Hindi, asked by slnchary9435, 1 year ago

Composition on त्यौहारों का बदलता स्वरूप in hindi

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Answered by sumaylamansuri
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आज उस आज़ादी के साथ-साथ उच्श्रृंखलताभी बढ़ी है, चाहे वह Celebration के तरीकों की हो या Dress Sense की । लोग नहीं सोचते कि हम क्या पहन कर निकल रहे हैं(ख़ास तौर से लड़कियां)। ज़ाहिर है जब हम तैयार होकर घर निकलते हैं तो निश्चित रूप से आईने में खुद को तो निहारते ही हैं। फिर भी लोग कैसे ऐसी पोशाकें पहन घर से बाहर क़दम रखते हैं। पहले पोशाकें बदन ढकने के लिए पहनी जाती थीं और आज बदन दिखाने के लिए। पहनने वाले की तुलना में देखने वाला शरमा जाए। अभिभावक भी पता नहीं कैसे इसकी अनुमति देते हैं।
Public Places में लोग उच्श्रृंखलता का प्रदर्शन करते हैं, पहले लोग दूसरों का लिहाज़ करते थे। आज इसकी कमी दिखती है। वर्ना सार्जेट बापी सेन जैसे दिलेर लोग क्यों ज़िंदगी से हाथ धो बैठे ?
आज त्योहारों का दायरा बढ़ा है। व्यस्त जीवन शैली के कारण लोग अपनों से मिलने और उनके संग वक़्त गुज़ारने के लिए बहाना ढूँढते हैं और इसी क्रम में वेस्टर्न संस्कृति पर आधारितमदर्स डे, फादर्स डे, ग्रैंड पेरेंटस् डे, सीनियर सिटिजंस डे, वर्ल्ड म्युज़िक डे जैसे आयोजनों का चलन शुरू हुआ।

एक और बदलाव का उल्लेख करना चाहूंगी। पंजाब प्रदेश का एक त्योहार है ‘लोहड़ी’ । 13 जनवरी को मनाया जाता है। पहले क्या होता था कि परिवार में पुत्र की पैदाईश या पुत्र की शादी वाले घरों में बड़े धूमधाम से यह त्योहार भव्यता से मनाया जाता था। पूरे गांव या मुहल्ले में लोहड़ी बांटी जाती थी। यानी पुत्र संतान के साथ इसका जुड़ाव था। लेकिन तीन साल पहले मैंने वहां के लोकल अख़बारों में देखा कि अब कन्या संतान की पैदाईश पर भी यह त्योहार बड़े पैमाने पर मनाया जाने लगा है। जहां कन्याओं की भ्रूण हत्याओं जैसे कृत को अंज़ाम दिया जाता था, वहां यह एक सुखद बदलाव है, ।


भारतीय संस्कृति के त्योहारों के अनुसार देवी पूजा, शक्ति पूजा, कुमारी पूजन, दुर्गा पूजा, लक्ष्मी – सरस्वति पूजा की जाती है। महिला को शक्ति का स्वरूप माना जाता है वहीं दूसरी ओर आज उसी शक्ति स्वरुपा नारी से पैदा होने का हक़ छीना जाने लगा है। पहले के ज़माने में पुत्र की अभिलाषा में कन्या संतानों की क़तार लग जाती थी आज तो कन्याओं के जन्म पर ही प्रश्न लग गया है।
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