डेविड ईस्टन द्वारा प्रतिपादित उत्तर व्यवहारवाद के कोई दो विशेषता बताइए।
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उत्तर-व्यवहारवाद के प्रतिपादक भी व्यवहारवादी क्रान्ति के जनक डेविड ईस्टन ही हैं। डेविडईस्टन ने व्यवहारवाद की रूढ़िवादिता, जड़ता और दिशाहीनता के कारण 1969 में इस क्रान्तिकी घोषणा की। इसे नव-व्यवहारवाद भी कहा जाता है। व्यवहारवादी आन्दोलन जब अपनीसफलता की चरम सीमा पर था तो तभी विश्व समाज में अनेक सामाजिक और राजनीतिकसंकटों का जन्म हुआ। परमाणु युद्ध के भय, अमेरिका में गृह-युद्ध वियतनाम में अघोषित युद्ध,जनसंख्या विस्फोट, प्रदूषण आदि समस्याओं ने व्यवहारवाद को चुनौती दी।
समस्याओं की उचित व्याख्या करने व समाधान तलाशने की बजाय राजनीति को विशुद्ध विज्ञानबनाने में ही लीन रहा तथा अपनी मूल्य-निरपेक्षता व प्रविधियों की आड़ में अपने वास्तविकउत्तरदायित्व से मुंह मोड़े रहा। व्यवहारवाद यथार्थवादिता से इतना दूर चला गया कि उसकीराजनीतिक निष्ठा ही समाप्त हो गई।
व्यवहारवाद की कठोर आदर्शवादिता समकालीन सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं केसमाधान का कोई सर्वमान्य हल नहीं बता सकी, तो डेविड ईस्टन ने 1969 में न्यूयार्क में‘American Political Science Association’ के वार्षिक अधिवेशन में व्यवहारवाद के प्रतिअसन्तोष की भावना व्यक्त की और उत्तर-व्यवहारवाद की क्रान्ति का सूत्रपात करके उसकेदो लक्ष्यों-प्रासांगिकता (Relevance) तथा कार्यात्मकता (Action) की ओर राजनीतिक विद्वानोंका ध्यान आकर्षित किया। डेविड ईस्टन ने कहा कि राजनीतिक विज्ञान की शोद्य और अध्यापन को समसामयिक समस्याओं के साथ अपनी संगति बैठाने तथा उनके प्रति कार्यशील होनाचाहिए ताकि राजनीति शास्त्र को इतना प्रगतिशील बनाया जा सके कि वह किसी भी सामाजिकव राजनीतिक समस्या का समुचित व सर्वमान्य हल प्रस्तुत कर सके।
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