Social Sciences, asked by kumarrakesh44528, 2 months ago

D. बहुसंख्यक वाद के श्रीलंका में बढ़ने के क्या परिणाम रहे ?​

Answers

Answered by Anonymous
0

Answer:

कोलंबो के छोर पर स्थित मेरे घर से बमबारी की आवाज सुनाई नहीं देती। युद्ध हमारे यहां से 25 किमी उत्तर में वन्नी प्रदेश में चल रहा है।कोलंबो, 22 जून (आईएएनएस)। कोलंबो के छोर पर स्थित मेरे घर से बमबारी की आवाज सुनाई नहीं देती। युद्ध हमारे यहां से 25 किमी उत्तर में वन्नी प्रदेश में चल रहा है।लड़ाई हर रात चलती जाती है। श्रीलंका की वायु सेना, नौसेना, थल सेना रूस के मिग विमानों, चीन के एफ- 7 जेट, अमेरिका के 'लड़ी बम' व नापाम बम, चेकोस्लोवाकिया के टैंक और रॉकेट लांचर और चीन के गोला बारूद की मदद से लिट्टे के गुरिल्लाओं पर हमला बोल रही है और लिट्टे के गुरिल्ला देश के पूर्वी प्रांत में 10 साल तक पांव जमाए रखने के बाद हार चुके हैं।

Explanation:

एक जमाने में 10-12 हजार योद्धाओं वाली लिट्टे की सेना अब कोई पांच-छह हजार की ही रह गई है। अब लिट्टे केवल वन्नी के जंगलों तक ही सीमित हो गया है। तमिल गुरिल्ला एक परंपरागत युद्ध में श्रीलंका की फौज को हरा पाने में या रोके रखने में असमर्थ साबित हो रहे हैं।

अगर लिट्टे तमिल विद्रोही आज भी वन्नी के जंगलों में डटे हुए हैं, तो उसका प्रमुख कारण उनकी राजनीतिक साख है। लिट्टे को दो बार जाफना से खदेड़ा जा चुका है।

पहली बार 1988 में भारतीय सेना की आईपीकेएफ द्वारा, जब राष्ट्रपति जयवर्धने की तिकड़मों के चलते भारत की मध्यस्थता में हुआ शांति समझौता टूट गया।

दूसरी बार उन्हें 1995 में तत्कालीन राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंग के निर्देश पर सैनिक अभियान के द्वारा खदेड़ दिया गया। दोनों बार तमिल विद्रोहियों ने जाफना की अधिकांश जनता के साथ वन्नी के जंगलों में शरण ली। वहां से उन्हें उखाड़ा नहीं जा सका है।

श्रीलंका के तमिल समुदाय के हितों एवं अधिकारों के प्रतिनिधि के रूप में लिट्टे की भूमिका ने भारतीय सेना एवं श्रीलंका की सेना को अपना हमला इस हद से आगे ले जाने से रोके रखा। कम से कम अब तक तो यह स्थिति कायम है।

पिछले कई दशकों में अपने असलहे और रणनीति में धीरे-धीरे सुधार करने के बाद श्रीलंका की सेना आज इस स्थिति में पहुंची है कि वह लिट्टे को परंपरागत युद्ध में हरा सके।

70-80 के दशक में तमिल पृथकतावादी आंदोलन ने श्रीलंका की सेना को गुरिल्ला तकनीक के सहारे उत्तर एवं पूर्व के बड़े इलाके में खदेड़ने में सफल हुई थी लेकिन आज जमीन पर कब्जा बनाए रखने की जिम्मेवारी लिट्टे पर है। लिट्टे सिर्फ गुरिल्ला तकनीकों के सहारे नहीं रह सकती। उसे परंपरागत युद्ध लड़ना ही पड़ेगा।

तमिल पृथकतावादी गुरिल्ला योद्धाओं के जज्बे को समझने के लिए श्रीलंका के इतिहास पर एक नजर डालनी जरूरी है। तमिल पृथकतावाद श्रीलंका में तमिल समुदाय के खिलाफ भेदभाव एवं शोषण की नीतियों का परिणाम है।

1948 में राज की समाप्ति के बाद बहुसंख्यक सिंहली समुदाय के नेतृत्व में श्रीलंका का राज्य संभाला गया। शुरू से ही श्रीलंका सरकार ने जातीय भेदभाव की नीति अपनाकर बहुसंख्यक सिंहली वोट जीतने की राजनीति खेली।

इन नीतियों के चलते दोनों प्रमुख अल्पसंख्यक समुदाय, तमिल और मुसलमान (श्रीलंका में उन्हें मूर भी कहा जाता है) सामाजिक, आर्थिक एवं प्रशासनिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्रों में भेदभाव के शिकार हुए।

Similar questions