डाल गय सिक्क पडसाम अमरपापा का गप इसी तरह नर्मदा के उद्गम स्थल पर बना जल-कुण्ड भी बहुत पहले पक्का नहीं था। अपने गाँव में बड़े-बूढ़ों से और परिक्रमावासियों से सुना है कि अमरकण्टक में माई रेवा बाँस के भिड़े में से निकली हैं। बड़ा हुआ, यहाँ आया तो ऐसा कुछ नहीं। बाँस के भिड़े से निकलने वाली बात अभी भी जिज्ञासा बनी है। लगता है यहाँ तब आमदरफ्त नहीं रही होगी। प्रकृति अपने निसर्ग पर बार-बार निहाल होकर गर्व करती रही होगी। सीमेण्ट और कंकरीट से नदियों के उद्गमों की घेरा बन्दी शुरू नहीं हुई होगी, तब बहुत पहले बाँस के भिड़े यहाँ रहे होंगे। उनमें से नर्मदा का जलस्रोत निकलता रहा होगा। बाँस के भिड़ों का साफ करके कुण्ड का निर्माण हुआ हो या प्राकृतिक स्थितियों के बदलने और बाँस वनों के कटने से बाँस का भिड़ा समाप्त हो गया हो। जो भी हो अमरकण्टक के घर जन्म लेकर नर्मदा ने सृष्टि को सोहर गाने का अवसर जरूर दिया है। नर्मदा जीवन उत्स का चरम और अमर फल है। अर्थ लिखिए ?
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