Hindi, asked by armaan07b, 11 months ago

Daya hi Dharm hai par anuched​

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Answered by rajeevgupta39
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Explanation:

दया एक दैवी गुण है। इसका आचरण करके मनुष्य देवत्व प्राप्त कर सकता है। दयालु हृदय में परमात्मा का प्रकाश ही प्रस्फुटित हो उठता है। क्योंकि भगवान स्वयं दयास्वरूप है। दयालु हृदय में ही उसका निवास होता है। दया के आचरण से मनुष्य में अन्य दैवी गुण स्वतः ही पैदा होने लगते हैं। महर्षि व्यास ने लिखा है ‘सर्वप्राणियों के प्रति दया का भाव रखना ईश्वर तक पहुँचने का सबसे सरल मार्ग है।’ महात्मा गाँधी ने कहा था ‘दया और सत्य का अन्योन्याश्रित संबंध है। जहाँ दया नहीं वहाँ सत्य नहीं।’ विदेशी विचारक होम ने लिखा है जो दूसरों पर दया नहीं करता उसे परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती।

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Answered by Anonymous
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दया भाव से हिम्नुश्य का मन द्रवित होता है | किसी दुखी को देखकर उसका दुश दूर करने की कोशिश करना ही धर्म है | वास्तव में करुणा ईश्वरीय गुण है | भगवान कृष्ण ने गीता में स्पष्ट कहा है – जब जब धरा पर धर्म की हानि और अधर्म की अधिकता होती है, तब-तब में अवतार धारण करता हूँ | धरम की रक्षा के लिए स्वयं धरती पर जन्म लेना भगवन की करुणा ही है |

करुणा से महानता की ओर – संसार में जितने भी महान इन्सान हुए हैं, सबके जीवन में करूणा का अंग अवश्य रहा है | भगवान बुद्ध ने राजपाट छोड़कर दुखी लोगों के दुःख दूर करने में अपना जीवन लगा दिया | नानक ने संसारिकता त्यागकर ही महानता अर्जित की | गाँधी जी ने अपनी वकालत त्यागकर देशवासियों के लिए कर्म किया, तभी सारे देश ने उन्हें अपना बापू माना | वास्तव में जब भी कोई व्यक्ति अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर जनहित का आचरण करता है, वह हमारे लिए पूज्य बन जाता है |

करूणा निस्वार्थ होती है – करुणा सात्विक भाव है | करूणा न तो अपने-पराए का भेदभाव देखती है, और न ही अपनी हनी की परवाह करती है | करूणा में अदभुत प्रेरणा होती है | दयावान किसी को कष्ट में देखकर चुपचाप नहीं बैठ सकता | उनकी आत्मा उसे मज़बूर करती है कि दयावान दया करने से पहले अपना हानि-लाभ निश्चित करे | यहाँ तक कि वह किसी के प्राण बचाकर भी उसके बदले उससे कुछ नहीं चाहता | दया निस्वार्थ ही होती है |

एक प्रसिद्ध सूक्ति है – “नेकी कर कुएँ में डाल |” यह सूक्ति करूणा की ही व्याख्या करती है, वही उसका उचित मूल्य है |

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