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नमक का कर्ज
चारों ओर से धमाकों की आवाज ऐसे आ रही थी, मानो दीपावली हो। पर यह पटाखों की नहीं बल्कि हथगोलों और बंदूकों की आवाजें थीं । दस वर्षीय टीपू अपनी अंधी दीदी से चिपक कर सोने की कोशिश कर रहा था। जब कभी बमबारी नहीं हो रही होती, तो वह चैन से अपनी दीदी के साथ सोता।
एक दिन दादी ने कहा, टीपू, मुझे यह लकड़ियां कुछ सीली मालूम पड़ रही हैं, जरा पास में ही जाकर कुछ सूखी टहनियां ले आना।” टीपू यह सुनकर बहुत खुश हो गया। क्योंकि दादी उसे झोंपड़ी के बाहर जाने ही नहीं देती थी। उनकी झोंपड़ी सीमा के नजदीक थी, इसलिए कब बमबारी हो जाएकुछ कहा नहीं जा सकता था।
टीपू झोंपड़ी के पीछे की ओर जाकर टहनियां ढूंढ़ने लगा तो उसे झाड़ियों में कुछ हलचलसी लगी।
वह उस ओर बढ़ा तो उसने देखा कि एक घायल सैनिक पड़ा हुआ था। उसकी वर्दी जगह-जगह से फटी हुई थी और उसके घावों से खून बह रहा था। एक पल का तो वह उस सैनिक का डरावना रूप देखकर डर गयापर दूसरे ही पल उसे अपने पिताजी की याद आ गई। जो उसे हमेशा हिम्मत और बहादुरी से काम करने के लिए कहते। तभी सैनिक ने धीरे से अपनी आंखें खोलीं और टीपू की ओर आशा भरी नजरों से देखकर बोला, “पानी. टीपू ने इधरउधर देखाफिर दौड़कर अपनी झोंपड़ी से एक बर्तन में पानी ले आया।
सैनिक एक ही सांस में सारा पानी गटागट पी गया। पानी पीकर उसी आंखों में चमक आ गई। टीपू ने कहा“वो देखो, सामने मेरी झोंपड़ी है। सैनिक ने यह सुनकर टीपू का नन्हा हाथ थाम लिया और बड़ी ही मुश्किल से लगभग घिसटते हुए किसी तरह झोंपड़ी तक पहुंच गया। अपनी दादी को सैनिक के बारे में बताता हुआ टीपू बोला, “दादी, इनके घावों से बहुत खून बह रहा है।” दादी ने तुरंत जड़ी-बूटियों का काढ़ा बनाकर उसे पिलाया और हल्दी का लेप उसके घावों पर लगा दिया।
फिर उसने जल्दी से खाना बनाकर सैनिक को बड़े प्यार के साथ परोसा।
सैनिक खाने पर टूट पड़ा और उसने चावल का आखिरी दाना तक चट कर डाला। अगले ही पल वह शर्मिन्दा होते हुए बोला, “तीन दिन से मैंने अन्न का दाना भी नहीं खाया था इसलिए खाते समय होश ही नहीं रहा कि आप लोगों के लिए कुछ बचा ही नहीं है।
” यह सुनकर दादी प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली, “तुमसे मिलकर मुझे मेरे बेटे की याद आ गई और अगर बेटा पेट भर के भोजन कर ले तो मां का पेट तो क्या आत्मा तक तृप्त हो जाती है।” कुछ ही दिनों में सैनिक चलने फिरने लायक हो गया। एक दिन टीपू ने पूछा, “अच्छा तो हमारे देश के सैनिक क्या इसी तरह की वर्दी पहनते यह सुनकर उसे प्यार से गले लगा लिया।
सैनिक ने थोड़ी देर बाद पूछा, “तुम्हारे मां पिताजी कहां हैं?” यह सुनकर टीपू बोला-दादी कहती हैं कि सीमा पार से किसी फौजी ने हमारी झोंपड़ी के पास ताबड़तोड़ फायरिंग की थी, जिससे मेरे मांपिताजी भगवान के पास चले गए। यह सुनकर सैनिक को वह मनहूस शाम याद आ गई जब उसने दुश्मनों का जिक्र आते ही गुस्से में फायरिंग शुरू कर दी थी और उसे बाद में पता चला था कि एक पति-पत्नी की उसी में मौत हो गई थी।
अब उसके समझ में आया कि वे दोनों टीपू के ही मा बाप थे। उसकी आंखों से लगातार आंसू बहने लगे। वह अपनी सेना में मेजर था और अब तक ना जाने कितने ही युद्ध देख चुका था, कितनी ही लाशें उसके सामने से गुजरी थीं पर उसकी आंखें कभी नम नहीं हुई थीं।
दादी उसे बड़े ही प्यार से चुप कराने लगी तो वह बोला, “तुमने मेरी इतनी सेवा की पर कभी मुझसे मेरा
नाम तक नहीं पूछा।” यह सुनकर दादी अपने आंसुओं को आंचल से पोंछते हुए बोली, “बेटामुझे तो केवल मेरे मेहमान की चिंता है।”
मेजर ने तभी देखा कि उसके सैनिकों की एक टुकड़ी उस ओर बढ़ी आ रही है। उनमें से एक ने दादी की ओर निशाना साधकर बंदूक चला दी।
मेजर यह देखकर हवा की गति से उनके सामने आ गया। बौखलाए हुए सैनिक दौड़ते हुए उसके पास आ गए। टीपू मेजर के गले लगकर जोर-जोर से रोने लगा। मेजर ने प्यार से उसे चूमाएक लम्बी सिसकारी भरी और दादी के चरणों में अपना सर रखकर बोला, मैंने नमक का कर्ज अदा कर दिया. हो सके तो मुझे माफ कर देना। ”
और यह कहकर मेजर शान्ति से सो गया हमेशा हमेशा के लिए ।
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चारों ओर से धमाकों की आवाज ऐसे आ रही थी, मानो दीपावली हो। पर यह पटाखों की नहीं बल्कि हथगोलों और बंदूकों की आवाजें थीं । दस वर्षीय टीपू अपनी अंधी दीदी से चिपक कर सोने की कोशिश कर रहा था। जब कभी बमबारी नहीं हो रही होती, तो वह चैन से अपनी दीदी के साथ सोता।
एक दिन दादी ने कहा, टीपू, मुझे यह लकड़ियां कुछ सीली मालूम पड़ रही हैं, जरा पास में ही जाकर कुछ सूखी टहनियां ले आना।” टीपू यह सुनकर बहुत खुश हो गया। क्योंकि दादी उसे झोंपड़ी के बाहर जाने ही नहीं देती थी। उनकी झोंपड़ी सीमा के नजदीक थी, इसलिए कब बमबारी हो जाएकुछ कहा नहीं जा सकता था।
टीपू झोंपड़ी के पीछे की ओर जाकर टहनियां ढूंढ़ने लगा तो उसे झाड़ियों में कुछ हलचलसी लगी।
वह उस ओर बढ़ा तो उसने देखा कि एक घायल सैनिक पड़ा हुआ था। उसकी वर्दी जगह-जगह से फटी हुई थी और उसके घावों से खून बह रहा था। एक पल का तो वह उस सैनिक का डरावना रूप देखकर डर गयापर दूसरे ही पल उसे अपने पिताजी की याद आ गई। जो उसे हमेशा हिम्मत और बहादुरी से काम करने के लिए कहते। तभी सैनिक ने धीरे से अपनी आंखें खोलीं और टीपू की ओर आशा भरी नजरों से देखकर बोला, “पानी. टीपू ने इधरउधर देखाफिर दौड़कर अपनी झोंपड़ी से एक बर्तन में पानी ले आया।
सैनिक एक ही सांस में सारा पानी गटागट पी गया। पानी पीकर उसी आंखों में चमक आ गई। टीपू ने कहा“वो देखो, सामने मेरी झोंपड़ी है। सैनिक ने यह सुनकर टीपू का नन्हा हाथ थाम लिया और बड़ी ही मुश्किल से लगभग घिसटते हुए किसी तरह झोंपड़ी तक पहुंच गया। अपनी दादी को सैनिक के बारे में बताता हुआ टीपू बोला, “दादी, इनके घावों से बहुत खून बह रहा है।” दादी ने तुरंत जड़ी-बूटियों का काढ़ा बनाकर उसे पिलाया और हल्दी का लेप उसके घावों पर लगा दिया।
फिर उसने जल्दी से खाना बनाकर सैनिक को बड़े प्यार के साथ परोसा।
सैनिक खाने पर टूट पड़ा और उसने चावल का आखिरी दाना तक चट कर डाला। अगले ही पल वह शर्मिन्दा होते हुए बोला, “तीन दिन से मैंने अन्न का दाना भी नहीं खाया था इसलिए खाते समय होश ही नहीं रहा कि आप लोगों के लिए कुछ बचा ही नहीं है।
” यह सुनकर दादी प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली, “तुमसे मिलकर मुझे मेरे बेटे की याद आ गई और अगर बेटा पेट भर के भोजन कर ले तो मां का पेट तो क्या आत्मा तक तृप्त हो जाती है।” कुछ ही दिनों में सैनिक चलने फिरने लायक हो गया। एक दिन टीपू ने पूछा, “अच्छा तो हमारे देश के सैनिक क्या इसी तरह की वर्दी पहनते यह सुनकर उसे प्यार से गले लगा लिया।
सैनिक ने थोड़ी देर बाद पूछा, “तुम्हारे मां पिताजी कहां हैं?” यह सुनकर टीपू बोला-दादी कहती हैं कि सीमा पार से किसी फौजी ने हमारी झोंपड़ी के पास ताबड़तोड़ फायरिंग की थी, जिससे मेरे मांपिताजी भगवान के पास चले गए। यह सुनकर सैनिक को वह मनहूस शाम याद आ गई जब उसने दुश्मनों का जिक्र आते ही गुस्से में फायरिंग शुरू कर दी थी और उसे बाद में पता चला था कि एक पति-पत्नी की उसी में मौत हो गई थी।
अब उसके समझ में आया कि वे दोनों टीपू के ही मा बाप थे। उसकी आंखों से लगातार आंसू बहने लगे। वह अपनी सेना में मेजर था और अब तक ना जाने कितने ही युद्ध देख चुका था, कितनी ही लाशें उसके सामने से गुजरी थीं पर उसकी आंखें कभी नम नहीं हुई थीं।
दादी उसे बड़े ही प्यार से चुप कराने लगी तो वह बोला, “तुमने मेरी इतनी सेवा की पर कभी मुझसे मेरा
नाम तक नहीं पूछा।” यह सुनकर दादी अपने आंसुओं को आंचल से पोंछते हुए बोली, “बेटामुझे तो केवल मेरे मेहमान की चिंता है।”
मेजर ने तभी देखा कि उसके सैनिकों की एक टुकड़ी उस ओर बढ़ी आ रही है। उनमें से एक ने दादी की ओर निशाना साधकर बंदूक चला दी।
मेजर यह देखकर हवा की गति से उनके सामने आ गया। बौखलाए हुए सैनिक दौड़ते हुए उसके पास आ गए। टीपू मेजर के गले लगकर जोर-जोर से रोने लगा। मेजर ने प्यार से उसे चूमाएक लम्बी सिसकारी भरी और दादी के चरणों में अपना सर रखकर बोला, मैंने नमक का कर्ज अदा कर दिया. हो सके तो मुझे माफ कर देना। ”
और यह कहकर मेजर शान्ति से सो गया हमेशा हमेशा के लिए ।
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