Congress Mein Yuva Turk Kise Kaha jata tha
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कौन थे युवा तुर्क?
सुल्तान अब्दुल हमीद द्वितीय के शासन से तुर्की के लोग परेशान आ चुके थे। सुल्तान के खिलाफ कुछ लोगों का एक समूह बगावत कर देता है। इसका नतीजा यह होता है कि बाद में वहां संवैधानिक सरकार आती है। सुल्तान के खिलाफ बगावत करने वाला समूह सुधारवादी और प्रगतिशील सोच वाले लोगों का समूह होता है। उन लोगों को युवा तुर्क के नाम से जाना जाता है। सत्ता में आने के बाद वे तुर्की के आधुनिकीकरण पर जोर देते हैं। युवा तुर्क क्रांतिकारी और बागी होते हैं। उनकी विचारधारा उदार और सेक्युलर होती है। इसी वजह से बाद में दुनिया में क्रांतिकारी और बागी सोच वाले लोगों के लिए युवा तुर्क शब्द का इस्तेमाल होने लगता है। आइए युवा तुर्क की पूरी कहानी जानते हैं जो काफी दिलचस्प है।
बागियों के दो गुट
इंस्ताबुल स्थित इंपीरियल मेडिकल अकैडमी के छात्रों के एक गुट ने 1889 में सुल्तान अब्दुल हमीद को सत्ता से बेदखल करने का षडयंत्र रचा। वे लोग देश में संवैधानिक सरकार की बहाली चाहते थे। धीरे-धीरे सुल्तान की बगावत शहर के सभी कॉलेजों में फैल गई। लेकिन उनकी साजिश का भंडाफोड़ हो जाता है और ज्यादातर बागी सदस्य देश छोड़कर भाग जाते हैं। ग्रुप के ज्यादातर सदस्य पैरिस में जाकर शरण लेते हैं। वहां से वह सुल्तान अब्दुल हमीद के खिलाफ बगावत की योजना बनाते हैं। युवा तुर्कों के बीच प्रभावशाली शख्सियत का नाम था अहमद रजा। वह युवा तुर्कों के संगठन कमिटी ऑफ यूनियन ऐंड प्रोग्रेस (सीयूपी) का प्रवक्ता बन जाता है। सीयूपी एक मजबूत केंद्रीय सरकार और विदेशी प्रभाव से मुक्ति की वकालत करता है। सीयूपी तुर्की में चरणबद्ध तरीके से सुधारों का हिमायती होता है। गुट के कुछ सदस्य सीयूपी से सहमत नहीं होते हैं और उनमें से एक बागी गुट बन जाता है जिसका नाम लीग ऑफ प्राइवेट इनिशटिव ऐंड डिसेंट्रलाइजेशन होता है। उस गुट का नेतृत्व प्रिंस सबाहुद्दीन करता है। सबाहुद्दीन गुट का सिद्धांत भी सीयूपी की तरह ही सेक्युलर और उदारवादी मूल्यों पर होता है। लेकिन यह गुट प्रशासकीय विकेंद्रीकरण का हिमायती होता है और यूरोप की मदद से सुधारों को लागू करना चाहता है।
तुर्की की सत्ता में युवा तुर्कों का आना
सीयूपी और लीग ने तुर्की में लिबरल विचारों को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। फिर 1908 में तुर्की की फौज के तीसरी आर्मी कोर के कुछ बागी सदस्य उनके साथ मिल जाते हैं। तुर्की की फौज के बागी सदस्य स्लोनिका में जमा होते हैं और 1906 में ऑटोमन लिबर्टी सोसायटी का गठन करते हैं। इस गुप्त क्रांतिकारी गुट का अगले साल सीयूपी में विलय कर दिया जाता है। इस तरह युवा तुर्क के विचारक तीसरी आर्मी कोर की कमान में आ जाते हैं। साल 1907 के आखिरी हिस्से में सीयूपी और लीग के बीच अपने सामान्य लक्ष्य को प्राप्त करने के मकसद से मिलकर काम करने को लेकर सहमित बन जाती है। 3 जुलाई, 1908 को तीसरी कोर के मेजर अहमद नियाजी रेसना में सल्तनत के खिलाफ बगावत कर देते हैं। अन्य बागी भी उनका अनुसरण करते हैं और तेजी से पूरे साम्राज्य में बगावत फैल जाती है। सुल्तान अब्दुल हमीद डरकर 23 जुलाई को 1876 के संविधान को बहाल करने का ऐलान करते हैं। इस तरह से युवा तुर्क संवैधानिक सरकार की स्थापना में सफल हो जाते हैं।
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