covid19 उत्तरदायी स्कूल Nibhand 250 to300 words
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कोरोना की आहट फिर सुनाई देने लगी है। महाराष्ट्र, केरल, गुजरात जैसे राज्यों से आ रहे आंकड़े चिंता का सबब है। लॉक डाउन का डर जनता में फैल रहा है। सबसे बड़ी चिंता स्कूलों की है। तकरीबन 1 साल से ज्यादा समय हो रहा है जब देशभर के स्कूल बंद हैं, जो खुले और खुलने की योजना में थे वहां भी कोरोना के संक्रमण ने दहशत को पैदा कर दिया है। जाहिर है ऐसे में घरों में ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे बच्चों की शिक्षा और उनके मानसिक विकास को लेकर सरकार को सोचना भी चाहिए और नई वैकल्पिक व्यवस्था को बनाने की ओर विचार भी करना चाहिए।
24 मार्च 2020 को भारत में कोरोना के कारण पहली तालाबंदी की घोषणा की गई। इस बीच कोरोना, एक वैश्विक महामारी के तौर पर तो सामने आया ही, साथ ही साथ इसके आर्थिक और सामाजिक पहलू भी खुल कर सामने आए। तालाबंदी के दौरान, असमानता की छिपी हुई दरारेंं एक दम उभर कर जैसे और गहरी हो गईंं।
स्वास्थ्य के अलावा भूख, रोज़गार, प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा, डॉक्टर्स को उपलब्ध सुरक्षा किट्स एवं उनकी सुरक्षा, ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो लगातार मीडिया में जगह पा रहे हैं।
इस पूरी चर्चा में एक जो एक बड़ा सवाल गायब हैं, वो है शिक्षा और शिक्षा के अधिकार का सवाल । कोरोना और कोरोना के पश्चात बच्चो की शिक्षा का स्वरूप कैसा दिखेगा, ये सोचने का विषय हैं।
मानव संसाधन मंत्रालय की 2016-17 रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत के विद्यालय जाने वाले बच्चों में 11.3 करोड़ बच्चें (65% ) आज भी जन विद्यालयों में अपनी शिक्षा ग्रहण करते हैं।
कुछ विरले अपवादों को को छोड़ दें तो आज भी इन विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र-छात्रा ऐसे परिवार से आते हैं जो आर्थिक और सामाजिक स्तर पर कही पीछे छूट गए हैं। कोरोना का इनपरिवारों पर प्रभाव, इनके बच्चों की शिक्षा की
दिशा तय करेगा।