debate on female foeticide in hindi
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भ्रूण हत्या
आधुनिक युग में लोगों के विचार एवं मापदंड भी बदलते जा रहे,हैं । सामाजिक मान्यताएं भी बदल रही हैं । प्राचीन भारत में नारी के, विषय में कहा जाता था- ” यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ”,अर्थात् जहां स्त्रियों की पूजा होती है वहीं देवताओं का निवास होता है 1,बदलते समय के साथ नारी की परिभाषा भी बदली । जयशंकर प्रसाद ने,लिखा है -,नारी तुम केवल श्रद्धा हो,विश्वास रजत नग पद तल में ।,उसके बाद समय ने फिर करवट बदली ।
राष्ट्र कवि मैथिलीशरण,गुप्त ने कहा-,” अबला जीवन हाय तुम्हारी यह कहानी,चल में है दूध और आँखों में पानी । ”,यह भारतवर्ष का दुर्भाग्य ही है कि समाज में नारी को उचित,सम्मान नहीं मिल पा रहा है । एक तरफ तो कन्या को पूजा जाता है उसे,देवी माना जाता है । दूसरी ओर कन्या का भ्रूण गर्भ में आते ही उसे,मारने की योजना बनने लगती है । भ्रूण हत्या का अर्थ है- गर्भ में बच्चे,के आते ही उसे मार देना । लोग इस विषय में बिकुल नहीं सोचते कि,वे घृणित कार्य कर रहे हैं । किसी जीव को दुनिया में कदम रखने से,पहले ही समाप्त कर देते हैं ।
इस प्रकार के कार्य करके वे पाप के,भागीदार बन रहे हैं । अत्यधिक भ्रूण हत्या होना समाज के लिए भी,हानिकारक है । यह प्रमाणित हो चुका है कि बेटियां बेटों से अधिक,समझदार होती हैं । बेटे माता-पिता को छोड्कर चले जाते हैं परन्तु,,बेटियां अपने माता- पिता का हर वक्त साथ निभाती हैं तथा उनका,ख्याल रखती हैं! समाज में माता-पिता का नाम रोशन करती हैं । फिर,भी माता–पिता पुत्र मोह में आकर पुत्री को गर्भ में ही मार देते हैं । हर,परिवार को पुत्र ही चाहिए ।
कोई भी पुत्री की इच्छा नहीं रखता । यह,एक प्रकार का राष्ट्र -द्रोह है क्योंकि राष्ट्र के विकास हेतु स्त्री-पुरुष,दोनों का विकास आवश्यक है ।,भ्रूण हत्या के लिए चिकित्सा के क्षेत्र में वैज्ञानिक उन्नति एवं,समाज की बीमार मानसिकता दोनों ही जिम्मेदार हैं । पुत्र मोह के कारण,ही लोग लिंग परीक्षण करवाते हैं । यदि पुत्री हो तो उसके क्या की ही,हत्या करवा देते है । यह कानूनी अपराध है । डॉक्टर भी कुछ पैसों के,लालच में आकर गलत कार्य करते हैं ।
भ्रूण परीक्षण की खोज तो,गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य हेतु की गई थी परंतु इसका प्रयोग लिंग जांच,के रूप में किया जाने लगा । अनेक औरतें तो इस भ्रूण समाप्ति के,कारण मौत का शिकार हो जाती हैं । कई बार तो एक बार -०- समाप्ति,करवाने के कारण वे दोबारा माँ भी नहीं बन पातीं । सरकार जितने भी,कानून बनाए उससे ज्यादा जरूरी है कि हम अपनी सोच,बदलें ।
इस कुरीति के फैलने के अनेक कारण हैं । भारतीय समाज में यह,मान्यता है कि बेटियां पराया धन होती हैं । बेटा अन्त तक माता-पिता,का साथ निभाएगा पर बेटी तो विवाह करके अपने पति के घर चली,जाएगी । शादी से पहले भी बेटी को पराया धन कहा जाता है । ससुराल,जानै पर भी उसे पराया कहकर बेटी के रूप में अपनाया नहीं जाता ।,पुरुष प्रधान मानसिकता ही शा हत्या को जन्म देती है । संपत्ति का,मालिक भी पुत्र को ही माना जाता है पुत्री को नहीं ।
इस कुरीति को,बढ़ाने का श्रेय भी नारी को ही जाता है । नारी ही नारी की शत्रु बनकर,पुत्री को जन्म नहीं देना चाहती । बहू यदि बेटे को जन्म देती है तो वह,बहूरानी बन जाती है नहीं तो उसे ताने मार-मार कर परेशान किया जाता,है । यदि नारी इस कुरीति के विरुद्ध तप- मन से आदोलन करती है तो,यह -राई लुप्त हो सकती थी ।
इस कुरीति को नारी ही दूर कर सकती,है । नारी के मौन समर्थन एवं स्वीकृति के कारण ही यह भ्रूण हत्या की,समस्या पनप रही है । पुत्रियों को असुरक्षा का कारण माना जाता है ।,आज यह सोचा जाता है कि लड़की की पढ़ाई, लिखाई, पालन-पोषण,पर इतना पैसा खर्च करना बेकार है क्योंकि उसने एक दिन तो अपने,ससुराल चले जाना है और उसे दहेज में इतना कुछ देना होगा । वंश का,नाम तो पुत्र ही आगे बढ़ाएगा । हम देवी माँ की पूजा करते हैं किंतु उसे,जन्म लेने से रोकते हैं । बेटे के पैदा होने पर मिठाइयां बांटी जाती हैं,,बहराई दी जाती? वहीं बेटी के पैदा होने पर कोई मिठाई नहीं बांटता,बल्कि दुःखी होता है ।
विज्ञान के अनुसार पुत्र या पुत्री पैदा होने के,लिए पुरुष ही उतरदायी है परन्तु आज भी समाज में पुत्री पैदा होने पर,औरत को ही दोषी ठहराया जाता है । श्रीमती इंदिरा गांधी, प्रतिभा,पाटिल, सोनिया गांधी, कल्पना चावला, ऐश्वर्या राय आदि अनेक उदाहरण,भरे पड़े हैं जिन्होंने देश एवं उरपने माता-पिता का नाम रोशन किया है ।,भारतीय संस्कृति मे नारियों को उन स्थान प्राप्त है किंतु समाज के,अनेक ठेकेदारों -ने अपनी इच्छानुसार व्याख्या की तथा पुत्रियों को अपशकुन,तक सिद्ध कर दिया ।
कुछ लोग पुत्री के जन्म को लक्ष्मी का .आगमन तो,कुछ लोग अपशकुन मानते हैं । आज भी समाज में यह मान्यता है कि,पुत्र होगा तो वह जीवनभर साथ निभाएगा, संपत्ति का वारिस होगा, वंश,को आगे चढ़ाएगा तथा मुखाग्नि देगा । पुत्रों को -महत्त्व देना सही है,परन्तु पुत्रियों का अपमान करना उन्हें पुत्र के समान दर्जा ने देना बिलकुल,गलत है । यदि इसी प्रकार शा हत्याएं होती रहीं तो कौन पाई की,कलाई पर राखी बांधेगा? विवाह के लिए लड़की कहाँ से. आएगी ,अगली पीढ़ी के लिए माँ की कोख कौन धारण करेगा?,शा हत्या का एक बड़ा कारण आर्थिक भी है ।
देश की जनसंख्या,का बहुत बड़ा भाग गरीबी की रखा के -नीचे जीवन जी रहा है । ऐसी,,मान्यता है कि पुत्र बड़ा होकर पिता का साथ देगा । धन कमाकर,लाएगा, पुत्री पैदा होगी तो उसके दहेज में ढेर सारा धन देना पड़ेगा ।,गरीब लोगों में पुत्र पैदा ‘करने की लालसा अधिक होती है । इसलिए वे,पुत्र तो पैदा करते रहते हैं परंतु गर्भ में पुत्री का पता लगते ही उस शा,की हत्या कर देते हैं । यह समस्या केवल अनपढ़ लोगों में ही नहीं यह,समस्या पढ़े-लिखे लोगों में भी पनप रही है । आज लड्कियां हर क्षेत्र में,लडुकों से आगे हैं ।
आधुनिक युग में लोगों के विचार एवं मापदंड भी बदलते जा रहे,हैं । सामाजिक मान्यताएं भी बदल रही हैं । प्राचीन भारत में नारी के, विषय में कहा जाता था- ” यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ”,अर्थात् जहां स्त्रियों की पूजा होती है वहीं देवताओं का निवास होता है 1,बदलते समय के साथ नारी की परिभाषा भी बदली । जयशंकर प्रसाद ने,लिखा है -,नारी तुम केवल श्रद्धा हो,विश्वास रजत नग पद तल में ।,उसके बाद समय ने फिर करवट बदली ।
राष्ट्र कवि मैथिलीशरण,गुप्त ने कहा-,” अबला जीवन हाय तुम्हारी यह कहानी,चल में है दूध और आँखों में पानी । ”,यह भारतवर्ष का दुर्भाग्य ही है कि समाज में नारी को उचित,सम्मान नहीं मिल पा रहा है । एक तरफ तो कन्या को पूजा जाता है उसे,देवी माना जाता है । दूसरी ओर कन्या का भ्रूण गर्भ में आते ही उसे,मारने की योजना बनने लगती है । भ्रूण हत्या का अर्थ है- गर्भ में बच्चे,के आते ही उसे मार देना । लोग इस विषय में बिकुल नहीं सोचते कि,वे घृणित कार्य कर रहे हैं । किसी जीव को दुनिया में कदम रखने से,पहले ही समाप्त कर देते हैं ।
इस प्रकार के कार्य करके वे पाप के,भागीदार बन रहे हैं । अत्यधिक भ्रूण हत्या होना समाज के लिए भी,हानिकारक है । यह प्रमाणित हो चुका है कि बेटियां बेटों से अधिक,समझदार होती हैं । बेटे माता-पिता को छोड्कर चले जाते हैं परन्तु,,बेटियां अपने माता- पिता का हर वक्त साथ निभाती हैं तथा उनका,ख्याल रखती हैं! समाज में माता-पिता का नाम रोशन करती हैं । फिर,भी माता–पिता पुत्र मोह में आकर पुत्री को गर्भ में ही मार देते हैं । हर,परिवार को पुत्र ही चाहिए ।
कोई भी पुत्री की इच्छा नहीं रखता । यह,एक प्रकार का राष्ट्र -द्रोह है क्योंकि राष्ट्र के विकास हेतु स्त्री-पुरुष,दोनों का विकास आवश्यक है ।,भ्रूण हत्या के लिए चिकित्सा के क्षेत्र में वैज्ञानिक उन्नति एवं,समाज की बीमार मानसिकता दोनों ही जिम्मेदार हैं । पुत्र मोह के कारण,ही लोग लिंग परीक्षण करवाते हैं । यदि पुत्री हो तो उसके क्या की ही,हत्या करवा देते है । यह कानूनी अपराध है । डॉक्टर भी कुछ पैसों के,लालच में आकर गलत कार्य करते हैं ।
भ्रूण परीक्षण की खोज तो,गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य हेतु की गई थी परंतु इसका प्रयोग लिंग जांच,के रूप में किया जाने लगा । अनेक औरतें तो इस भ्रूण समाप्ति के,कारण मौत का शिकार हो जाती हैं । कई बार तो एक बार -०- समाप्ति,करवाने के कारण वे दोबारा माँ भी नहीं बन पातीं । सरकार जितने भी,कानून बनाए उससे ज्यादा जरूरी है कि हम अपनी सोच,बदलें ।
इस कुरीति के फैलने के अनेक कारण हैं । भारतीय समाज में यह,मान्यता है कि बेटियां पराया धन होती हैं । बेटा अन्त तक माता-पिता,का साथ निभाएगा पर बेटी तो विवाह करके अपने पति के घर चली,जाएगी । शादी से पहले भी बेटी को पराया धन कहा जाता है । ससुराल,जानै पर भी उसे पराया कहकर बेटी के रूप में अपनाया नहीं जाता ।,पुरुष प्रधान मानसिकता ही शा हत्या को जन्म देती है । संपत्ति का,मालिक भी पुत्र को ही माना जाता है पुत्री को नहीं ।
इस कुरीति को,बढ़ाने का श्रेय भी नारी को ही जाता है । नारी ही नारी की शत्रु बनकर,पुत्री को जन्म नहीं देना चाहती । बहू यदि बेटे को जन्म देती है तो वह,बहूरानी बन जाती है नहीं तो उसे ताने मार-मार कर परेशान किया जाता,है । यदि नारी इस कुरीति के विरुद्ध तप- मन से आदोलन करती है तो,यह -राई लुप्त हो सकती थी ।
इस कुरीति को नारी ही दूर कर सकती,है । नारी के मौन समर्थन एवं स्वीकृति के कारण ही यह भ्रूण हत्या की,समस्या पनप रही है । पुत्रियों को असुरक्षा का कारण माना जाता है ।,आज यह सोचा जाता है कि लड़की की पढ़ाई, लिखाई, पालन-पोषण,पर इतना पैसा खर्च करना बेकार है क्योंकि उसने एक दिन तो अपने,ससुराल चले जाना है और उसे दहेज में इतना कुछ देना होगा । वंश का,नाम तो पुत्र ही आगे बढ़ाएगा । हम देवी माँ की पूजा करते हैं किंतु उसे,जन्म लेने से रोकते हैं । बेटे के पैदा होने पर मिठाइयां बांटी जाती हैं,,बहराई दी जाती? वहीं बेटी के पैदा होने पर कोई मिठाई नहीं बांटता,बल्कि दुःखी होता है ।
विज्ञान के अनुसार पुत्र या पुत्री पैदा होने के,लिए पुरुष ही उतरदायी है परन्तु आज भी समाज में पुत्री पैदा होने पर,औरत को ही दोषी ठहराया जाता है । श्रीमती इंदिरा गांधी, प्रतिभा,पाटिल, सोनिया गांधी, कल्पना चावला, ऐश्वर्या राय आदि अनेक उदाहरण,भरे पड़े हैं जिन्होंने देश एवं उरपने माता-पिता का नाम रोशन किया है ।,भारतीय संस्कृति मे नारियों को उन स्थान प्राप्त है किंतु समाज के,अनेक ठेकेदारों -ने अपनी इच्छानुसार व्याख्या की तथा पुत्रियों को अपशकुन,तक सिद्ध कर दिया ।
कुछ लोग पुत्री के जन्म को लक्ष्मी का .आगमन तो,कुछ लोग अपशकुन मानते हैं । आज भी समाज में यह मान्यता है कि,पुत्र होगा तो वह जीवनभर साथ निभाएगा, संपत्ति का वारिस होगा, वंश,को आगे चढ़ाएगा तथा मुखाग्नि देगा । पुत्रों को -महत्त्व देना सही है,परन्तु पुत्रियों का अपमान करना उन्हें पुत्र के समान दर्जा ने देना बिलकुल,गलत है । यदि इसी प्रकार शा हत्याएं होती रहीं तो कौन पाई की,कलाई पर राखी बांधेगा? विवाह के लिए लड़की कहाँ से. आएगी ,अगली पीढ़ी के लिए माँ की कोख कौन धारण करेगा?,शा हत्या का एक बड़ा कारण आर्थिक भी है ।
देश की जनसंख्या,का बहुत बड़ा भाग गरीबी की रखा के -नीचे जीवन जी रहा है । ऐसी,,मान्यता है कि पुत्र बड़ा होकर पिता का साथ देगा । धन कमाकर,लाएगा, पुत्री पैदा होगी तो उसके दहेज में ढेर सारा धन देना पड़ेगा ।,गरीब लोगों में पुत्र पैदा ‘करने की लालसा अधिक होती है । इसलिए वे,पुत्र तो पैदा करते रहते हैं परंतु गर्भ में पुत्री का पता लगते ही उस शा,की हत्या कर देते हैं । यह समस्या केवल अनपढ़ लोगों में ही नहीं यह,समस्या पढ़े-लिखे लोगों में भी पनप रही है । आज लड्कियां हर क्षेत्र में,लडुकों से आगे हैं ।
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