could u please send the three famous rabindranath tagore poems in hindi.please send it to me mam.
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1.
बहुत वासनाओं पर मन से हाय, रहा मर,
तुमने बचा लिया मुझको उनसे वंचित कर ।
संचित यह करुणा कठोर मेरा जीवन भर।
अनमाँगे जो मुझे दिया है
जोत गगन तन प्राण हिया है
दिन-दिन मुझे बनाते हो उस
महादान के लिए योग्यतर
अति-इच्छा के संकट से
मुझको उबार कर।
कभी भूल हो जाती चलता किंतु भी तो
तुम्हें बनाकर लक्ष्य उसी की एक लीक धर;
निठुर! सामने से जाते हो तुम जो हट पर।
है मालूम दया ही यह तो,
अपनाने को ठुकराते हो,
अपने मिलन योग्य कर लोगे
इस जीवन को बना पूर्णतर
इस आधी इच्छा के
संकट से उबार कर।
2.
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो तू चल अकेला,
चल अकेला, चल अकेला, चल तू अकेला!
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो चल तू अकेला,
जब सबके मुंह पे पाश..
ओरे ओरे ओ अभागी! सबके मुंह पे पाश,
हर कोई मुंह मोड़के बैठे, हर कोई डर जाय!
तब भी तू दिल खोलके, अरे! जोश में आकर,
मनका गाना गूंज तू अकेला!
जब हर कोई वापस जाय..
ओरे ओरे ओ अभागी! हर कोई बापस जाय..
कानन-कूचकी बेला पर सब कोने में छिप जाय…
3.
विकसित करो हमारा अंतर
अंतरतर हे !
उज्ज्वल करो, करो निर्मल, कर दो सुन्दर हे !
जाग्रत करो, करो उद्यत, निर्भय कर दो हे !
मंगल करो, करो निरलस, निसंशय कर हे !
विकसित करो हमारा अंतर
अंतरतर हे !
युक्त करो हे सबसे मुझको, बाधामुक्त करो,
सकल कर्म में सौम्य शांतिमय अपने छंद भरो
चरण-कमल में इस चित को दो निस्पंदित कर हे !
नंदित करो, करो प्रभु नंदित, दो नंदित कर हे !
विकसित करो हमारा अंतर
अंतरतर हे
Hope this is helpful....if yes pls mark as brainiest :))
बहुत वासनाओं पर मन से हाय, रहा मर,
तुमने बचा लिया मुझको उनसे वंचित कर ।
संचित यह करुणा कठोर मेरा जीवन भर।
अनमाँगे जो मुझे दिया है
जोत गगन तन प्राण हिया है
दिन-दिन मुझे बनाते हो उस
महादान के लिए योग्यतर
अति-इच्छा के संकट से
मुझको उबार कर।
कभी भूल हो जाती चलता किंतु भी तो
तुम्हें बनाकर लक्ष्य उसी की एक लीक धर;
निठुर! सामने से जाते हो तुम जो हट पर।
है मालूम दया ही यह तो,
अपनाने को ठुकराते हो,
अपने मिलन योग्य कर लोगे
इस जीवन को बना पूर्णतर
इस आधी इच्छा के
संकट से उबार कर।
2.
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो तू चल अकेला,
चल अकेला, चल अकेला, चल तू अकेला!
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो चल तू अकेला,
जब सबके मुंह पे पाश..
ओरे ओरे ओ अभागी! सबके मुंह पे पाश,
हर कोई मुंह मोड़के बैठे, हर कोई डर जाय!
तब भी तू दिल खोलके, अरे! जोश में आकर,
मनका गाना गूंज तू अकेला!
जब हर कोई वापस जाय..
ओरे ओरे ओ अभागी! हर कोई बापस जाय..
कानन-कूचकी बेला पर सब कोने में छिप जाय…
3.
विकसित करो हमारा अंतर
अंतरतर हे !
उज्ज्वल करो, करो निर्मल, कर दो सुन्दर हे !
जाग्रत करो, करो उद्यत, निर्भय कर दो हे !
मंगल करो, करो निरलस, निसंशय कर हे !
विकसित करो हमारा अंतर
अंतरतर हे !
युक्त करो हे सबसे मुझको, बाधामुक्त करो,
सकल कर्म में सौम्य शांतिमय अपने छंद भरो
चरण-कमल में इस चित को दो निस्पंदित कर हे !
नंदित करो, करो प्रभु नंदित, दो नंदित कर हे !
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Satwika4:
Pls mark as brainiest
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