Hindi, asked by suryamps7570, 1 year ago

Desh bhakt ke upar ak choti kahani

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Answered by shikha615
0

Answer:

Desh bhakti he insaan me honi chahiye.


priyanshu7777: hi
Answered by ZEUSOVERPOWERED
3

Answer:

hey mate here is answer don't forget to mark it as brainlist and please follow me

Explanation:

बात प्रथम स्वाधीनता संग्राम की है. झांसी के राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो चुकी थी.

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई अकेले हीं, अंग्रेजों का सामना करने के लिए तैयार थी.

लेकिन उनके पास पर्याप्त धन नहीं था, जिससे वो विशाल सेना का निर्माण कर सके.

और अपनी सेना के लिए ज्यादा हथियारों की व्यवस्था कर सके. रानी ने झांसी के सभी

धनाढ्य लोगों और व्यापारियों को अपने दरबार में बुलाया. और उनके सामने अपनी समस्या

बताई तथा उनसे आर्थिक सहयोग मांगा. वे सभी व्यापारी और धनाढ्य लोग अपने अपने घर चले गए.

उनमें से कुछ लोगों ने रानी को सहयोग देने का निश्चय किया. ज्यादातर दूसरे लोगों ने रानी की बजाए

अंग्रेजों के पक्ष का सहयोग करना बेहतर समझा. क्योंकि अंग्रेज ज्यादा मजबूत थे और उन्होंने अपने

सहयोगियो को इस बात का आश्वासन दिया था कि वे अपने सहयोगियों से उनका धन नहीं छीनेंगे.

और इसका नतीजा यह हुआ कि रानी लक्ष्मीबाई ना तो अपनी सेना का आकार है ही बढ़ा पाई और

ना रानी की सेना बहुत ज्यादा हथियारों से युक्त हो पाई.

जब रानी लक्ष्मीबाई और उनकी सेना की लड़ाई अंग्रेजों से शुरू हुई, तो उन्होंने अंग्रेजों से वीरता से लड़ाई लड़ी.

लेकिन छोटी और कमजोर सेना अंग्रेजों से पराजित हो गई. रानी लक्ष्मीबाई भी बुरी तरह से हो गए घायल हो गई.

घायल रानी को उनके कुछ वफादार सैनिक बैलगाड़ी से युद्ध क्षेत्र से दूर एक झोपड़ी में ले गए. रानी को अपनी

मृत्यु का एहसास हो चुका था, रानी ने कहा मेरी मृत्यु के बाद झोपड़ी के साथ ही मुझे जला देना.

ताकि मरने के बाद भी अंग्रेज मेरी लाश को भी हाथ ना लगा सके. रानी वीरगति को प्राप्त हुई.

रानी के कहे अनुसार, उसे झोपड़ी के साथ रानी की चिता जला दी गई. युद्ध में झांसी की हार हुई और

अंग्रेजों ने झांसी पर कब्जा कर लिया. अगर उन धनाढ्य लोगों ने लक्ष्मीबाई की मदद की होती है,

तो अंग्रेज हार जाते. और प्रथम स्वाधीनता संग्राम का परिणाम कुछ और ही होता.

Moral message of the story :

अगर आप खुद देश के लिए अपनी जान दांव पर नहीं लगा सकते हैं,

तो उन लोगों की मदद कीजिए जो देश के लिए मरने के लिए तैयार है. आप धन संपन्न या शक्ति संपन्न है,

तो आपकी निष्ठा अपने देश के प्रति होनी चाहिए. अन्यथा आप खुद को सुरक्षित रखने के चक्कर में अपने

देश से गद्दारी कर बैठेंगे. अगर देश सुरक्षित रहता है, तो आप फिर से धन कमा लेंगे. लेकिन अगर देश

विदेशी आक्रमणकारियों या बुरे लोगो के चंगुल में फस जाता है. तो आपकी संस्कृति और परंपराएं दूषित

हो जाएंगी. और आने वाली कई पीढ़ियों गुलामी की मानसिकता से विकृत हो जाएंगी

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