Hindi, asked by rickyarora645, 4 months ago

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अनुच्छेद
लेखन मजहब नही सिखाता
आपस म॓ वैर रखना​

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Answered by rajbirsingh0610
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Answer:

मज़हब और धर्म जैसे शब्द अपनी मूल अवधारणाओं में अत्यंत पवित्र शब्द हैं। किसी भी मज़हब या धर्म के वास्तविक स्वरूप, आदर्श और आदेशों को सच्चे अर्थों में मानकर चलने वाला व्यक्ति अपनी अंतरात्मा में बड़ा ही पवित्र, उदार और उच्च भावनाओं से अनुप्राणित हुआ करता है। धर्म हमें सिखाता है कि हम किस प्रकार लड़ाई-झगड़ों से दूर रहकर आत्म-संस्कार के द्वारा प्राणिमात्र का हित करना चाहिए। स्वर्गीय शायर इकबाल ने भारत के स्वतंत्रता-संघर्ष के दिनों में सारी मानवता को यह संदेश दिया था किः

“मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना,

हिंदी हैं हम वतन है, हिंदोस्तां हमारा”

इस संदेश को सुनकर सभी सच्चे मनुष्य, मज़हब या धर्म का वास्तविक अर्थ एवं महत्त्व समझने वाले जागरूक देशवासी सब प्रकार के भेद-भावों से ऊपर उठकर स्वतंत्रता-संग्राम में शामिल हो गए थे। इसी कारण हम स्वतंत्रता प्राप्त करने में सफल हो गए थे। यह सत्य है कि कोई मज़हब या धर्म आपस में बैर रखना, मानव-मानव में भेद-भाव करना, व्यर्थ के ईष्या-द्वेष को बढ़ावा देना जैसी बातें कभी नहीं सिखाता। यह एक चिंतन एवं शाश्वत सत्य है।

भारत की विशाल फुलवारी में अनेक मज़हबों, धर्मों, सभ्यता-संस्कृतियों के कितने-कितने फूल एक साथ खिलकर विश्व की भटकी मानवता के सामने प्रेम, भाईचारे और धार्मिक-सांस्कृतिक सहिष्णुता की सुगंध चारों ओर फैलाते हैं। आज जब देश के किसी भाग में मज़हब-धर्म के नाम पर झगड़े भड़क उठते हैं तो कलेजा टूक-टूक होने लगता है। आज हमें प्रेम और भाईचारे की भावना को बनाए रखने की आवश्यकता है।

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