Political Science, asked by uditghosh4944, 9 months ago

डाबरा गाँव की घटना का सम्बन्ध किस विषय से है ?

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Answered by Anonymous
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Explanation:

रॉबर्ट वाड्रा के चारों ओर आज सवाल ही सवाल हैं. मगर इनसे बड़ा सवाल यह है कि इनमें से किसी को वे जवाब देने लायक क्यों नहीं समझते? रॉबर्ट वाड्रा के वित्तीय दस्तावेजों और उनसे जुड़ी अन्य सामग्री का अध्ययन करने के बाद अगर बिना तकनीकी तफसील में जाए उन पर लग रहे आरोपों की कहानी कही जाए तो वह कुछ-कुछ ऐसी होगी.

रॉबर्ट वाड्रा की एक कंपनी है स्काईलाइट हॉस्पिटेलिटी प्रा.लि. (एसएचएल). यह कंपनी वर्ष 2007 में बनी और इसके आस-पास या बाद में उन्होंने बारह कंपनियां और बनाईं. इनमें से एक और महत्वपूर्ण कंपनी है स्काईलाइट रिएलिटी प्रा.लि. (एसआरएल). बनने के वक्त एसएचएल में लगाई गई कुल पूंजी थी एक लाख रुपये. साल 2007-08 में एसएचएल गुड़गांव के मानेसर में 15.38 करोड़ रुपये कीमत की एक जमीन खरीदने की सोचती है. सोचते ही इसे खरीदने के लिए जरूरी पहली किस्त का पैसा (7.95 करोड़ रुपये) उसे एक सरकारी बैंक – कार्पोरेशन बैंक – से मिल जाता है. इस जमीन को व्यावसायिक उपयोग में लाने के लिए जरूरी अनुमतियां भी उसे इसके कुछ दिनों के भीतर ही मिल जाती हैं. अब वाड्रा की कंपनी डीएलएफ नाम की देश की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी से इस 15 करोड़ की जमीन का सौदा 58 करोड़ में करती है. डीएलएफ तुरंत सौदे के लिए तैयार हो जाती है. वह न केवल इसके लिए पेशगी 50 करोड़ रुपये एसएचएल को दे देती है बल्कि अलग से दो साल तक इस्तेमाल के लिए उसे ब्याज-मुक्त 10 करोड़ रुपये और दे देती है. इसके अलावा एक अनहुए सौदे से पहले भी डीएलएफ, एसएचएल को 15 करोड़ रुपये दे देती है जिसे वह करीब एक साल तक अपने पास रखने के बाद डीएलएफ को लौटाती है. डीएलएफ से मिले पैसे का इस्तेमाल वाड्रा की कंपनियां तरह-तरह की संपत्तियों को खरीदने के लिए करती हैं. या फिर उनका ब्याज खाती हैं. एक मजे की बात यह भी है कि वाड्रा से जुड़ी कंपनियां अपने पास मौजूद धन के एक बड़े हिस्से का इस्तेमाल डीएलएफ की ही संपत्तियां खरीदने के लिए करती हैं.

उदाहरण के तौर पर, वाड्रा की कंपनी एसआरएल, डीएलएफ के अरालिया नाम के प्रोजेक्ट में साल 2008 में एक 10,000 वर्गफुट के विशालकाय अपार्टमेंट को खरीदती है. वित्तीय वर्ष 2009-10 के कंपनी के बहीखातों में इसकी कीमत 89 लाख रुपये दर्ज है. जबकि 2010-11 के दस्तावेजों में इसे 10.4 करोड़ रुपये दिखाया गया है. इसके अलावा कंपनी डीएलएफ के मैग्नोलिया नाम के प्रोजेक्ट में भी वर्ष 2008 में ही करीब 6,000 वर्गफुट क्षेत्रफल वाले 7 फ्लैट खरीदती है. इसके लिए 5.23 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया. अगर डीएलएफ की ही मानें तो इनमें से हर फ्लैट की कीमत करीब 6 करोड़ रुपये बैठती है.

वाड्रा पर आरोप लगाने वाले नवोदित राजनेता अरविंद केजरीवाल का आरोप है कि चूंकि मार्च, 2011 में वाड्रा के इन लेन-देनों की खबर इकोनॉमिक टाइम्स में छप गई थी इसलिए अपने बही-खातों को दुरुस्त करने के लिए वाड्रा ने 2010-11 में अरालिया वाले फ्लैट की कीमत 10.4 करोड़ रुपये दिखा दी. वे मैग्नोलिया के फ्लैटों की कम कीमत पर भी कई सवाल उठाते हैं. मगर मैग्नोलिया की कम कीमत के बारे में यह बचाव भी सुनने में आ रहा है कि चूंकि मैग्नोलिया भी बन ही रहा है इसलिए उसकी पूरी कीमत अभी वाड्रा द्वारा डीएलएफ को दी नहीं गई है.

डीएलएफ ने 15 करोड़ रुपये की मानेसर वाली जमीन 58 करोड़ रुपये में खरीदने का बचाव कुछ इस तरह से किया है कि चूंकि उसे यह जमीन व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए जरूरी सारी अनुमतियों के साथ मिली थी इसलिए उसने इस जमीन के लिए 58 करोड़ रुपये चुकाए. यहां सवाल यह खड़ा हो जाता है कि अगर डीएलएफ को ये अनुमतियां लेना इतना ही मुश्किल लगता था कि वह 15 करोड़ रुपये की ज़मीन के 58 करोड़ रुपये देने को तैयार हो गई तो वाड्रा को ये अनुमतियां इतनी आसानी से कैसे मिल गईं

जिनकी वजह से उन्होंने चट-पट में 43 करोड़ रुपये का मुनाफा बना लिया.

डीएलएफ का यह भी कहना है कि उसने मानेसर वाली जमीन को 2008-09 में ही अपने नाम करा लिया था. इसके उलट वाड्रा के वित्तीय दस्तावेज बताते हैं कि यह जमीन वर्ष 2010-11 तक एसएचएल के ही नाम थी. यहां जानना जरूरी है कि यदि आप किसी संपत्ति को खरीदने के तीन साल के भीतर बेचते हैं तो बेचने से हुए फायदे पर कैपिटल गेन टैक्स देना होता है. इस हिसाब से वाड्रा को 43 करोड़ रुपये के मुनाफे पर कम-से-कम 13 करोड़ रुपये टैक्स देना था. अब अगर डीएलएफ की बात सही मानें तो वाड्रा अपना बही-खाता गलत दिखा रहे हैं. और अगर डीएलएफ झूठ बोल रहा है तो हो सकता है कि वाड्रा ने टैक्स बचाने के लिए तीन साल तक जमीन डीएलएफ के नाम ही नहीं की. मगर डीएलएफ इसके लिए तैयार क्यों हो गई यह भी एक सवाल ही है.

सवाल यह भी है कि एक लाख रुपये की कुल पूंजी वाली कंपनी एसएचएल को कार्पोरेशन बैंक ने 7.94 करोड़ रुपये की बड़ी रकम उधार कैसे दे दी. हो सकता है बैंक ने ऐसा इसलिए किया हो कि उसके वाड्रा की किसी और कंपनी से अच्छे व्यापारिक संबंध हों और उसकी साख या ज़मानत के आधार पर एसएचएल को बैंक से पैसे मिल गए हों. या फिर वाड्रा को, जो वे हैं, वह होने का फायदा मिल गया? इस लेख के लिखे जाने के बाद टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर बताती है कि कार्पोरेशन बैंक के मुख्य प्रबंध निदेशक अजय कुमार का कहना है कि बैंक ने कभी एसएचएल को 7.94 करोड़ रुपये का ओवरड्राफ्ट दिया ही नहीं. उधर वर्ष 2007-08 की एसएचएल की वार्षिक रपट में कार्पोरेशन बैंक द्वारा दिए गए ओवरड्राफ्ट का जिक्र है. तो ऐसे में सवालों की लिस्ट में दो और जुड़ जाते हैं. पहला, अगर बैंक से नहीं तो जमीन खरीदने के लिए जरूरी पैसा आया कहां से? और दूसरा, क्या एसएचएल की वार्षिक रपट में हेराफेरी की गई थी?

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