Hindi, asked by loptboy, 1 year ago

dange mein samany logo ka jeeva ast vyst ho jata hai. kaise sochkar likho?

Answers

Answered by Anmol11374
2
वास्तव में हिंसा की मानसिकता एक बुरी व्याधि है । इसके खिलाफ समूची मानवजाति को उठ खड़ा होना है और एकजुट होकर आवाज बुलंद करनी है । यह एक ऐसा खतरा है, जो किसी देश अथवा जाति विशेष का नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए खतरा है ।

हथियार दाँतों और नाखूनों के ही क्रमिक विकास का प्रतिफल हैं, जिन्हें मनुष्य ने अपेक्षाकृत अधिक बलशाली और खूँख्वार जानवरों से निपटने के लिए विकसित किया होगा । दंगों में ज्यादातर वही लोग मारे जाते हैं, जिनका इन दंगों से कोई सरोकार नहीं होता ।

सभी संप्रदाय के भोले-गरीब लोग ही इन दंगों के शिकार होते हैं, क्योंकि वे सुरक्षित नहीं होते । दंगा भड़कानेवाले गुंडे हमेशा अपनी सुरक्षा का इंतजाम रखते हैं और वे कभी नहीं मरते । गुंडा सिर्फ ‘गुंडा’ होता है । उसकी कोई जाति नहीं होती- न सिख होता है और न ईसाई । दरअसल, उसे मंदिर, मसजिद, गिरिजाघर और गुरुद्वारे से कुछ लेना-देना नहीं होता । उसका मतलब सिर्फ ‘लूट’ और लूट के ‘माल’ से रहता है ।

इन सभी स्थानों को वह अपनी सुरक्षा के गड़ों के रूप में इस्तेमाल करता है और इन सबसे भावनात्मक रूप मैं जुड़ी भीड़ को अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए ‘ईंधन’ बनाता है । मजहबी जुनून में भड़काई गई भीड़ ही इन गुंडों की ताकत बन जाती है और यही आपस में टकराती है । हमारी समूची सुरक्षा-व्यवस्था इस भीड़ में ‘व्यस्त’ हो जाती है और इस बीच गुंडे अपने मकसद में कामयाब हो जाते हैं ।

गुंडा तत्त्वों ने इन धर्म-स्थानों को ही अपना अड्‌डा बना डाला, जिनका निर्माण साधु-शक्तियों को संघटित करने के लिए हुआ था । मंदिर, मसजिद, गिरिजाघर और गुरुद्वासें की पवित्रता हत्यारी बारूद से अपावन होती है, काले धन से कलंकित होती है, साथ ही धर्मस्थान में घायल-कराहती मनुष्यता बार-बार पराजित होती है । आज भारत हिंसा के भीषण दौर से गुजर रहा है ।

श्रीमती गांधी और पूर्व- थलसेनाध्यक्ष जनरल अरुण श्रीधर वैद्य की हत्या हुई, मुंबई-गुजरात में भयावह दंगे हुए और अब धर्म के नाम पर मुसलिम समाजवादी, माओवादी नक्सली आतंकवादियों की हिंसा जारी है । राजनीति और धर्म दोनों में हिंसा ने घर कर लिया है ।

आश्चर्य ! हर धर्म-संस्था हिंसा को बुरा मानती है, किंतु उसका इतिहास हिंसा से भरा हुआ है । दैनंदिन उपदेश के समय प्रत्येक पूजा पद्धति विश्व बंधुत्व का नाम रटती है, किंतु विधर्मियों से पाला पड़ते ही उसे भूल जाती है । अपनी हिंसा को धर्म कहती है और दूसरों की हिंसा को अधर्म । यही हाल राजनीति में है ।

HOPE THIS WILL HELP YOU
Similar questions