dashara poem in hindi
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Explanation:
देखो दशहरे का त्योहार आया है,
लोगो के चेहरे पर मुस्कान लाया है।
आओ सब मिलकर मिटाए अँधियारा,
चारो ओर फैलाए अच्छाई का उजियारा
साथ मिलकर खुशियों का यह त्योहार मनाए,
सब मिलकर खुशियों के दीप जलाए।
देखो चारो ओर फैला हुआ यह अनोखा उमंग,
कैसे फिजा में बिखरे हुए है यह मनमोहक रंग।
दशहरा है बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक,
इस दिन लोग गाते है खुशियों के नये गीत।
आज के दिन हुआ था श्री राम-रावण युद्ध का अंत,
जीत हुई सच्चाई की लोगो को मिली खुशिया अनंत।
सबको रावण जलता देख मिलती खुशियां आपार,
इसीलिए तो दशहरा का दिन लाता है नया बहार।
हमें भी करना है इस वर्ष कुछ नया कार्य,
शपथ लो अच्छी बातों का छोड़ो सब दुर्विचार।
तो आओ हम सब मिलकर झूमें गाये,
साथ मिलकर दशहरा का यह त्योहार मनाये।
Answer:अर्थ हमारे व्यर्थ हो रहे, पापी पुतले अकड़ खड़े हैं
काग़ज़ के रावण मत फूँकों, ज़िंदा रावण बहुत पड़े हैं
कुंभ-कर्ण तो मदहोशी हैं, मेघनाथ भी निर्दोषी है
अरे तमाशा देखने वालों, इनसे बढ़कर हम दोषी हैं
अनाचार में घिरती नारी, हाँ दहेज की भी लाचारी-
बदलो सभी रिवाज पुराने, जो घर-घर में आज अड़े हैं
काग़ज़ के रावण मत फूँकों, ज़िंदा रावण बहुत पड़े हैं
सड़कों पर कितने खर-दूषण, झपट ले रहे औरों का धन
मायावी मारीच दौड़ते, और दुखाते हैं सब का मन
सोने के मृग-सी है छलना, दूभर हो गया पेट का पलना
गोदामों के बाहर कितने, मकरध्वजों के जाल कड़े हैं
काग़ज़ के रावण मत फूँकों, ज़िंदा रावण बहुत पड़े हैं
लखनलाल ने सुनो ताड़का, आसमान पर स्वयं चढ़ा दी
भाई के हाथों भाई के, राम राज्य की अब बरबादी।
हत्या, चोरी, राहजनी है, यह युग की तस्वीर बनी है-
न्याय, व्यवस्था में कमज़ोरी, आतंकों के स्वर तगड़े हैं
काग़ज़ के रावण मत फूँकों, ज़िंदा रावण बहुत पड़े हैं
बाली जैसे कई छलावे, आज हिलाते सिंहासन को
अहिरावण आतंक मचाता, भय लगता है अनुशासन को
खड़ा विभीषण सोच रहा है, अपना ही सर नोच रहा है-
नेताओं के महाकुंभ में, सेवा नहीं प्रपंच बड़े हैं
काग़ज़ के रावण मत फूँकों, ज़िंदा रावण बहुत पड़े हैं
-मनोहर सहदेव
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बहुत हो गया ऊँचा रावण
बहुत हो गया ऊँचा रावण, बौना होता राम,
मेरे देश की उत्सव-प्रेमी जनता तुझे प्रणाम।
नाचो-गाओ, मौज मनाओ, कहाँ जा रहा देश,
मत सोचो, कहे की चिंता, व्यर्थ न पालो क्लेश।
हर बस्ती में है इक रावण, उसी का है अब नाम।
नैतिकता-सीता बेचारी, करती चीख-पुकार,
देखो मेरे वस्त्र हर लिये, अबला हूँ लाचार।
पश्चिम का रावण हँसता है, अब तो सुबहो-शाम।
राम-राज इक सपना है पर देख रहे है आज,
नेता, अफसर, पुलिस सभी का, फैला गुंडा-राज।
डान-माफिया रावण-सुत बन करते काम तमाम।