descrptive essay on ek hawai yatra
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गर्मी की छुटियों में मुंबई जाने का प्रोग्राम बना तो मैं ख़ुशी से झूम उठा। जिस दिन विमान यात्रा करनी थी उस दिन जल्दी से उठ एक सूटकेस में अपना सामान बांध और हाथ में एक छोटा केबिन बैग लेकर मैं हवाई अड्डे पहुंचा। भव्य ईमारत, प्रवेश द्वार के बाहर खड़ी गाड़ियों की लाइन। एक ट्राली में सामान भर मैं अंदर दाखिल हुआ। विमान वाहक के काउंटर पर सूटकेस देकर और अपना बोर्डिंग पास ले मैं सुरक्षा जांच की लाइन में लग गया।
मेरी और मेरे हाथ बैग की जाँच के बाद मुझे दुसरे हॉल में भेज दिया गया। इस हॉल में तो मानो एक बाजार सा लगा हुआ था। खाने पीने से लेकर बैग और पेन तक खरीदने के स्टाल लगे थे। कुछ देर बाद मेरी उड़ान के जाने की घोषणा हुई और फिर एक बार सुरक्षा जांच के बाद हमें बस में बिठा विमान में पहुँचाया गया। विमान के प्रवेश द्वार पर एयर होस्टेस ने मेरा स्वागत किया। जब विमान के सब द्वार बंद कर दिए गए और जहाज चलने लगा तो एयर होस्टेस ने सुरक्षा सावधानियों का खूबसूरत व्याख्यान किया।
पायलट ने उड़ान भरने की चेतावनी देते हुए तेज रफ़्तार से हवाई मार्ग पर विमान को दौड़ाते हुए हवा में उड़ान भर ले। डर तो लगा मगर खिड़की से बाहर बादलों को इतने पास देख हैरत भी हुई। बस उन्ही बादलों को देखते हुए शांत मन से बैठे थे कि एयर होस्टेस खाने की ट्रे ले आयी और मैंने स्वादिष्ट नाश्ता किया। अभी नाश्ता ख़तम ही हुआ था कि विमान के गंतव्य शहर में उतरने की सूचना पायलट ने कर दी। नीचे आते हुए मैंने बादलों को विदा कहा और विमान नए शहर के हवाई अड्डे पर उत्तर गया। अपना सामान ले मैं बहार निकला और टैक्सी में बैठ निकल पड़ा।
यह मेरे लिए एक यादगार यात्रा थी।
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