Dada dadi, matha pitha aur apna bachpan me kya anthar hy
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हमारा बचपन हमारे दादा दादी के बिल्कुल विपरीत बितता है। हम ज्यादा से ज्यादा समय अपने बचपन में दूरदर्शन के सामने बैठकर बिताते है , जबकि हमारे दादा दादी अपना यह समय बाहर पेड़ पौधों के बीच में बिताते थे। हमें आज कई सारी सुविधाएं दी जा रही है जो हमारे दादा दादी के समय उपलब्ध नहीं थी। हम अपना बचपन शहर की धूल भरी हवा में बिताते हैं जबकि हमारे दादा दादी ने यही बचपन खुली हवा में बिताया था। हमारे दादा दादी हमारी तरह मोबाइल या प्ले स्टेशन पर ना खेल कर गिल्ली और डंडे से खेलते थे। उनका बचपन हमारी तरह चारदीवारी के बीच में नहीं मिलता का उनका बचपन जानवरों एवं पेड़ पौधों के साथ बीता था। उनका बचपन हमारी तरह आरामदायक नहीं था उनका वजन बहुत कठिन परिश्रम से गुजरा था।
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