डाउन टू द अर्थ पुस्तकाचे प्रकाशक कोण आहेत
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सीएसई और डाउन टू अर्थ का खुलासा : पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश गंभीर नाइट्रोजन प्रदूषण से जूझ रहे हैं
- पानी में नाइट्रोजन का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से बहुत अधिक है
- नाइट्रोजन प्रदूषण मिट्टी की गुणवत्ता खराब कर सकता है, पानी को प्रदूषित करता है, स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है और जलवायु परिवर्तन का भी कारण है |
8 मार्च 2018, अमृतसर: भारत में यूरिया जैसे नाइट्रोजन उर्वरकों को इस्तेमाल फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जाता है। अब यह भूमि और जल प्रदूषण का कारक बन खतरनाक साबित हो रहे हैं। नई दिल्ली के प्रकाशित पर्यावरण और स्वास्थ्य आधारित पत्रिका डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट के अनुसारए यह नाइट्रोजन प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य को खराब करने के साथ जलवायु परिवर्तन के लिए भी जिम्मेदार है। पत्रिका की यह रिपोर्ट 10 साल के अध्ययन का निचोड़ है। यह अध्ययन द इंडियन नाइट्रोजन असेसमेंट पुस्तक की शक्ल में प्रकाशित हुआ है। इसे इंडियन नाइट्रोजन ग्रुप ;आईएनजीद्ध में शामिल वैज्ञानिकों ने तैयार किया है। भारत में इस तरह का यह पहला अध्ययन है।
डाउन टू अर्थ के मैनेजिंग एडिटर रिचर्ड महापात्रा बताते हैं, “आईएनजी के अध्ययन के अनुसार, भारत में नाइट्रोजन प्रदूषण का मुख्य स्रोत कृषि है। चावल और गेहूं की फसल सबसे ज्यादा प्रदूषण फैला रही है।” पिछले पांच दशकों में हर भारतीय किसान ने औसतन 6,000 किलो से अधिक यूरिया का इस्तेमाल किया है। इस यूरिया का 33 प्रतिशत उपभोग चावल और गेहूं की फसलें करती हैं, शेष 67 प्रतिशत मिट्टी, पानी और पर्यावरण में पहुंचकर उसे नुकसान पहुंचाता है।
नाइट्रोजन प्रदूषण पर चर्चा करने के लिए आज सीएसई द्वारा मीडिया ब्रीफिंग और पब्लिक मीटिंग आयोजित की जा रही है। यह मीटिंग अमृतसर के खालसा कॉलेज परिसर में होगी। इसमें करीब 100 पत्रकार, छात्र, अकैडमिक और किसानों के प्रतिनिधि शिरकत करेंगे।
पिछले 60 सालों में यूरिया का इस्तेमाल कई गुणा बढ़ गया है। 1960-61 में देश में केवल 10 प्रतिशत नाइट्रोजन फर्टीलाइजरों का इस्तेमाल किया जाता था। 2015-16 में यह बढ़कर 82 प्रतिशत पर पहुंच गया है। डाउन टू अर्थ द्वारा लिए गए साक्षात्कार में एक किसान कहते हैं “इस वक्त हम अपने खेत में 200 किलो यूरिया डाल रहे हैं लेकिन फसल पिछले साल के मुकाबले बहुत कम है। यूरिया हमारी जिंदगी को बर्बाद कर रहा है।”
नाइट्रोजन प्रदूषण किस प्रकार मिट्टी की गुणवत्ता खराब रहा है? डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट के अनुसार, मिट्टी में बहुत मात्रा में नाइट्रोजन के घुलने से उसका कार्बन कंटेंट कम हो जाता है और उसमें मौजूद पोषण तत्वों का संतुलन बिगड़ जाता है। नाइट्रोजन प्रदूषण पानी को भी प्रभावित करता है। पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के भूमिगत जल में नाइट्रेट की मौजूदगी विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से बहुत अधिक पाई गई है। हरियाणा में यह सर्वाधिक 99.5 एमजी प्रति लीटर है जो डब्ल्यूएचओ के मानक 50 एमजी प्रति लीटर से करीब दोगुना है।
महापात्रा के अनुसार, नाइट्रोजन प्रदूषण केवल पानी और मिट्टी तक ही सीमित नहीं है। नाइट्रस ऑक्साइड के रूप में यह ग्रीनहाउस गैस भी है जिसका जलवायु परिवर्तन में मुख्य योगदान है। भारत में उर्वरकों से नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जित होता है। सीवर और ठोस कचरे से भी यह निकलता है। डाउन टू अर्थ में एक विशेषज्ञ के हवाले से कहा गया है कि नाइट्रस ऑक्साइड ग्रीन हाउस गैस के रूप में कार्बन डाई ऑक्साइड से 300 गुणा खतरनाक है।
आईएनजी के अध्यक्ष एन रघुराम ने साक्षात्कार में डाउन टू अर्थ को बताया है कि नाइट्रोजन प्रदूषण के खतरे को सीमित किया जा सकता है। खाद्य सुरक्षा और उर्वरकों के इस्तेमाल में संतुलन स्थापित किया जा सकता है। भारत में यूरिया के अत्यधिक इस्तेमाल पर रोक लगाने की दिशा में काम हो रहा है। जरूरी है कि नाइट्रोजन प्रदूषण के असंतुलित इस्तेमाल को रोका जाए और नाइट्रोजन के गैर कृषि स्रोतों पर लगाम लगाई जाए।