dahej ki samasya ka kya samadhan nikal sakte hai
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दहेज प्रथा बन्द कैसे हो, इस प्रश्न का एक सीधा-सा उत्तर है-कानून से । लेकिन हम देख चुके हैं कि कानून से कुछ नहीं हो सकता । कानून लाग करने के लिए एक ईमानदार व्यवस्था की जरूरत है । इसके अतिरिक्त जब तक सशक्त गवाह और पैरवी करने वाले दूसरे लोग दिलचस्पी न लेंगे, पुलिस तथा अदालतें कुछ न कर सकेंगी । दहेज को समाप्त करने के लिए एक सामाजिक चेतना आवश्यक है । कुछ गांवों में इस प्रकार की व्यवस्था की गई है कि जिस घर में बड़ी बारात आए या जो लोग बड़ी बारात ले जाएं उनके घर गांव का कोई निवासी बधाई देने नहीं जाता । दहेज के लोभी लड़के वालों के साथ भी ऐसा ही व्यवहार किया जाता है । दहेज प्रथा हमारे समाज की सबसे बुरी कुरीतियों मे से एक है जिसका निराकरण भी समाज के हित में जरूरी है। इसके लिए भारतीय दंड विधान संहिता के प्रावधानों के अलावे विशेष रूप से दहेज निषेध अधिनियम, १९६१ लागू है जिसके अन्तर्गत प्रबंध निदेशक, राज्य महिला विकास निगम को राज्य दहेज निषेध पदाधिकारी एवं जिला कल्याण पदाधिकारी को जिला दहेज निषेध पदाधिकारी घोषित किया गया है। हर माह में हरेक जिले के डी एम एवं एस पी को एक दिन दहेज विरोधी दरबार लगाने के साथ-साथ क्षेत्रान्तर्गत आयोजित विवाह समारोहों की सूचना संधारित की जानी है एवं दहेज निषेध अधिनियम के उल्लंघन की स्थिति में निकटतम थाने में प्राथमिकी दर्ज किया जाना है। ग्रामीण क्षेत्रों मे पंचायत स्तर पर एवं शहरी क्षेत्रों में वार्ड स्तर पर आयोजित विवाह समारोहों के रिकार्ड रखने के लिए बाजाब्ता प्रपत्र परिचालित हैं जिनमें वर-वधू को प्राप्त उपहारों की सूची बनाकर वर-वधू एवं गवाहों का हस्ताक्षर लिया जाना है। सरकार ने दहेज-निषेध पदाधिकारी को यह भी निर्देश दे रखा है कि दहेज-निषेध के कतिपए प्रावधानों के उल्लंघन की स्थिति की बाद में सूचना मिलने पर भी थाने में एक आई आर दर्ज करें। भारतीय दंड संहिता की धारा- ३०४ बी, ४९८ ए एवं दहेज निषेध अधिनियम की धारा- ३,४ एवं ६ (२) के अन्तर्गत थाने में दायर इन मुकदमों की पैरवी भी सरकारी स्तर से थाने से लेकर राज्य सरकार के स्तर तक समाज कल्याण विभाग को ही करना है।
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