Dairy entry on vaishano mata
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Chalo bulava aya h. .......
कहते हैं पहाड़ों वाली माता वैष्णो देवी सबकी मुरादें पूरी करती हैं। उसके दरबार में जो कोई सच्चे दिल से जाता है, उसकी हर मुराद पूरी होती है। ऐसा ही सच्चा दरबार है- माता वैष्णो देवी का।
माता का बुलावा आने पर भक्त किसी न किसी बहाने से उसके दरबार पहुँच जाता है। हसीन वादियों में त्रिकूट पर्वत पर गुफा में विराजित माता वैष्णो देवी का स्थान हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जहाँ दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु माँ के दर्शन के लिए आते हैं।
क्या है मान्यता :-
माता वैष्णो देवी को लेकर कई कथाएँ प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध प्राचीन मान्यता के अनुसार माता वैष्णो के एक परम भक्त श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर माँ ने उसकी लाज रखी और दुनिया को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया। एक बार ब्राह्मण श्रीधर ने अपने गाँव में माता का भण्डारा रखा और सभी गाँववालों व साधु-संतों को भंडारे में पधारने का निमंत्रण दिया।
कम समय में माँ के दर्शन के इच्छुक यात्री हेलिकॉप्टर सुविधा का लाभ भी उठा सकते हैं। लगभग 2200 से 2800 रुपए खर्च कर दर्शनार्थी कटरा से 'साँझीछत' (भैरवनाथ मंदिर से कुछ किमी की दूरी पर) तक हेलिकॉप्टर से पहुँच सकते हैं।
पहली बार तो गाँववालों को विश्वास ही नहीं हुआ कि निर्धन श्रीधर भण्डारा कर रहा है। अपने भक्त श्रीधर की लाज रखने के लिए माँ वैष्णो देवी कन्या का रूप धारण करके भण्डारे में आई। श्रीधर ने भैरवनाथ को भी अपने शिष्यों के साथ आमंत्रित किया गया था। भंडारे में भैरवनाथ ने खीर-पूड़ी की जगह मांस-मदिरा का सेवन करने की बात की तब श्रीधर ने इस पर असहमति जताई।
भोजन को लेकर भैरवनाथ के हठ पर अड़ जाने के कारण कन्यारूपी माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को समझाने की कोशिश की किंतु भैरवनाथ ने उसकी एक ना मानी। जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, तब वह कन्या वहाँ से त्रिकूट पर्वत की ओर भागी और उस कन्यारूपी वैष्णो देवी ने एक गुफा में नौ माह तक तपस्या की।
इस गुफा के बाहर माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने पहरा दिया। आज इस पवित्र गुफा को 'अर्धक्वाँरी' के नाम से जाना जाता है। अर्धक्वाँरी के पास ही माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है, जहाँ माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था।
कहते हैं उस वक्त हनुमानजी माँ की रक्षा के लिए माँ वैष्णो देवी के साथ ही थे। हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर एक बाण चलाकर जलधारा को निकाला और उस जल में अपने केश धोए। आज यह पवित्र जलधारा 'बाणगंगा' के नाम से जानी जाती है, जिसके पवित्र जल का पान करने या इससे स्नान करने से भक्तों की सारी व्याधियाँ दूर हो जाती हैं।
Gayarti Sharma
WD
जिस स्थान पर माँ वैष्णो देवी ने हठी भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान आज पूरी दुनिया में 'भवन' के नाम से प्रसिद्ध है। इस स्थान पर माँ काली (दाएँ), माँ सरस्वती (मध्य) और माँ लक्ष्मी पिंडी (बाएँ) के रूप में गुफा में विराजित है, जिनकी एक झलक पाने मात्र से ही भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इन तीनों के सम्मिलित रूप को ही माँ वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है।
भैरवनाथ का वध करने पर उसका शीश भवन से 8 किमी दूर जिस स्थान पर गिरा, आज उस स्थान को 'भ ैर ोनाथ के मंदिर' के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने माँ से क्षमादान की भीख माँगी। माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएँगे, जब तक कोई भक्त मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा।
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