डी. एन.ए. को शुध्द रूप से मुक्त करने हेतु कोई चार उपाय लिखिए।
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Explanation:
पौधों, जन्तुओं एवं सूक्ष्मजीवों सहित विभिन्न प्रकार के जीवधारी, जो इस ग्रह पर हमारे सहभागी हैं, संसार को रहने योग्य एक सुन्दर स्थान का रूप प्रदान करते हैं। सजीव जीवधारी पर्वतीय चोटियों से लेकर समुद्र की गहराइयों, मरुस्थलों से लेकर वर्षावनों तक लगभग सभी जगहों पर पाये जाते हैं। इनकी प्रकृतियों, व्यवहार, आकृति, आकार एवं रंग भिन्न-भिन्न होते हैं। जीवधारियों में पायी जाने वाली असाधारण विविधता हमारे ग्रह के अभिन्न एवं महत्त्वपूर्ण भागों की रचना करती है, हालाँकि निरन्तर बढ़ रही जनसंख्या के कारण जैव विविधता को गम्भीर खतरों का सामना करना पड़ रहा है।
इस पाठ में हम उन क्रियाकलापों का अध्ययन करेंगे जिनके द्वारा मानव जैवविविधता को क्षति पहुँचा रहा है। उन प्रयासों का भी अध्ययन करेंगे जो जैवविविधता के संरक्षण एवं सुरक्षा के लिये किए जा रहे हैं एवं जिनकी इस सम्बन्ध में आवश्यकता है।
उद्देश्य
इस पाठ के अध्ययन के समापन के पश्चात आपः
- जैवविविधता की अवधारणा की व्याख्या कर सकेंगे;
- मानवकल्याण एवं आर्थिक विकास के लिये जैवविविधता के महत्त्व का वर्णन कर सकेंगे;
- भारतीय जैव विविधता की विशिष्टता एवं संबंधित क्षेत्रीय विशिष्टता की व्याख्या कर सकेंगे;
- भारतीय एवं वैश्विक संदर्भ में जैवविविधता के ह्रास के कारणों को सूचीबद्ध कर सकेंगे।
- जैवविविधता के संरक्षण को तर्कसंगत ठहरा सकेंगे;
- विलुप्त, संकटापन्न एवं विलोपोन्मुखी स्पीशीजों में विभेद कर सकेंगे;
- संरक्षण की विभिन्न निजस्थानिक (in-situ) एवं परस्थानिक (ex-situ) विधियों का वर्णन कर सकेंगे;
- विशिष्ट वन्यजीव संरक्षण परियोजनाओं जैसे प्रोजेक्ट टाइगर, प्रोजेक्ट ऐलीफेन्ट, प्रोजेक्ट क्रोकोडाइल इत्यादि के उद्देश्यों का वर्णन कर सकेंगे;
- राष्ट्रीय पार्कों; अभ्यारण्यों एवं जैव मंडल आरक्षित क्षेत्रों के बारे में जानकारी के महत्त्व का वर्णन कर सकेंगे;
- राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं (निकायों) द्वारा अपनाए गए कानूनी उपायों के बारे में बता सकेंगे।
15.1 जैविक विविधता क्या है
पृथ्वी पर पायी जाने वाली सजीव जीवों की सभी किस्में सामूहिक रूप से जैवविविधता का गठन करती हैं। जैविक विविधता के आमतौर से तीन विभिन्न स्तर हैं- क) आनुवांशिक विविधता अर्थात आनुवांशिक स्तर पर, ख) स्पीशीज विविधता अर्थात स्पीशीजों के स्तर पर तथा ग) पारितंत्र की विविधता अर्थात पारितंत्र के स्तर पर।
15.1 आनुवांशिक विविधता (Genetic diversity)
जीवाणु से लेकर उच्चतर पौधों एवं जन्तुओं तक प्रत्येक स्पीशीज आनुवांशिक सूचना के विशाल भंडार को संचित रखती है। उदाहरण के लिये माइकोप्लाज़मा (Mycoplasma) में जीन की संख्या 450-700, जीवाणु (जैसे ई- कोलाई, Escherichia coli) में 4000, फलमक्खी ड्रोसोफिला मेलेनोगैस्टर (Drosophila melanogaster) में 13000, चावल (ओराइजा सटाइवा, Oryza sativa) में 32000-50000 तथा मानव (होमो सेपियंस, Homo sapiens) में 35000 से 45000 होती है।
जीनों में यह विभिन्नता, केवल संख्या में ही नहीं, संरचना में भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह किसी समष्टि को अपने वातावरण के साथ अनुकूलन करने तथा प्राकृतिक वरण के प्रक्रम के प्रति अनुक्रिया करने में सहायक होती है। यदि किसी प्रजाति में अधिक आनुवांशिक विभिन्नताएँ हैं तो यह परिवर्तनशील पर्यावरण में सही ढंग से अनुकूलन कर सकती है। स्पीशीज में कम विविधता आनुवांशिक रूप से समान फसल के पौधों में आनुवांशिक समानता का कारण है। यह समांगता एक समान गुणवत्ता वाले बीज उत्पन्न करने के लिये वांछनीय है परन्तु आनुवांशिक समानता स्पीशीज में परिवर्तनशील पर्यावरणीय अनुकूलन करने में रुकावट उत्पन्न करती है क्योंकि सभी पौधों में प्रतिरोध का स्तर समान होता है।
उपर्युक्त पृष्ठभूमि में आनुवांशिक विविधता पौधों, जानवरों और सूक्ष्मजीवों की स्पीशीजों में निहित जीन की विविधता को दर्शाता है। व्यक्तिगत स्तर पर नया आनुवांशिक परिवर्तन जीन एवं गुणसूत्री उत्परिवर्तन के द्वारा होता है तथा जीवों में लैंगिक जनन के साथ पुनर्संयोजन के द्वारा समष्टि में फैल सकता है। उदाहरण के लिये दो भाइयों की संरचना में अंतर होता है यद्यपि दोनों के माता-पिता समान हैं। यह अन्तर एकल (एक ही जीन के विभिन्न संस्करण) संरचना में हो सकता है। सम्पूर्ण जीन में (विशिष्ट अभिलक्षणों को निर्धारित करने वाले लक्षण) या फिर गुणसूत्र की संरचना में हो सकता है। अन्तरप्रजनन करने वाली समष्टियों में उपस्थित आनुवांशिक विविधता (जीन पूल का निर्धारण या प्राकृतिकवरण की प्रक्रिया के द्वारा किया जाता है। चयन कुछ विशिष्ट जननिक दायित्व को पूरा करने को बढ़ावा देता है एवं इस जीन पूल की आवृत्ति में परिणामस्वरूप बदलाव होते हैं।
यह जीवधारियों में अनुकूलन के आधार की रचना करता है। भारत में आनुवांशिक विविधता अत्यधिक है और इसे उच्च फसल आनुवांशिक विविधता का वेवीलोव केन्द्र माना जाता है। यह नाम रूस के कृषि वनस्पतिज्ञ एन आई वेवीलोव (Ni Vavilov) के नाम पर रखा गया है जिन्होंने 1950 में विश्वभर में कृषिक पादपों के उद्भव के ऐसे आठ केन्द्रों की पहचान की थी।
15.1.2 स्पीशीज विविधता (Species diversity)
स्पीशीज विविधता का अर्थ है किसी भौगोलिक क्षेत्र में कई किस्म की स्पीशीजें। स्पीशीज विविधता को निम्न के सम्बन्ध में मापा जा सकता है।
क. स्पीशीज समृद्धि : एक निर्धारित क्षेत्र में विभिन्न स्पीशीजों की संख्या को दर्शाती है।
ख. स्पीशीज बाहुल्यः स्पीशीजों में अपेक्षित संख्या को दर्शाता है उदाहरण के लिये किसी क्षेत्र में पादपों, जन्तुओं एवं सूक्ष्मजीवों की संख्या किसी दूसरे क्षेत्र की अपेक्षा अधिक हो सकती है।
ग. वर्गिकीय (Taxonomic) अथवा जातिवृत्तीय (Phylogenetic) विविधताः स्पीशीजों के विभिन्न समूहों के मध्य आनुवांशिक सम्बन्ध को दर्शाती है।
Explanation:
डी. एन.ए. को शुध्द रूप से मुक्त करने हेतु कोई चार उपाय लिखिए।