डॉक्टर भगवान का रूप होते है किंतु संक्रमण/ महामारी के दौर में" जीवन रक्षक अस्पतालों में चलते मृत्यु के खेल" विषय पर लगभग 400 शब्दो में लेख लिखे
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भगवान का नाम बाद में पहले डॉक्टर याद आता है
कुछ हुआ तो बड़ी उम्मीद के साथ उसके पास
उसका केवल यह कहना कि चिन्ता की कोई बात नहीं
मन को सुकून मिल जाता है
आधी बीमारी भाग जाती है
प्रसव से लेकर मृत्यु तक साथ निभाने वाला
नन्हें दूधमुँहे बच्चे को भी उसके इलाज पर छोड़कर निश्चिंत
यहां सब कोई बराबर होता है
न कोई अमीर न कोई गरीब
न जात- पात न धर्म का बंधन
अपनी जीवन की डोर उस पर सौंपते हैं
रात हो या दिन हर वक्त इलाज को तत्पर
दंगा-फ़साद हो या दुर्घटना
लाइलाज बीमारी हो या सर्दी-जुखाम
वह भी अपनी पूरी ताकत और ज्ञान के साथ
अगर अच्छा हो जाए तो तमाम दुआएं मिलती है
हर शख्स धन्यवाद देता है
चेहरे खिल उठते हैं
पर अगर वह सफल न हुआ तो तोड़-फोड़ शुरु हो जाती है
वह ईश्वर तो नहीं है वह भी जब ऑपरेशन करता होगा
तो कामना करता होगा कि उसके हाथ कांपें नहीं
तभी तो कहता है ऑपरेशन सफ़ल है आगे ऊपर वाले के हाथ में है
जीवन बचाने वाले का धन्यवाद तो करना ही चाहिए
न सफ़ल, कोशिश तो की
डॉक्टर का सम्मान करना सभी की जिम्मेदारी है
आख़िर उसके भरोसे तो हम हैं
ऊपर वाला तो नहीं आ सकता
तभी तो उसने अपने प्रतिनिधि के रूप में उसे भेजा है