डोपिंग क्या है और डोप टेस्ट से सम्बंधित अतंराष्ट्रीय प्रयोगशाला कहाँ स्थित है?
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एक घटना से डोपिंग को समझा जा सकता है। घटना 1968 के मेक्सिको ओलिंपिक ट्रायल की है। दिल्ली के रेलवे स्टेडियम में कृपाल सिंह 10 हजार मीटर दौड़ में भागते समय ट्रैक छोड़कर सीढ़ियों पर चढ़ गए थे। उस दौरान कृपाल सिंह के मुंह से झाग निकलने लगा था और वह बेहोश हो गए। जांच में पता चला कि कृपाल ने ताकत बढ़ाने वाला पदार्थ ले रखा था ताकि वह मेक्सिको ओलिंपिक के लिए क्वॉलिफाई कर सकें। इसे ही डोपिंग कहते हैं। क्या है डोप : वह ताकत बढ़ाने वाला पदार्थ जिसे खाने से किसी भी खिलाड़ी का स्टैमिना एकदम से बढ़ जाए। इस शॉर्टकट के जरिए वह खेल के मैदान में अपने विरोधी खिलाड़ियों को पीछे छोड़ सकता है। कैसे होती है डोपिंग : कोई भी खिलाड़ी लिक्विड फॉर्म में इंजेक्शन के जरिए या प्रतिबंधित पाउडर खाकर या उसे पानी में घोलकर ले सकता है। इसे खाने-पीने की चीज में मिला कर भी लिया जा सकता है। क्या होता है डोप टेस्ट? ताकत बढ़ाने वाली दवाओं के इस्तेमाल को पकड़ने के लिए डोप टेस्ट किया जाता है। किसी भी खिलाड़ी का किसी भी वक्त डोप टेस्ट लिया जा सकता है। किसी इवेंट से पहले या ट्रेनिंग कैंप के दौरान डोप टेस्ट में खिलाड़ियों का यूरिन (सू सू का सैंपल) लिया जाता है। ये टेस्ट NADA (नैशनल एंटी डोपिंग एजेंसी) या फिर WADA (वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी) की तरफ से कराए जाते हैं। इसमें खिलाड़ियों के यूरिन को वाडा या नाडा की खास लैब में टेस्ट किया जाता है। नाडा की लैब दिल्ली में और वाडा की लैब्स दुनिया में कई जगहों पर हैं। इंटरनैशनल गेम्स में ड्रग्स के बढ़ते चलन को रोकने के लिए वाडा की स्थापना 10 नवंबर, 1999 को स्विट्जरलैंड में की गई थी। इसी के बाद हर देश में नाडा की स्थापना की जाने लगी। कब बने नियम इंटरनैशनल ऐथलेटिक्स फेडरेशन ऐसी पहली संस्था थी, जिसने 1928 में डोपिंग पर नियम बनाए। 1966 में इंटरनैशनल ओलिंपिक काउंसिल ने डोपिंग को लेकर मेडिकल काउंसिल बनाई। इसका काम डोप टेस्ट करना था। 1968 के ओलिंपिक खेलों में डोप टेस्ट पहली बार हुए। डोपिंग के 5 तरीके इंटरनैशनल ओलिंपिक असोसिएशन के नियमों के अनुसार डोपिंग के लिए सिर्फ खिलाड़ी ही जिम्मेदार होता है। डोपिंग में 5 तरह की दवाएं आती हैं। ये हैं - स्टेरॉयड, पेप्टाइड हॉर्मोन, नार्कोटिक्स, डाइयूरेटिक्स और ब्लड डोपिंग ब्लड डोपिंग इसमें खिलाड़ी कम उम्र के लोगों का ब्लड खुद को चढ़ाते हैं। इसे ब्लड डोपिंग कहा जाता है। कम उम्र के लोगों के ब्लड में रेड ब्लड सेल्स ज्यादा होते हैं जो खूब ऑक्सिजन खींच कर जबरदस्त ताकत देते हैं। स्टेरॉयड यह हमारे शरीर में पहले से ही मौजूद होता है, जैसे टेस्टेस्टेरॉन। जब ऐथलीट स्टेरॉयड के इंजेक्शन लेते हैं तो यह शरीर में मासपेशियां बढ़ा देता है, इसलिए पुरुष खिलाड़ी इसका इस्तेमाल करते हैं। पेप्टाइड हॉर्मोन स्टेरॉयड की ही तरह हॉर्मोन भी शरीर में मौजूद होते हैं। इंसुलिन नाम का हॉर्मोन डायबीटीज के मरीजों के लिए जीवन रक्षक हॉर्मोन है लेकिन हेल्दी इंसान को अगर इंसुलिन दिया जाए तो इससे शरीर से फैट घटने लगती है और मसल्स बनती हैं। नार्कोटिक्स नार्कोटिक या मॉर्फीन जैसी दर्दनाशक दवाइयां डोपिंग में सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाती हैं। कॉम्पिटिशन के दौरान दर्द का अहसास होने पर अक्सर खिलाड़ियों को इन दवाइयों के इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं। डाइयूरेटिक्स डाइयूरेटिक्स को लेने से शरीर पानी बाहर निकाल देता है। इसे कुश्ती या बॉक्सिंग जैसे मुकाबलों में अपना वजन घटा कर कम वजन वाले वर्ग में एंट्री लेने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। पकड़े जाने पर: इसके दोषियों को 2 साल या 4 साल सजा से लेकर आजीवन पाबंदी तक सजा का प्रावधान है। ‘ए’ टेस्ट में पॉजिटिव आने पर खिलाड़ी को बैन किया जा सकता है। खिलाड़ी चाहे तो ‘बी’ टेस्ट के लिए एंटी डोपिंग पैनल में अपील कर सकता है। इसके बाद फिर नमूने की जांच होती है। यदि ‘बी’ टेस्ट भी पॉजिटिव आए तो खिलाड़ी पर पाबंदी लग सकती है।
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ha be abhin ais
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