Social Sciences, asked by maheshkumarjnvc5a, 3 months ago

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अगर 1857 की कान्ती में राजस्थान की रियासतों ने सहयोग किया होता तो शायद आज कुछ और ही परिणाम होते​

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Answered by Devidurgi
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आज़ादी की पहली लड़ाई यानी साल 1857 का विद्रोह भारतीय इतिहास के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है. इस संघर्ष के साथ ही भारत में मध्यकालीन दौर का अंत और नए युग की शुरुआत हुई, जिसे आधुनिक काल कहा गया.

इस संघर्ष के दौरान एक और ऐसी चीज थी जिस पर गौर करना ज़रूरी है वो था ब्रितानी और भारतीय प्रतिद्वंदियों के बीच फ़ैला अंधविश्वास.

लाला हनवंत सहाय के दादा ने चांदनी चौक में सुना था कि जब लाल क़िले की प्राचीर के ठीक ऊपर नया चांद (पखवाड़े का पहला चांद) पहुंच जाएगा तो लाल क़िले का आंगन फ़िरंगियों के खून से सराबोर हो जाएगा, लेकिन अगर वो खून बहता हुआ यमुना नदी में पहुंच गया और उसने यमुना को अपवित्र कर दिया तो अंग्रेज एक बार फिर वो सब जीत जाएंगे जो कुछ उन्होंने गवांया होगा.

साल 1912 में हुए हार्डिंग बम कांड की साजिश रचने के लिए हनवंत सहाय को भी गिरफ्तार किया गया था, हालांकि उस समय तक उनके दादा की मौत हो चुकी थी.

फ़ैज़ाबाद के मौलवी, अहमदुल्लाह शाह ने नए चांद से जुड़ी ये भविष्यवाणी की थी. हांलाकि उन्होंने ये बात दिल्ली की बजाय मेरठ के मुख्य बाज़ार में कही थी. वहां की दीवारों पर लाल रंग से लिखा हुआ था 'सब लाल होगा.'

सर चार्ल्स नेपियर का कथन कि, ''अगर वे गवर्नर जनरल बनते हैं तो ईसाई धर्म को राज्य धर्म बना देंगे क्योंकि भारत अब इंग्लैंड के आधीन हो गया है'' का विरोध करते हुए मौलवी अहमदुल्लाह ने हिंदुओं और मुसलमानों से अपील की थी कि वो मिलकर अपने पूर्वजों के भरोसे और विश्वास को बचाएं.

मेरठ के सदर बाज़ार में मौलवी की इन बातों का वहां मौजूद सिपाहियों पर गहरा असर देखने को मिला था. 'मारो फ़िरंगियों को' की पुकार लगाते सभी सिपाही छावनी परिसर की तरफ प्रवेश कर गए और अंग्रेजों के बंगलों में जा घुसे.

40 साल के कर्नल जॉन फिनिस ने जब इन सिपाहियों को रोकने की कोशिश की तो उनके सिर पर गोली मार दी गई, रविवार और सोमवार को कई लोगों की जान गई, मरने वालों में जॉन पहले थे. बाद में सिपाही दिल्ली के लिए रवाना हो गए.

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