desh ki mati desh ka jal, desh ki hawa desh ke fal , saras bne prabhu saras bne. prastut panktiyon ka sandarbh sahit vyakhya kijiye
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देश की माटी देश का जल , देश की हवा , देश का फल सरस बनें प्रभु सरस बने
संदर्भ : यह पंक्तियाँ देश की माटी देश का जल कविता से ली गई गई है| कविता रबीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखी गई है| कविता में देश के प्रति व देश के लोगों में आपसी एकता, मन से पवित्र होने की ईश्वर से प्रार्थना की गई है|
भावार्थ –
कवि कहते है कि हे ईश्वर हमारे देश की माटी , जल , हवा , वायु हमारे देश की वनस्पति सभी मधुरता , अच्छे से परिपूर्ण हो जाए , हमारी आपसे यही प्रार्थना है| देश में घर , देश के वन के सभी मार्ग सरल हो जाए| सभी का आपस में भाई-चारा का भाव संचार हो जाए यही प्रार्थना है प्रभु|
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