Science, asked by syedabidjafri786, 1 year ago

Define Human respiratory system in hindi?​

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Answered by samayra29
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Answer:

the process by which living things take oxygen to our need is called respiration

Answered by rajinisanthosh2003
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hey buddy here is ur answer !!

प्रत्येक प्राणी साँस लेता है। सांस लेना एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें प्राणी खाद्य अणुओं को ऑक्सीकृत करके कोशिकाओं के लिए ऊर्जा पैदा करता है। सांस क्रिया के फलस्वरूप पानी और कार्बन डाईऑक्साइड बनते हैं। ये दोनों ही अपशिष्ट पदार्थ हैं, जिन्हें शरीर से बाहर निकालना जरूरी है। शरीर में हवा के अंदर जाने व बाहर निकलने की क्रिया निरंतर होती रहती है। सांस द्वारा हवा को अंदर लेने और बाहर निकालने की क्रियाओं में एक संबंध होता है। श्वास लेने वाली क्रिया को उच्छ्वास (Inspiration) और निकालने की क्रिया को निश्वसन (E×piration) कहते हैं। मनुष्य एक मिनट में 15 से 17 बार सांस लेता है। सांस की क्रिया तीन पदों में पूरी होती है–उच्छ्वास, निश्वसन तथा विश्राम।

विभिन्न प्रकार के नाइट्रोजनी अपशिष्टों के अनुसार प्राणियों की श्रेणियाँ

श्रेणी बनने वाला उत्पाद जल में घुलनशीलता उदाहरण

अमोनोत्सर्जी (Ammonotelic) अतिविषैली अमोनिया अति घुलनशील जलीय प्राणी, जैसे अस्तिथ मछलियाँ

यूरिओत्सर्जी (Ureotelic) कम विषैला यूरिया कम घुलनशील स्तनी जैसे मानव आदि जैसे मेंढक, टोड आदि

यूरिकोत्सर्जी (Urieotelic) कम विषैला यूरिक अम्ल अघुलनशील ठोस अथवा अर्धठोस स्वरूप पक्षी,सरीसृप तथा कीट

मनुष्य नाक या मुंह से हवा को शरीर के अंदर ले जाता है। हवा जब नाक से अंदर प्रवेश करती है तो यह हल्की-सी नम और गर्म हो जाती है। नाक धूल-कणों को भी हवा से दूर कर देती है। यह हवा श्वास नलिका (Windpipe) से होती हुई फेफड़ों में जाती है। श्वसन क्रिया के अंतर्गत उच्छ्वास में सीने का फूलना पेशियों की क्रिया है। यह क्रिया ऐच्छिक (Voluntary) और अनैच्छिक (Involuntrary) दोनों ही पेशियों द्वारा होती है। श्वसन की सामान्य क्रिया में केवल अंतरापर्शुका पेशियां (Intercostal Muscles) और डायफ्रॉम ही भाग लेते हैं। गहरी सांस लेते समय कधे, गर्दन और उदर की पेशियां भी सहायता करती हैं।

फेफड़े श्वसन तंत्र के अत्यंत महत्त्वपूर्ण अंग है। ये वक्ष-गुहा की मध्य रेखा (Middle Line of Thoracic Cavity) के दोनों ओर स्थित होते हैं। दायां फेफड़ा बाएं फेफड़े से कुछ बड़ा होता है। ये स्पंजी होते हैं और प्रत्येक फेफड़ा एक दोहरी झिल्ली के बने थैले में सुरक्षित रहता है, जिसे फुफ्फुसावरण (Pleura) कहते हैं। फेफड़ों में लाखों कोशिकाएं होती हैं। ये हृदय से आए हुए अशुद्ध रक्त को श्वसन क्रिया में आई हुई ऑक्सीजन से शुद्ध करते हैं तथा रक्त में घुली हुई कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालते हैं। रक्त की शुद्धि के बाद उसे पुनः हृदय को वापस भेज देते हैं।

श्वसन क्रिया का नियंत्रण मस्तिष्क के शवसन केंद्र द्वारा स्वाभाविक रूप से होता रहता है। यह केंद्र रक्त में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड के प्रति संवेदनशील होता है। जैसे ही रक्त में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है, यह केंद्र अधिक बार सांस लेने के लिए संदेश भेजने लगता है और हमारी सांस दर बढ़ जाती है।

मनुष्य में श्वसनांग

श्वसन तंत्र के अंतर्गत वे सभी अंग आते हैं जिससे होकर वायु का आदान-प्रदान होता है जैसे- नासिका, ग्रसनी, लैरिंग्स, ट्रेकिया, ब्रोंकाई एवं बैक्रियोल्स और फेफड़े।

नासिका: नासिका-छिद्रों में वायु (O2) प्रवेश करती है। नासिका छिद्रों के भीतर रोम या बाल होते हैं, जो धूल के कण तथा सूक्ष्मजीवों को शरीर में प्रवेश करने से रोकता है।

नासिका: छिद्रों की गुहा म्यूकस कला (Mircus membrane) से स्तरित होती है, जो म्यूकस स्रावित कर वायु को नम बनाती है।

ग्रसनी (Pharynx): वायु नासिका-छिद्रों से ग्रसनी में आती है। इसकी पाश्र्व भित्ति में मध्यकर्ण की यूस्टेकियन नलिका (Eustachian tube) भी खुलती है।

लैरिंग्स (Larynx): इसे स्वर-यंत्र भी कहते हैं। इसका मुख्य कार्य ध्वनि उत्पादन करना है। श्वासनली का ऊपरी सिरा एक छोटे छिद्र के द्वारा ग्रसनी से जुड़ा होता है जिसे ग्लाटिस कहते हैं, ग्लाटिस एक कपाट द्वारा बंद होता है। इसे इपिग्लाटिस (Epiglatis) कहते हैं। यह ग्लाटिस द्वार को बंद करके भोजन को श्वासनली में जाने से रोकती है।

ट्रैकिया (Trachea): यह वक्ष गुहा में होती है। यहाँ यह दो शाखाओं में बँट जाती है-इसमें से एक दायें फेफड़े में तथा एक बायें फेफड़े में जाकर फिर शाखाओं में विभक्त हो जाती है।

ब्रोंकाई: ट्रैकिया, वक्षीय गुहा में जाकर दो भागों में बँट जाती हैं, जिसे ब्रोंकाई कहते हैं।

फेफड़े (Lung): यह वक्ष गुहा में एक जोड़ी अंग है जिसका आधार डायाफ्राम पर टिका रहता है। प्रत्येक फेफड़े में करोड़ों एल्वियोलाई (Alveoli) होते हैं।

प्रत्येक फेफड़ा एक झिल्ली द्वारा घिरा रहता है जिसे प्लूरल मेम्ब्रेन (Pleural membrane) कहते’ हैं, जिसमें द्रव भरा होता है जो फेफड़ों की रक्षा करती है।

मानव में श्वासोच्छवास की विधि

इसे फुफ्फुस संवातन भी कहते हैं। यह प्रक्रिया दो उपचरणों में विभाजित है:

अंत:शवसन

अंत:श्वसन के दौरान डायफ्राम की अरीय मांसपेशियाँ तथा बाह्य अन्तरापर्शुक पेशी सिकुड़ती हैं।

इसके कारण डायफ्राम उदर की ओर झुक जाता है और फुफ्फुस में वायुदाब कम होने लगता है, इसलिए वायु, वातावरण से नासिका द्वारा फेफड़ों में प्रवेश करती है।

इस प्रकार अंत:श्वसन में फुफ्फुस के भीतर वायु का आना उसके भीतर के वायुदाब पर निर्भर करता है।

निःश्वसन

नि:श्वसन के दौरान डायाफ्राम की आरीय पेशियों में तथा अन्तः अन्तरापर्शुक पेशियों में शिथलन होती है, जिसके कारण डायाफ्राम वक्ष की ओर ऊपर उठता है और वक्षीय भिति भीतर की ओर गति करती है। इससे फुफ्फुस में वायुदाब अधिक हो जाता है और फेफड़ों से वायु नासिका से होती हुई बाहर चली जाती है।

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