डॉ. रघुवंश का जीवन-चरित्र हमें क्या प्रेरणा देता है? स्पष्ट कीजिए।
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डॉ. रघुवंश का जीवन चरित्र हमें यह प्रेरणा देता है कि यदि इरादे मजबूत हो तो शारीरिक अपंगता भी लक्ष्य की प्राप्ति में बाधा नहीं बन सकती। जो जीवन में सफल होने की ठान लेते हैं, उनके लिए कोई भी मुश्किल, कोई भी कष्ट, कोई भी अपूर्णता उनके लक्ष्य प्राप्ति में बाधा नहीं बन सकती।
डॉ. रघुवंश जिनका जन्म 30 जून 1921 को उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में हुआ था, वह अपने दोनों हाथों से अपंग थे। फिर भी वह जीवन में सफल बने। अपने दोनों हाथों से अपंग होने पर उन्होंने पैरों से लिखना-पड़ना सीखा और अपनी लगन व मेहनत से हिंदी भाषा में एम.ए. की डिग्री हासिल की और डॉक्टरेट की उपाधि भी हासिल की।
उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रवक्ता, रीडर व प्रोफेसर के रूप में कार्य किया और हिंदी साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देते हुये अनेक हिंदी कृतियों की रचना की।
उन्होंने सिद्ध किया कि शारीरिक अपंगता जीवन में सफलता प्राप्त करने की राह में बाधा नहीं बन सकती। बस व्यक्ति के मन में कुछ कर गुजरने की इच्छा शक्ति होनी चाहिए। डॉ. रघुवंश का जीवन चरित्र हमें अपने दुखों और कष्टों से लड़ने की एक अनूठी प्रेरणा देता है।