डामिे॔स या कोरियम किस स्तर में विकसित होते हैं
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-समझ के बात हे, कतको मन काव्य-साहित्य-संगीत ल आनंद के जिनिस समझथें। त ’’गायन म निःशब्द लयात्मकता या लयबद्धता अउ नाद के विविध गुणमन के समन्वय होथे, अउ कतको। गायन म एक-एक कण्ठ स्वर के पहिचान हो जाथे। गायन म साहित्य या काव्य के आनंद ह घलो अभिन्न रूप ले जुड़े हे।’’1 पक्का होथे के लोककला के जम्मों विधा म कला के संगेसंग साहित्य तत्व घला हावे। एकर खोज शोधार्थी मन ल करनच् परही। भारतीय चैसठ कला म भाषा ज्ञान, विद्या, गायन, वादन, नर्तन, नाट्य, आलेखन विशेष महत्व के हावे के येकर बगैर लोक संस्कृति परंपरा ह कायम नइ हो सकय जइसे जुड़ा बिना नांगर ह नइ चल सकय। मतलब लोक के ललित विधा मन ले साहित्य के भिन्न विधामन आगी म तप के प्रगट होय हे, जेमा गायन, वादन, नाट्य, नृत्य ल लेके लोक सांस्कृतिक मंच के आज अड़बड़ेच् विस्तार होय हे; जेमा लोक के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, नैतिक अउ सांस्कृतिक दृश्य ह चटक चंदेनी असन सुघ्घर दिखत हे। जइसे संझा बेरा के सुकवा हर रेंगहार ल अपन अंजोर म वोकर ठिकाना तक पहुँचा देथे। समाज के मनखेमन ल उचित दिशा म रेंगायबर रस्ता बतइया कुछेक लोककला संस्थामन के नाव ह अइसन हावे - 1. चंदैनी गोंदा, 2. सोनहा बिहान, 3. लोक नाट्य (नाचा-रहस), 4. पंथी नृत्य मंडली, 5. छत्तीसगढ़ देहाती कला मंडल। गाँव-गाँव म अउ कतरो हें।