Corona ke liye bharat sarkar ne kya kiya in hindi
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सरकार की ओर से बताया गया है कि वायरस से संक्रमित मरीज के इलाज के लिए एक मानक तरीके पर काम चल रहा है। इस मानक के तहत कई तरह के एंटीरेट्रोवायरल्स को मिलाकर इलाज का नुस्खा बनाया जा रहा है। बता दें की एंटीरेट्रोवायरल्स का इस्तेमाल एचआईवी या एड्स के इलाज में होता है। इसी तरीके का इस्तेमाल चीन में किया जा रहा है।
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26 मार्च को केंद्र सरकार ने एक ऐसे वित्तीय पैकेज का एलान किया, जो 21 दिनों लंबे लॉकडाउन के दौरान बिगड़ने वाली आर्थिक स्थिति को सुधारने में मददगार साबित हो. इस देशव्यापी लॉकडाउन का एलान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक दिन पहले ही किया था.
लेकिन, सरकार द्वारा घोषित ये वित्तीय मदद, हालात को देखते हुए, उम्मीद से बहुत ही कम और अपर्याप्त है. ये उन लोगों की मदद करने में बहुत ही कम कारगर होने वाला है, जिन्हें आने वाले महीनों में आर्थिक मदद की बेहद सख़्त ज़रूरत पड़ने वाली है. सरकार ने इस पैकेज की घोषणा में बड़ी कंजूसी से काम लिया है.
पहली बात तो ये कि इस समय सरकार की मदद की ज़रूरत किसे है?
जो 90 फ़ीसदी भारतीय नागरिक, देश के असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं. न तो उनके लिए कोई क़ानूनी उपाय हैं. और, न ही उन लोगों की रोज़ी-रोटी के नियमन के लिए कोई क़ानूनी संरक्षण उपलब्ध है. इनमें करोड़ों शहरी और ग्रामीण मज़दूर शामिल हैं.ये वो लोग हैं, जो समाज के सबसे ग़रीब लोग हैं और जो किसी भी आर्थिक झटके से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं. ये लोग दिहाड़ी, हफ़्तावार या माहवारी मज़दूरी पर गुज़र-बसर करते हैं. और इनके पास अचानक आमदनी बंद होने से आई किसी मुश्किल का सामना करने के लिए बचत के नाम पर या तो कुछ नहीं होता. या फिर मामूली सी रक़म होती है. जब लॉकडाउन के कारण देश में आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह से ठप हो रही हैं, तो भारतीय समाज का यही वो तबक़ा है, जो इस लॉकडाउन के दौरान सबसे मुश्किल में होगा.अगर कोई सरकार इन लोगों का भला सोच कर काम कर रही होती, तो उसे कोरोना वायरस का प्रकोप रोकने के लिए, लॉकडाउन के एलान से पहले, देश के इस सबसे कमज़ोर तबक़े की मदद के लिए आर्थिक पैकेज और उसे लागू करने के संसाधनों का जुगाड़ कर लेना चाहिए था. लेकिन, केंद्र की बीजेपी सरकार ने ऐसा करने में घोर लापरवाही बरती. लॉकडाउन के कारण मज़दूरों और ग़रीबों में बेचैनी और उनके अपने अपने ठिकाने छोड़ कर पलायन करने के संकेत, बिना योजना के लागू हुए लॉकडाउन के 48 घंटों के भीतर ही सामने आ गए. कुछ ही दिनों के भीतर परिस्थिति इतनी बिगड़ सकती है कि लोग पैसों के अभाव और भुखमरी के शिकार हो सकते हैं.
तो, ऐसे में जब ये ख़बर आई कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण गुरुवार को एक आर्थिक मदद के पैकेज का एलान करने वाली हैं. तो, बहुत से लोगों को ये उम्मीद जगी कि सरकार ने लोगों के संकट के संकेत कों समझा है और उनकी परेशानी दूर करने की इच्छुक है. लेकिन, निर्मला सीतारमण ये उम्मीदें पूरी करने में नाकाम रहीं.आइए, इस बात को सही साबित करने वाले सबूतों पर नज़र डालते हैं.
सरकार ने दावा किया कि उसने 1.7 लाख करोड़ के राहत पैकेज का एलान किया है. ये रक़म, 2019-20 के वित्तीय वर्ष में भारत के संशोधित जीडीपी का केवल 0.83 प्रतिशत है. अन्य देशों ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं के आकार के अनुपात में कहीं बड़े आर्थिक पैकेज का एलान, कोरोना वायरस से उत्पन्न आर्थिक संकट के लिए किया है. ऐसे में ये मदद अगर सच भी है, तो बहुत कम है.
लेकिन, ये मदद भी हक़ीक़त से परे है.
वित्त मंत्री ने जिस पैकेज का एलान किया, उसे बारीक़ी से देखें, तो सरकार ने अपनी प्रेस रिलीज़ में बुनियादी जोड़-जमा ही ग़लत किया है. अपने वित्तीय पैकेज में निर्मला सीतारमण ने पैकेज के हर हिस्से के लिए जिस रक़म का ज़िक्र किया, उन सब को मिला भी दें, तो कुल पैकेज एक लाख करोड़ का बैठता है. मिसाल के लिए मनरेगा मज़दूरों की मज़दूरी बढ़ाने में पैकेज के हिस्से को ही लें. जब सोशल मीडिया पर सरकार से इस बारे में सवाल किए गए, तो सरकार ने एक संशोधित बयान जारी किया. जिसमें से पैकेज के अलग-अलग हिस्सों से जुड़ी वित्तीय जानकारियां नदारद हो गईं.