corruption poem in hindi
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अपने मन में अक्सर सोचा करता हूँ कई बार
अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार
नेता और अधिकारी सारे क्यों हैं मालामाल
मेहनतकश और मज़दूर देश का हो गया कंगाल
वीर सिपाही सीमा पर करता यही पुकार
अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार
अनेक धर्म हैं अनेक भाषा, फिर भी एक तिरंगा
हिन्दू और मुस्लिम के बीच में क्यों होता है दंगा
मैंने देखा इन्सानियत को बिकते बीच बाज़ार
अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार
ग्यारह बच्चे घर में हैं पर है जनगणना अधिकारी
औरों को शिक्षा देते कहाँ गई अकल तुम्हारी
झट से बोले सब ज़ायज, है यहाँ अपनी है सरकार
अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार
बचपन में पापा कहते थे ईश्वर भाग्य विधाता है
जन्म देने वाली माँ से बढ़कर अपनी भारत माता है
आज ईमानदार और सत्यवादी बहुत हो चुका लाचार
अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार
कभी तो मानव जागेगा लिए बैठा यही आस
करेगा सो भरेगा तू क्यों है बब्बर उदास
साई कहते इस जग में मतलब का व्यवहार
अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार
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Explanation:
भ्रष्टाचार लूट की कमाई में बहार ही बहार है
हर्रे लगे फिटकरी बाबू साहब का राज है
गौशाला बना दिया चौपाल खरीद लिया
गांव के गांव चरवाहों से चारा सब हड़प लिया
जाति धर्म संप्रदाय के नाम पर कब तक वोट मांगोगे
कब तक करोगे गुमराह जनता को
कब तक नासमझ उन्हें समझोगे
माना पैसा बड़ा साधन है पर समय इससे ज्यादा बलवान है
हम क्यों करें इस पर विचार करें नित नया भ्रष्टाचार
धन है तो जन है और जन है तो व्यापार
पैसे बटोरकर जाओगे कहां यार
आएगी जब बारी तो होगी विनाशकारी
हंसेगी दुनिया सारी रोने की होगी बारी
छोड़ो इस फिलॉसफी को करो अपना काम
भ्रष्टाचार है धर्म अपना भ्रष्टाचारी नाम
जिस थाली में खाएंगे छेद उसी में बनाएंगे
जनता का पैसा लूट लूट कर
उनको थाल चटाएगें
समय परिवर्तनशीला है उसकी अजब लीला है
कभी नाव पर गाड़ी तो कभी गाड़ी पर नाव है
कौन जाने अबकी किसकी बारी है
देखना अब यह है कि नाव पर किसकी सवारी है।।