं मिलती । दूध-श्री का तो नाम भी नहीं लेना चाहिए । आज गाय के दूध की जगह सोयाबीन का दूध मिलता है । घी की जगह मूंगफली का तेल, वह भी शुद्ध नहीं । छाछ या लस्सी का नाम तो आज की पीढी ने सुना ही नहीं । आज राजा से लेकर भिखारी तक सभी चाय पीने के शौकीन तथा अभ्यस्त हो चुके हैं । आओ, आज जरा इस के मूल कारण पर विचार करें ।
विदेशी राज- पहले हमारे देश में विदेशी राज्य था । उस समय हमारे देश में निर्धनता, अकाल, भुखमरी तथा अविद्या का ‘ बोल-बाला था । मलेरिया, चेचक या प्लेग हर साल असंख्य लोगों की जान ले लेते थे । महामारी में गांव के गांव उजड़ जाते थे । जितने व्यक्ति पैदा होते थे, उतने ही मर जाते थे । इस तरह देश की जनसंख्या सीमित ही रहती थी ।
विज्ञान का युग- आज का युग विज्ञान का युग है । इस युग में विज्ञान की सहायता से ऐसी औषधियां की गई हैं जिन से महामारियों पर काबू पा लिया गया है । लोगों के लाभ के लिए सरकार ने स्थान-स्थान पर अस्पताल और औषधालय खोल दिये हैं जिस से मृत्यु दर बहुत घट गई है । पहले 100 में 5 – 10 व्यक्ति ही बचते थे, किन्तु अब 60 – 70 से भी अधिक बचते हैं । जन्म दर वही है जो पहले थी । पहले लोगों की औसत आयु 32 वर्ष थी किन्तु अब 52 है । इसलिये देश की जनसंख्या बड़ी तीव्रता से बढ़ रही है ।
स्वतन्त्रता के बाद भारत की जनसंख्या 30 करोड़ थी । किन्तु आजकल भारत की जनसंख्या 121 करोड़ के ऊपर है । इसलिए तूफान की तरह बढ़ रही जनसंख्या आज हमारे देश के लिए अभिशाप सिद्ध हो रही है । दिन-प्रतिदिन बढ़ती हुई जनसंख्या ही गरीबी और बेकारी का मूल कारण है । जनसंख्या के बढ़ जाने से बहुत सारी भूमि पर मकान बन गए हैं । योजनाओं द्वारा देश की प्रगति तो हुई है किन्तु उसका प्रभाव कहीं दिखाई नहीं देता । इससे स्पष्ट हो जाता है कि जनसंख्या की वृद्धि पर रोक लगाने से ही देश के लोग सुख की सांस ले सकते हैं । इसके विपरीत यदि यह जनसंख्या अबाध गति से बढ़ती गई तो एक दिन ऐसा आएगा जब व्यक्ति घर की भीड़ में, घर नगर की भीड़ में और नगर देश की भीड़ में खो जाएगा और यह कहने के लिए विवश होना पड़ेगा ।
उनके दर्जन भर बच्चे जब मिलकर चिल्लाते हैं मेरे मन की बिजली के सब बल्व बुझ जाते हैं । वे लूं-मैं करते रहते हैं, न कपड़ा है, न खाना है, मैं सोच रहा हूँ आखिर, यह घर है या चिड़ियाखाना है ।
छोटा परिवार सुखी परिवार-जनसंख्या को कम करने का एक ही उपाय है कि परिवार सीमित हो अर्थात् छोटा हो । छोटा परिवार सुखी परिवार है । आज जो बड़ा परिवार है वह दुःखों का घर है, अभिशाप है । माता-पिता की सीमित आय से बड़े परिवार का पालन-पोषण उचित ढंग से नहीं हो सकता न ही बच्चों को उच्च शिक्षा दी जा सकती है ।
उपसंहार- वास्तव में यह है कि छोटा परिवार सुखी परिवार है । छोटे परिवार में मां-बाप अपने एक या दो बच्चों का सही ढंग से पालन-पोषण कर सकते हैं । उन्हें उच्च शिक्षा दिला सकते हैं । इसलिये छोटे परिवार की .महत्ता तथा विशेषता को समझना चाहिए । छोटे परिवार में माता-पिता स्वस्थ एवं सुखी रह सकते हैं । बच्चे भी स्वस्थ एवं सुन्दर हो सकते हैं । इसलिये सुख. . का सार है, छोटा परिवार । इसलिये ” छोटा परिवार सुखी परिवार ” यह नारा शत-प्रतिशत ठीक है । अत: अपने परिवार को सुखी रखने के लिए प्रत्येक भारतीय को अपने परिवार को छोटा रखने का प्रयत्न करना चाहिए ।
Similar questions