History, asked by prabhakar952353, 11 months ago

dalhan fasal ke paudhe ki Jar ki ganth mein kya paya jata hai​

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Answered by spsingh05481
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भारतीय कृषि में दलहनी फसलों का खास स्थान है. शाकाहारी भोजन में प्रोटीन का मुख्य जरीया होने के कारण दलहनी फसलों का महत्त्व काफी बढ़ जाता है. चना, मूंग, मोठ, उड़द, अरहर व सोयाबीन वगैरह खास दलहनी फसलें हैं. दलहनी वर्ग की इन सभी फसलों में प्रोटीन काफी मात्रा में होने के कारण इन में नाइट्रोजन की भी जरूरत पड़ती है. इन फसलों में नाइट्रोजन की मात्रा की पूर्ति वायुमंडल में मौजूद आण्विक नाइट्रोजन से हो जाती है. दलहनी फसलों की जड़ ग्रंथियों (गांठों) में पाए जाने वाले राइजोबियम जीवाणु वायुमंडल की स्वतंत्र नाइट्रोजन को यौगिकीकृत कर के पौधों को मुहैया कराते हैं. इस कारण इन फसलों को ज्यादा नाइट्रोजन की जरूरत नहीं पड़ती है. परंतु जमीन में मौजूद राइजोबियम जीवाणुओं को पौधों की जड़ों पर ग्रंथियां बनाने में 20 से 30 दिनों का समय लगता है. इसलिए इस समय पौधों की बढ़वार व जड़ ग्रंथियों के विकास के लिए उर्वरक नाइट्रोजन का इस्तेमाल करना फायदेमंद रहता है. इसलिए बोआई के समय सिंचित क्षेत्रों में 20 किलोग्राम व असिंचित क्षेत्रों में 10 किलोग्राम नाइट्रोजन का प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए.

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