Desh Bhakti se sambandhit Kavita likhiye
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नमस्कार,मेरा नाम है वरुण शुक्ल ,मैं लखनऊ क निवासी हूँ और राज कुमार अन्तर कॉलेज में कछा 9 क छात्र हूँ मुझे कविता लेखन करना पसंद हैं ,मैंने कुछ ही दिवस पूर्व इस मंच के बारे मे जाना इसलिए मैं सर्वप्रथम आपvarun.jpg को ह्रदय से धन्यवाद कहना चाहता हूँ कि आप हम जैसे नए कवियों को एक ऐसा मंच दे रहे हैं जहाँ से हम अपनी भावनाओं को सारे विश्व के सामने रख सकते हैं इसलिए आपका तहे दिल से शुक्रिया ,मैं भी आपसे एक अवसर प्राप्त करना चाहता हूँ की आप मुझे अपनी प्रतिभा दिखाने क अवसर प्रदान करे इसलिए मैं अपनी कविता का टाइप किया हुआ टेक्स्ट आपके दिए गए उचित पते पर भेज रहा हूँ ,आपसे विनम्र करबद्ध निवेदन है कि मुझे एक अवसर प्रदान करे कि मैं अपनी बात लोगों तक पहुचाँ सकूँ और अपनी प्रतिभा को दिखा सकूँ
आपके इस स्वर्णिम अवसर के लिए एक बार पुनः धन्यवाद ,
अभी हाल ही में एक आतंकी हमले में हमारे देश के 40 वीर सपूत अमरता को प्राप्त हुए ,
एक पिता जिसका ह्रदय प्रातः काल से ही व्याकुल हैं वह अपनी व्याकुलता का कारण नहीं समझ पा रहा हैं ,उसे यह नही समझ में आ रहा हैं कि आज उसके चित्त में किस बात की व्याकुलता हैं ,वह अपने ह्रदय के असमंजस को दूर करने के लिए अपने घर के द्वार पर बैठता हैं कि तभी उसे दूर से कुछ आवाज और शोर सुनाई पड़ता हैं , उस पिता का ह्रदय वह शोर सुनकर और भी व्याकुल हो उठता हैं ,जब वह भीड़ उसके पास आती हैं तो तिरंगे में लिपटा एक व्यक्ति उसके समक्ष होता हैं , वह भीड़ उस पिता से कहती हैं ये कोई और नहीं बल्कि तुम्हारा ही पुत्र हैं...
में अपनी कविता के माध्यम से उस मार्मिक दृश्य को जीवंत करने क प्रयाश करता हूँ जब वह पिता अपने पुत्र के पार्थिव शव को देखता हैं ,उस पिता की भावनाओं को मैंने कविता के शब्दों के माध्यम से कहने का प्रयास किया हैं ,वह पिता कहता हैं ...
कविता
मेरे समक्ष ये मातृभूमि के प्रतीक में लिपटा
कौन हैं ?
सकल अंग हैं स्थिर इतने , क्यूँ ये इतना
मौन हैं ?
अरे जिसको कंधे पर आसन दे
समुचा जगत दिखलाया था ,
जिसे शीत रात्रि में शय्या पर चादर
ओढ़ा कर सुलाया था ,
जिसके कोमल कर थामे कभी
चलना सिखाया था ,
जिसे निकट बैठाकर मैंने जीवन का
सत्य बतलाया था ,
आज वहीं वीर सुत मेरा
मृत्युशय्या पर आया हैं ,
रिपुओं का बन काल जिसने
आर्यव्रत का मान बढ़ाया हैं,
पग-पग पर चल संग जिसके
सकल सृष्टी दिखलाई थी ,
जब गर्म पड़ा तन इसका
रातों में माथे पर पट्टी लगाई थी ,
अरे जिसके नेत्रों क आनंद मुझको
जीवन क पथ दर्शाती थी ,
जिसकी तोतली-मधुर बोली मुझसे
आकर बतलाती थी,
आज वहीं रक्त मेरा
मृत्युशय्या पर आया हैं ,
रिपुओं का बन काल जिसने
आर्यव्रत का मान बढ़ाया हैं,
ऐसा पुत्र तू सबको दे ,हे जगदपिता ,
ऐसा सुत तू सबको दे
जिसमे वीरत्व क भाव हो
वह मृत्यु तक करे संहार रिपु का
भले ही तन पर घाव हो ,
जैसे मेरे पुत्र ने आज
शत्रुओं को मार भगाया हैं ,
रिपुओं का बन काल जिसने
आर्यव्रत का मान बढ़ाया हैं...
देख पिता के लोचन में अश्रु
रो पड़ा वो बेटा भी,
देख दुर्दशा इस माटी की
बोल पड़ा वो बेटा भी,
ना तनिक भी है कष्ट कि मैं
मृत्यु को आज प्राप्त हुआ ,
हैं स्वाभिमान इस विषय पर कि मैं
अमरता को प्राप्त हुआ ,
सहश्त्रो जन्म इस भूमि की रक्षा में
संग आनंद मर जाऊँगा ,
ये गोली बड़ी छोटी थी
मस्तक भी काट चढाऊंगा ,
सुनों मॉं भारती के सपूतों
गाथा एक बतलाता हूँ,
किया विष्मृत जिसे विश्व ने
वह इतिहास दोहराता हूँ ,
इसी भूमि में राम-कृष्ण ने
रिपुओं को संहारा हैं ,
इसी धरा पर शिवाजी-राना ने
शत्रुओं को मारा हैं ,
इसी पावन धरती पर वीर
चन्द्र शेखर आज़ाद हुआ,
जिसकी वीरता के कारण
आज आर्यव्रत आज़ाद हुआ ,
उन वीरो ने सकल धरा को अर्थ
आजादी का समझाया,
समय मृत्यु के हम सबको एक
मार्ग दिखलाया,
प्रश्न करो स्वयं से
क्या हम उस मार्ग पर चलते हैं?
अरे बाहर छोड़ो ,भारत के दुश्मन
भारत के भीतर ही पलते हैं ,
सर्वप्रथम पर को छोड़
स्वयं को नियंत्रित करो
जो गहरी निद्रा में हैं
उन सबको जागृत करो ,
जब सारे रक्षक माँ भारती के
एक ताल में कदम बढ़ाएंगे,
तब विश्व तो एक मात्र तिनका हैं
हम चन्द्र पर तिरंगा फहराएंगे....
भारत माता की जय
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