डॉ. भीमराव अम्बेडकर हे सामाजिक विचार वर्णन कीजिए
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बाबा साहब अंबेडकर मानते थे कि भारत के पिछड़ेपन का मुख्य कारण भूमि-व्यवस्था के बदलाव में देरी है. इसका समाधान लोकतांत्रिक समाजवाद है जिससे आर्थिक कार्यक्षमता एवं उत्पादकता में वृद्धि होगी तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था का कायापलट संभव होगा.
Explanation:
जब भी भारत के सामाजिक एवं आर्थिक मुद्दों की बात हो और डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर का जिक्र न हो, इसका अर्थ है कि हम विषय के साथ न्याय नही कर रहे हैं. बिना बाबासाहेब को पढ़े हम भारत के सामाजिक एवं आर्थिक मुद्दों को नही समझ सकते. उनका जन्म जिस जाति में हुआ उसे हिन्दू वर्ण व्यवस्था में सबसे नीचे माना जाता था. इसलिए समानता के लिए उनको जन्म से ही संघर्ष करना पड़ा. उन्होंने पूरी जिन्दगी सामाजिक संघर्ष किया एवं अपने समाज के स्वाभिमान के लिए लड़ते रहे. उनके सामाजिक विचारो में हमें दलित वंचित समाज के लिए सामाजिक न्याय को पाने की कोशिश झलकती है. वे एक ऐसा आदर्श समाज बनाना चाहते थे जो समानता, स्वतंत्रता और बंधुता के विचारों पर आधारित हो. उनके अनुसार जाति व्यवस्था आदर्श समाज के निर्माण में घातक है.
अर्थशास्त्र उनका पसंदीदा विषय था. वे विधार्थी जीवन से ही वे अर्थशास्त्र विषय से प्रभावित थे. उन्होंने अपनी स्नातक से लेकर पीएचडी तक की पढाई अर्थशास्त्र विषय में ही की है और वह भी दुनिया के श्रेष्ठतम विश्वविद्यालयों से हुई. अर्थशास्त्र के विभिन्न पहलुओ पर उनके शोध उल्लेखनीय है, लेकिन डॉ. अंबेडकर को केवल दलितों एवं पिछडों के मसीहा तथा भारतीय संविधान निर्माता के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, उनके अर्थशास्त्रीय पक्ष को कभी उभारने का प्रयास नहीं किया गया. इस लेख में हम बाबासाहेब के आर्थिक पक्षों का विशेष रूप से चर्चा करेंगे.
डॉ. अंबेडकर की पहचान यदि एक अर्थशास्त्री के रूप में नही बन पाई तो इसका कारण यह है कि 1923 में भारत लौटने के बाद वे देश की सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था को बदलने के लिए समर्पित हो गए और अर्थशास्त्र विषय तथा आर्थिक मुद्दों पर अपना शोध जारी नही रख पाए वे भारत आने के बाद भारत में व्याप्त सामाजिक कुरुतियों की समाप्ति के कार्य में लग गए. सामाजिक मुद्दों पर काम करते हुए भी उनके कार्य को देखा जाए तो ये कहीं ना कहीं आर्थिक पक्ष के साथ भी जुड़े हैं, जब वो महिलाओं को उद्यमी बनाने की बात करते या दलितों को भी उद्यमी बनाने में सरकार की सहायता की बात करते हैं. उनका मानना था कि “आर्थिक उत्थान के बिना कोई भी सामाजिक एवं राजनीतिक भागीदारी संभव नही होगी. डॉ. अंबेडकर ने भारतीय मुद्रा (रुपए) की समस्या, महंगाई तथा विनिमय दर, भारत का राष्ट्रीय लाभांश, ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का विकास, प्राचीन भारतीय वाणिज्य, ईस्ट इंडिया कम्पनी का प्रशासन एवं वित्त, भूमिहीन मजदूरों की समस्या तथा भारतीय कृषि की समस्या जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर शोध ही नहीं किया बल्कि इन मुद्दों से सम्बंधित समस्याओं के तर्किक एवं व्यावहारिक समाधान भी दिए.
20वीं सदी के शुरुआत में विश्व के लगभग सभी प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने डॉ अंबेडकर के अर्थशास्त्र विषय की समझ तथा उनके योगदान को सराहा और उनके शोध पर महत्वपूर्ण टिप्पणी भी की. अभी हाल के दिनो मे नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री आमर्त्य सेन ने कहा “डॉ. अंबेडकर अर्थशास्त्र के विषय मे मेरे पिता हैं”. सन 1917 में पीएचडी. शोध पूरा कर पाए, उनकी एमए. की थीसिस का विषय 'प्राचीन भारतीय वाणिज्य' (Ancient Indian Commerce) था, जो कि प्राचीन भारतीय वाणिज्य के प्रति उनकी समझ को दर्शाता है, इस थीसिस में उन्होंने प्राचीन भारतीय वाणिज्य की समस्याओं को रखा तथा उनके संभावित कारगर समाधान भी बताए.
Answer:
I could not understand your language please speak in English