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अरसे तक चंद्रमा के इतिहास का मूलभूत प्रश्न इसकी उत्पत्ति रही थी। पूर्व की परिकल्पनाओं में पृथ्वी से विखंडन, अधिग्रहण और सह-अभिवृद्धि शामिल थी।[1] आज भीमकाय टक्कर परिकल्पना व्यापक रूप से वैज्ञानिक समुदाय द्वारा स्वीकार्य है। [2]
भीमकाय टक्कर परिकल्पना का एक कलात्मक दृश्य।
सह-अभिवृद्धि सिद्धांत कहता है, पृथ्वी और चंद्रमा का निर्माण साथ-साथ हुआ है। यह सिद्धांत विफल रहा क्योंकि यह नहीं बता सका आखिर चंद्रमा में लौह कोर का अभाव क्यों है।[3] यदि दोनों का निर्माण साथ-साथ हुआ होता तो उनकी संरचनाए भी समान होनी चाहिए थी।
एक दूसरी परिकल्पना के अनुसार चंद्रमा का निर्माण सौरमंडल में ऐसी जगह हुआ जहां लौह मात्रा अल्प थी और फिर इसे पृथ्वी की इर्दगिर्द कक्षा में अधिग्रहित कर लिया गया। जब चंद्रमा की चट्टानों ने पृथ्वी की तरह ही समान आइसोटोप संरचनाओं को दिखाया तब अधिग्रहण का यह सिद्धांत भी मुंह के बल गिर गया। [4]
एक अन्य परिकल्पना विखंडन सिद्धांत पर आधारित है, जिसके अनुसार पृथ्वी की सतह के करीब 2900 किलोमीटर नीचे एक नाभिकीय विखंडन के फलस्वरूप पृथ्वी की धूल और पपड़ी अंतरिक्ष में उड़ी और इस मलबे ने इकट्ठा होकर चांद को जन्म दिया। [5] हालांकि यह सिद्धांत विवादित है।
चंद्रमा की उत्पत्ति के बारे में एक नया शोध सामने आया है। इसका मानना है कि अरबों साल पहले एक बड़ा ग्रह पृथ्वी से टकराया था। इस टक्कर के फलस्वरूप चांद का जन्म हुआ। शोधकर्ता अपने इस सिद्धांत के पीछे अपोलो के अंतरिक्ष यात्रियों के ज़रिये चांद से लाए गए चट्टानों के टुकड़ों का हवाला दे रहे हैं। इन चट्टानी टुकड़ों पर 'थिया' नाम के ग्रह की निशानियां दिखती हैं। [5] चंद्रमा, पृथ्वी और थिया दोनों के तत्वों से बना है जो एक-दूसरे से थोड़े बहुत भिन्न थे।[6]