Hindi, asked by Suhail1288, 1 month ago

डायरी-लेखक की भाषा-शैली कैसी होनी चाहिए?​

Answers

Answered by singhmehakpreet2008
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Answer:

  1. डायरी या तो किसी नोटबुक में या पुराने साल की डायरी में लिखी जानी चाहिए। पुराने साल की डायरी में पहले की पड़ी हुई तिथियों की जगह अपने हाथ से तिथि डालें। यह सुझाव इसलिए दिया जा रहा है कि आप कहीं मौजूदा साल की डायरी में तिथियों के अनुसार बने हुए सीमित स्थान से अपने को बंधा हुआ न महसूस करें। सभी दिन एक समान नहीं होते। ऐसे में डायरी का किसी निश्चित तिथि के साथ दिया गया सीमित स्थान हमारे लिए बंधन बन जाएगा। इसीलिए नोटबुक या पुराने साल की डायरी अधिक उपयोगी साबित हो सकती है। उसमें अपनी सुविधा के अनुसार तिथियाँ डाली जा सकती हैं और स्थान का उपयोग किया जा सकता है।लेखन करते हुए आप स्वयं तय करें कि आप क्या सोचते हैं और खुद को क्या कहना चाहते हैं। यह तय करते हुए आपको यथासंभव सभी तरह के बाहरी दबावों से मुक्त होना चाहिए। अपनी दिनभर की घटनाओं, मुलाकातों, खयालातों इत्यादि में से कौन-कौन सी आपको दर्ज करने लायक लगती हैं, किन्हें आप किन-किन वजहों से भविष्य में भी याद करना चाहेंगे यह विचार कर लेने के बाद ही उन्हें शब्दबद्ध करने की ओर बढ़ें।

3. डायरी निजी वस्तु है और यह मान कर ही उसे लिखा जाना चाहिए कि वह किसी और के द्वारा पढ़ी नहीं जाएगी। अगर आप किसी और को पढ़वाने की बात सोच कर डायरी लिखते हैं, तो उसका आपकी लेखन-शैली, विषय-वस्तु के चयन और बातों के बेबाकपन पर पूरा असर पड़ेगा। इसलिए यह मानते हुए डायरी लिखें कि उसका पाठक आपके अलावा कोई और नहीं है।

4. 12

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CBSE Class 11 Hindi डायरी लिखने की कला

October 5, 2019 by Bhagya

CBSE Class 11 Hindi डायरी लिखने की कला

डायरी :

डायरी सिर्फ ऐसे ही निजी सत्यों को शब्द देने का ज़रिया हो, जिनकी जिंदगी और रूप में अभिव्यक्ति वर्जित है। वह एक तरह का व्यक्तिगत दस्तावेज़ भी है, जिसमें अपने जीवन के खास क्षणों, किसी समय विशेष में मन के अंदर कौंध जानेवाले विचारों, यादगार मुलाकातों और बहस-मुबाहिसों को हम दर्ज कर लेते हैं। अपनी कई तरह की स्मृतियों को हम कैमरे की मदद से भी रिकॉर्ड करते हैं, पर खुद अपना पाठ तैयार करना और जो कुछ घटित हुआ, सबकी कहानी कहना एक ऐसा तरीका है, जो हमें आनेवाले दिनों में उन लम्हों को दुबारा जीने का मौका देता है। आज की तेज़ रफ़्तार जिंदगी में यह तरीका सचमुच नायाब है। जिंदगी की तेज़ रफ़्तार में इस बात की आशंका हमेशा बनी रहती है कि सतही और फ़ौरी किस्म की चिंताओं के अनवरत मामलों के बीच गहरे आशय वाली घटनाओं और वैचारिक उत्तेजनाओं को हम भूल जाएँ।

डायरी हमें भूलने से बचाती है। यात्राओं के दौरान डायरी लिखना तो बहुत ही उपयोगी साबित होता है। एक लंबे सफ़र का वृत्तांत अगर आप सफ़र से लौट कर लिखना चाहें, तो शायद पूरे अनुभव का दो-तिहाई हिस्सा ही बच-बचा कर शब्दों में उतर पाएगा, लेकिन अगर आपने सफ़र के दरम्यान प्रतिदिन अपनी डायरी लिखी है, तो अपने तजुर्बे को लगभग मुकम्मल तौर पर दुहरा पाना आपके लिए संभव होगा। डायरी लिखना अपने साथ एक अच्छी दोस्ती कायम करने का बेहतरीन ज़रिया है। डायरी लेखन में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।

1. डायरी या तो किसी नोटबुक में या पुराने साल की डायरी में लिखी जानी चाहिए। पुराने साल की डायरी में पहले की पड़ी हुई तिथियों की जगह अपने हाथ से तिथि डालें। यह सुझाव इसलिए दिया जा रहा है कि आप कहीं मौजूदा साल की डायरी में तिथियों के अनुसार बने हुए सीमित स्थान से अपने को बंधा हुआ न महसूस करें। सभी दिन एक समान नहीं होते। ऐसे में डायरी का किसी निश्चित तिथि के साथ दिया गया सीमित स्थान हमारे लिए बंधन बन जाएगा। इसीलिए नोटबुक या पुराने साल की डायरी अधिक उपयोगी साबित हो सकती है। उसमें अपनी सुविधा के अनुसार तिथियाँ डाली जा सकती हैं और स्थान का उपयोग किया जा सकता है।

2. लेखन करते हुए आप स्वयं तय करें कि आप क्या सोचते हैं और खुद को क्या कहना चाहते हैं। यह तय करते हुए आपको यथासंभव सभी तरह के बाहरी दबावों से मुक्त होना चाहिए। अपनी दिनभर की घटनाओं, मुलाकातों, खयालातों इत्यादि में से कौन-कौन सी आपको दर्ज करने लायक लगती हैं, किन्हें आप किन-किन वजहों से भविष्य में भी याद करना चाहेंगे यह विचार कर लेने के बाद ही उन्हें शब्दबद्ध करने की ओर बढ़ें।

3. डायरी निजी वस्तु है और यह मान कर ही उसे लिखा जाना चाहिए कि वह किसी और के द्वारा पढ़ी नहीं जाएगी। अगर आप किसी और को पढ़वाने की बात सोच कर डायरी लिखते हैं, तो उसका आपकी लेखन-शैली, विषय-वस्तु के चयन और बातों के बेबाकपन पर पूरा असर पड़ेगा। इसलिए यह मानते हुए डायरी लिखें कि उसका पाठक आपके अलावा कोई और नहीं है।

4. यह कतई ज़रूरी नहीं कि डायरी परिष्कृत और मानक भाषा-शैली में लिखी जाए। परिष्कृत और मानकता का दबाव कथ्य के स्तर पर कई तरह के समझौतों के लिए आपको बाध्य कर सकता है। डायरी-लेखन में इस समझौता परस्ती के लिए कोई जगह नहीं है। डायरी का डायरीपन इसी में है कि आप जो कुछ दर्ज करना चाहते हैं और जिस तरीके से दर्ज करना चाहते हैं, करें। इस सिलसिले में भाषाई शुद्धता कितनी बरकरार रहती है और शैली-सौंदर्य कितना सध पाता है, इसकी चिंता न करें। आपके अंदर के स्वाभाविक वेग से शैली जो रूप ग्रहण करती है, वही डायरी की उचित शैली है।

5. आखिरी, पर बहुत अहम बात ये कि डायरी नितांत निजी स्तर की घटनाओं और भावनाओं का लेखा-जोखा होने के साथ-साथ, आपके मन के आईने में आपके दौर का अक्स भी है। वह अपने जिन अनुभवों को वहाँ दर्ज करते हैं, उनमें आपकी नज़र से देखा-परखा गया समकालीन इतिहास किसी-न-किसी मात्रा में मौजूद रहता है। डायरी लिखते हुए अगर यह बात हमारे बीच में रहे, तो अपने काम के महत्त्व को लेकर हम अधिक आश्वस्त हो सकते हैं।

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