Hindi, asked by omkar7117, 9 months ago

‘डायरी का पन्ना’ पाठ में आए मुख्य पात्रों के बारे में चार्ट (Mind Map) तैयार कीजिए !

Answers

Answered by MysteriousAryan
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Answer:

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Explanation:

अंग्रेजों से भारत को आज़ादी दिलाने के लिए महात्मा गाँधी ने सत्यग्रह आंदोलन छेड़ा था। इस आंदोलन ने जनता में आज़ादी की उम्मीद जगाई। देश भर से ऐसे बहुत से लोग सामने आए जो इस महासंग्राम में अपना सब कुछ त्यागने के लिए तैयार थे। 26 जनवरी 1930 को गुलाम भारत में पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। उसके बाद हर वर्ष इस दिन को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। आजादी के ढ़ाई साल बाद ,1950 को यही दिन हमारे अपने सम्विधान के लागू होने का दिन भी बना।

चौरंगी - कलकत्ता शहर में एक जगह का नाम

ठीक चार बजकर दस मिनट पर सुभाष बाबू अपना जुलूस ले कर मैदान की ओर निकले। उनको चौरंगी पर ही रोक दिया गया। परन्तु वहां पर लोगो की भीड़ इतनी अधिक थी कि पुलिस उनको वहां पर न रोक सकी। जब वे लोग मैदान के मोड़ पर पहुंचे तो पुलिस ने उनको रोकने के लिए लाठियां चलाना शुरू कर दिया। बहुत से लोग घायल हो गए। सुभाष बाबू पर भी लाठियाँ पड़ी। परन्तु फिर भी सुभाष बाबू बहुत ज़ोर से वन्दे -मातरम बोलते जा रहे थे। ज्योतिर्मय गांगुली ने सुभाष बाबू से कहा कि वे इधर आ जाए। परन्तु सुभाष बाबू ने कहा कि उन्हें आगे बढ़ना है।

यह सब तो अपने सुनी हुई लिख रहे हैं पर सुभाष बाबू का और अपना विशेष फासला नहीं था। सुभाष बाबू बड़े जोर से वन्दे -मातरम बोलते थे,यह अपनी आँख से देखा। पुलिस भयानक रूप से लाठियाँ चला रही थी। क्षितिज चटर्जी का फटा हुआ सिर देखकर तथा उसका बहता हुआ खून देखकर आँख मिंच जाती थी इधर यह हालत हो रही थी कि उधर स्त्रियाँ मोनुमेंट की सीढ़ियों पर चढ़ झंडा फहरा रही थी और घोषणा पढ़ रही थी। स्त्रियाँ बहुत बड़ी संख्या में पहुँच गई थी। प्रायः सबके पास झंडा था। जो वालेंटियर गए थे वे अपने स्थान से लाठियाँ पड़ने पर भी हटते नहीं थे।

वालेंटियर - स्वयंसेवी

लेखक कहते हैं कि बहुत सी बाते तो वे सुनी-सुनाई लिख रहे हैं परन्तु सुभाष बाबू और लेखक के बीच कोई ज्यादा फासला नहीं था। सुभाष बाबू बहुत जोर -जोर से वन्दे - मातरम बोल रहे थे, ये लेखक ने खुद अपनी आँखों से देखा था। पुलिस बहुत भयानक रूप से लाठियाँ चला रही थी। क्षितिज चटर्जी का सिर पुलिस की लाठियों के कारण फट गया था और उनका बहता हुआ खून देख कर आँखे अपने आप बंद हो जाती थी। इस तरफ इस तरह का माहौल था और दूसरी तरफ स्मारक के निचे सीढ़ियों पर स्त्रियां झंडा फहरा रही थी और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ रही थी। स्त्रियाँ बहुत अधिक संख्या में आई हुई थी। लगभग सभी के पास झंडा था। जो स्वयंसेवी आए थे वे अपनी जगह से पुलिस की लाठियाँ पड़ने पर भी नहीं हट रहे थे।

सुभाष बाबू को पकड़ लिया गया और गाड़ी में बैठा कर लालबाज़ार लॉकअप में भेज दिया गया। कुछ देर बाद ही स्त्रियां जुलूस बना कर वहाँ से चलीं। साथ ही बहुत बड़ी भीड़ इकठ्ठी हो गई। बीच में पुलिस कुछ ठंडी पड़ी थी ,उसने फिर डंडे चलने शुरू कर दिए। अबकी बार भीड़ ज्यादा होने के कारण ज्यादा आदमी घायल हुए। धर्मतल्ले के मोड़ पर आकर जुलूस टूट गया और करीब 50 -60 स्त्रियाँ वहीँ मोड़ पर बैठ गई। पुलिस ने उन्हें पकड़कर लालबाजार भेज दिया। स्त्रियों का एक भाग आगे बड़ा ,जिनका नेतृत्व विमल प्रतिभा कर रही थी। उनको बहू बाजार के मोड़ पर रोका गया और वे वहीँ मोड़ पर बैठ गई। आसपास बहुत बड़ी भीड़ इकठ्ठी हो गई। जिस पर पुलिस बीच - बीच में लाठी चलती थी।

(यहाँ पर लेखक स्त्रियों की बहादुरी का वर्णन कर रहा है)

सुभाष बाबू को भी पकड़ लिया गया और गाड़ी में बैठा कर लालबाज़ार लॉकअप में भेज दिया गया। कुछ देर बाद ही स्त्रियाँ वहाँ से जन समूह बना कर आगे बढ़ने लगी। उनके साथ बहुत बड़ी भीड़ भी इकठ्ठी हो गई। कुछ समय के लिए लगा की पुलिस ठंडी पड़ गई है अब लाठी नहीं बरसाएगी परन्तु पुलिस बीच-बीच में लाठियाँ चलाना शुरू कर देती थी। इस बार भीड़ ज्यादा थी तो आदमी भी ज्यादा जख्मी हुए। धर्मतल्ले के मोड़ पर आते-आते जुलूस टूट गया और लगभग 50 से 60 स्त्रियाँ वही मोड़ पर बैठ गई। उनके आसपास बहुत बड़ी भीड़ इकठ्ठी हो गई थी। जिन पर पुलिस बीच -बीच में लाठियाँ चलाया करती थी।

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