डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,- सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी है।| पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावै, 'देव',कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै॥पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
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कामदेव रूपी राजा बसंत रूपी बालक के लिए वृक्षों का पालना, नए-नए पत्तों का बिछौना बनाकर, शरीर पर फूलों का शोभायमान झगूला पहनाकर पवन उसे झुलाता है। मोर और तोता उस बालक से जैसे बातें कर रहे हैं। कोयल बोलकर ख़ुश होती हुई मानो बच्चे को बहलाने के लिए हाथ की ताली बजाने का काम कर रही है, कमल की कली जैसे नायिका है जो पराग को बिखेरती हुई राई-नमक उतारती है, लताएँ जैसे बच्चे को पुचकारी दे रही हैं। सुबह गुलाब खिलकर मानो चटकारी देता है और वह राजा कामदेव के बसंत रूपी बालक को प्रातःकाल जगाता है|
स्रोत :
रचनाकार : देव
संबंधित विषय : वसंत
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