English, asked by nolaggamerz2070, 1 month ago

dentify these sentences as simple (S), complex (C), compound (CO) or complex-compound (CC).
1. We cycled through the mustard fields all day long.

2. Veena paints beautiful landscapes and she is holding an exhibition on Friday.

3. As Pulak was busy preparing for his examinations, he did not have time to see the latest Star Wars movie.

4. This banana and walnut bread is homemade.

5. The dogs woke us up with their barking soon after midnight and when we went to check on them, we realised that burglars had entered our compound.

6. Although the jewellery was expensive, it was not of very good quality.

7. My mother did not offer any money to the man, because she did not believe his story of having lost his wallet.

8. I had hoped to finish the physics project on Saturday, but I was unable to, as there were guests at home.

9. We had forgotten Rai’s birthday, but we made up for it when we paid her a surprise visit the next day.

10. After watching the film, my mother was moved to tears

Answers

Answered by jagvirdangi2
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Explanation:

जीवन एक तरह से युद्ध के समान होता है इस जीवनरूपी नैया में समय समय पर परेशानियां भी आती रहती हैं। समय समय पर विभिन्न विपत्तियां आती हैं। इन विपत्तियों में हमें अपनों की पहचान हो पाती है। दुख मुसीबत में ही परम मित्र की सत्यता का प्रमाण मिलता है। किसी ने यहां तक कहा है कि सच्चा प्यार तो भी मिल जाता है लेकिन सच्चा मित्र मिलना बहुत मुश्किल है। कौन हमारा अच्छा मित्र है जो सदैव हमारे हित के बारे में ही सोचता है और कौन हमारा बुरा मित्र है, इसकी पहचान होना अति आवश्यक है। अच्छे मित्र के बारे में श्रीरामचरितमानस में जिक्र किया है। आइए आज हम आपको श्रीरामचरितमानस की मित्र की पहचान आधारित कुछ बेहतरीन सूक्तियों के बारे में बताएंगे जिनसे हमें सच्चे मित्र के लक्षण के बारे में पता चलेगा।

1/5 मित्र के दुख से होता है दुख

जे ना मित्र दुःख होहिं । बिलोकत पातक भारी ॥

निज दुःख गिरी संक राज करी जाना। मित्रक दुःख राज मेरु समाना ॥

रामचरितमानस की यह चौपाई कहती है कि जो मनुष्य अपने मित्र के कष्ट को अपना कष्ट या दुख नहीं समझता है, ऐसे लोगों को देखने मात्र से पाप लगता है। कहने का अर्थ है कि ऐसे लोगों से सदैव दूरी बनाए रखनी चाहिए। इसके साथ ही जो व्यक्ति अपने बड़े से बड़े दुख को धूल की तरह मानता है वहीं मित्र के धूल के जैसे कष्ट को किसी पहाड़ की तरह मानता है, असल में वही सच्चा मित्र है।

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2/5 गलत काम करने से रोके

जिन्ह के असी मति सहज ना आई। ते सठ कत हठी करत मिताई ॥

कुपथ निवारी सुपंथ चलावा । गुण प्रगटे अव्गुनन्ही दुरावा ॥

रामचरितमानस के अनुसार, जो लोग स्वाभाव से कम बुद्धि के होते हैं, मूर्ख होते हैं ऐसे लोगों को आगे बढ़कर कभी किसी के साथ मित्रता नहीं करनी चाहिए। एक अच्छा मित्र बनने के लिए एक समझदार इंसान होना भी आवश्यक है क्योंकि ऐसा कहने के पीछे आशय है कि एक सच्चे मित्र का धर्म होता है कि वह अपने मित्र को गलत और अनैतिक कार्य करने से रोके। साथ ही उसे सही रास्ते पर जाने के लिए प्रेरित करे और उसके गुणों को निखार कर सामने लाने में मदद करे और बुरी आदतों पर विराम लगाते हुए उसे सबके सामने आने से रोकने में भी साथ दे।

3/5 विपत्ति में निभाए साथ

देत लेत मन संक न धरई । बल अनुमान सदा हित कराई ॥

विपत्ति काल कर सतगुन नेहा। श्रुति का संत मित्र गुण एहा ॥

रामचरितमानस की इस चौपाई के अनुसार, किसी मनुष्य के पास चाहे कितनी भी धन-दौलत हो लेकिन अगर वह जरूरत के समय उसके मित्र के काम न आए तो व्यर्थ है। इसलिए हर मनुष्य को अपनी क्षमता अनुसार, अपने मित्र की सहायता बुरे समय में अवश्य करनी चाहिए। एक अच्छे और सच्चे मित्र की पहचान यही है कि वह दुख मुसीबत में जो भी बन पड़े अपने दोस्त की मदद के समय तत्पर रहे। वेदों और शास्त्रों में भी कहा गया है कि विपत्ति के और अधिक स्नेह करने वाला ही सच्चा मित्र होता है।

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4/5 मुंहदेखा व्यवहार न करें

आगे कह मृदु वचन बनाई। पाछे अनहित मन कुटिलाई ॥

जाकर चित अहि गति सम भाई । अस कुमित्र परिहरेहीं भलाई ॥

इस चौपाई के अनुसार, ऐसा मनुष्य जो सामने पड़ने पर तो मीठी-मीठी बात करें हमारी भलाई की बात कहे लेकिन पीठ पीछे भर भर कर बुराई करे तो ऐसे मित्र का साथ छोड़ना ही बेहतर है। एक सच्चा दोस्त वही होता है जो जैसा हमारे पीठ पीछे व्यवहार करे वैसा ही हमारे सामने मुंहदेखा व्यवहार करने वाले लोगों से दोस्ती करना घाटे का सौदा होता है। इसी तरह जिसका मन सांप की चाल के समान टेढ़ा प्रतीत हो यानी जो मन में आपके प्रति कुटिल विचार, बुरा विचार रखता है हो वह दोस्त नहीं कुमित्र होता है। ऐसे लोगों को अपने जीवन से निकालने में ही भलाई है।

5/5 छल-कपटी न हो

सेवक सठ , नृप कृपन , कुनारी, कपटी मित्र सुल सम चारी

यह चौपाई कहती है कि जिस तरह एक इंसान को मूर्ख सेवक, कंजूस राजा , कुलटा स्त्री से खतरा होता है वैसे ही एक कपटी मित्र भी जीवन में किसी खतरे से कम नहीं होता है। ये चारों ही शूल(कांटे) के सामान होते हैं, इनसे बचना चाहिए। जिस तरह कपटी मनुष्य धोखा देकर हृदय को दुखी करता है उसी तरह कपटी मित्र भी हमारे साथ छलावा कर सकता है। जिससे हमें नुकसान पहुंच सकता है। इसलिए हमें सतर्क रहते हुए इन सभी प्रकृति के लोगों से दूर रहना चाहिए। कोशिश करनी चाहिए मित्र के साथ सदैव विश्वासपूर्ण रिश्ते का निर्वाहन करें ऐसा कोई कृत्य न करें जिससे हमारे दोस्त को दुख या ठेस पहुंचे।

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