desh ki pragrati me mahilao ka yogdaan
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विश्व की सभी महिलाओं को सम्मान देने के लिए हर वर्ष 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। आज के समय में महिलाएं देश के विकास में पुरुषों के बराबर योगदान कर रही हैं। सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक व धार्मिक क्षेत्रों में आ रही सभी प्रकार की बाधाओं को पार करते हुए वे निरंतर प्रगति की ओर आगे बढ़ रही हैं। वर्ष 1908 में यूरोप की औद्योगिक क्रांति ने पहली बार महिलाओं को बड़े पैमाने पर घर की चहारदीवारी और रसोई घर से बाहर निकाला था। उस समय महिलाएं बड़ी संख्या में फैक्ट्री और कारखानों में 16 से 18 घंटे शारीरिक श्रम करने लगी थीं। कई बार उन्हें सूरज की रोशनी भी नसीब नहीं होती थी। इसके बावजूद पुरुषों के मुकाबले आधा वेतन दिया जाता था।
अधिकतम श्रम और मामूली वेतन ने अमेरिका की करीब 15000 महिलाओं ने काम के घंटे कम करने, बेहतर वेतन और वोट देने का अधिकार पाने हेतु प्रदर्शन किए। नारी संघर्ष के लिए विभिन्न देशों में अलग-अलग अवधि में अनेकानेक प्रयास हुए, किंतु नारी मुक्ति आंदोलन की शुरुआत मुख्यतः ग्रेट ब्रिटेन एवं अमेरिका में हुई। किसी भी देश की सामाजिक स्थिति को वहां की महिलाओं की प्रतिष्ठा और हैसियत से जाना जा सकता है। विश्व के समग्र व यथेष्ट विकास के लिये महिलाओं को विकास की मुख्य धारा में जोड़ना आवश्यक है। नारी की स्थिति समाज में जितनी सुदृढ़ होगी, उतनी ही समाज की उन्नति और समिद्ध होगी। भारतीय समाज के अंदर एक ऐसा वर्ग भी है, जहां रुढ़िवादी नेतृत्व धर्म के नाम पर महिलाओं का शोषण करता है। इस समस्या के निराकरण के लिये महिलाओं को स्वयं शिक्षित होना होगा।
बदलती परिस्थितियों के साथ आज भारत में भी महिलाओं को सशक्त व सबल बनाने के प्रयासों का प्रभाव परिलक्षित हो रहा है। पूर्व की अपेक्षा महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक हिस्सेदारी बढ़ी है। महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाकर न सिर्फ पुरुषां के वर्चस्व को तोड़ा है, अपितु पुरुष प्रधान समाज का ध्यान भी अपनी ओर आकृष्ट किया है। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने महिलाओं के लिए सशक्तिकरण का आधार रखा था। महिलाओं को राजनीतिक क्षेत्र में 73वें एवं 74वें संविधान संशोधन द्वारा देश की पंचायतों एवं जिला परिषदों में उनके लिए तैतिस फीसदी सीटें आरक्षित करने का प्रावधान किया गया। साथ ही छत्तीसगढ़, बिहार, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश तथा राजस्थान जैसे राज्यों में पच्चास फीसदी स्थान आरक्षित कर महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी की ओर एक सराहनीय कदम उठाया गया, परंतु अभी संसद में यह काम होना बाकी है। विश्व के अधिसंख्य देशों में महिलाएं आशातीत प्रगति कर रही हैं। शिक्षा और आर्थिक मजबूती ने बेशक महिलाओं की पहचान बदली है। उनमें पैरों पर खड़े होने का स्वावलंबन प्रस्फुटित हो रहा है। महिलाओं को यह बात अपने दिमाग में बैठानी होगी कि उनकी शक्ति अद्वितीय है। अपने भीतर छिपी प्रतिभा व ऊर्जा को बाहर लाना होगा। समाज में अब काफी खुलापन आ गया है। इसलिए बिना किसी झिझक के महिलाओं को इंसाफ के खातिर अन्याय के खिलाफ खुद की आवाज बुलंद करनी होगी, तभी समाज में बदलाव आ सकता है। आज महिलाओं ने जल, थल ही नहीं अपितु अंतरिक्ष तक पहुंचकर दुनिया को अचिंंभत कर दिया है।
पिछले बीस वर्षों में महिलाओं ने अपने कार्यों से आकाश छुआ है। वेलेंतिना तेरेस्कोवा नाम की रूसी महिला ने जब अंतरिक्ष की यात्रा की और विश्व की प्रथम महिला अंतरिक्ष यात्री होने का कीर्तिमान बनाया, फिर तो पूरी दुनिया में महिलाओं को अंतरिक्ष में भेजने की स्पर्धा चल पड़ी। अलीगढ़ में जन्मी सुमन शर्मा दुनिया की प्रथम ऐसी महिला हैं, जिन्होंने रूसी मिंग हवाई जहाज को उड़ाने का कीर्तिमान स्थापित किया है। मणिपुर के गरीब परिवार से निकली विश्व की श्रेष्ठ जाबाज महिला एवं ओलंपिक कांस्य पदक विजेता बॉक्सर एमसी मेरीकॉम को 2009 में देश के सर्वोच्च खेल पुरस्कार 'राजीव गांधी खेल रत्न' से सम्मानित किया गया है। हरियाणा के हिसार में जन्मी सायना नेहवाल ने तब इतिहास रच दिया, जब ख्याति प्राप्त एशियन सैटेलाइट टूर्नामेंट को दो बार जीता और ऐसा करने वाली पहली खिलाड़ी बनी। एवरेस्ट पर दो बार पहुंचने वाली प्रथम महिला संतोष यादव तथा विकलांग ओलंपिक खिलाड़ी दीपा मलिका ग्रैंड मास्टर तानिया सचदेव और पर्वतारोही, रीना कौशल सहित विभिन्न महिला शख्सियतों ने स्पर्धाओं के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित किए हैं।
देश के सबसे बड़े व प्रमुख भारतीय स्टेट बैंक की चेयरपर्सन अरुंधती भट्टाचार्य इस पद पर पहुंचने वाली प्रथम महिला बनीं। निजी क्षेत्र के भारत के दिग्गज बैंक आईसीआईसीआई की एमडी और सीईओ चंदा कोचर ने पुरुष प्रधान बैंकिग क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। बैकिंग के क्षेत्र में शानदार योगदान के लिए उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है। कॉरर्पारेट जगत् में विश्व की सर्वाधिक शक्तिशाली 50 महिलाओं की सूची में अमेरिका की वाणिज्यिक पत्रिका फार्चून ने फरवरी 2014 के सर्वे में भारतीय मूल की पेप्सिकों प्रमुख व सीईओ इंदिरा नुई को तीसरा तथा चंदा कोचर को 18वां स्थान प्रदान किया है। लेखन के क्षेत्र में भी महिलाएं तेजी से आगे बढ़ रही हैं। इन दिनों स्त्री विमर्श की एक नई आंच परोसती लेखिकाएं नारी मुक्ति का नया व्याकरण गढ़ने में मशगूल हैं।
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अधिकतम श्रम और मामूली वेतन ने अमेरिका की करीब 15000 महिलाओं ने काम के घंटे कम करने, बेहतर वेतन और वोट देने का अधिकार पाने हेतु प्रदर्शन किए। नारी संघर्ष के लिए विभिन्न देशों में अलग-अलग अवधि में अनेकानेक प्रयास हुए, किंतु नारी मुक्ति आंदोलन की शुरुआत मुख्यतः ग्रेट ब्रिटेन एवं अमेरिका में हुई। किसी भी देश की सामाजिक स्थिति को वहां की महिलाओं की प्रतिष्ठा और हैसियत से जाना जा सकता है। विश्व के समग्र व यथेष्ट विकास के लिये महिलाओं को विकास की मुख्य धारा में जोड़ना आवश्यक है। नारी की स्थिति समाज में जितनी सुदृढ़ होगी, उतनी ही समाज की उन्नति और समिद्ध होगी। भारतीय समाज के अंदर एक ऐसा वर्ग भी है, जहां रुढ़िवादी नेतृत्व धर्म के नाम पर महिलाओं का शोषण करता है। इस समस्या के निराकरण के लिये महिलाओं को स्वयं शिक्षित होना होगा।
बदलती परिस्थितियों के साथ आज भारत में भी महिलाओं को सशक्त व सबल बनाने के प्रयासों का प्रभाव परिलक्षित हो रहा है। पूर्व की अपेक्षा महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक हिस्सेदारी बढ़ी है। महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाकर न सिर्फ पुरुषां के वर्चस्व को तोड़ा है, अपितु पुरुष प्रधान समाज का ध्यान भी अपनी ओर आकृष्ट किया है। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने महिलाओं के लिए सशक्तिकरण का आधार रखा था। महिलाओं को राजनीतिक क्षेत्र में 73वें एवं 74वें संविधान संशोधन द्वारा देश की पंचायतों एवं जिला परिषदों में उनके लिए तैतिस फीसदी सीटें आरक्षित करने का प्रावधान किया गया। साथ ही छत्तीसगढ़, बिहार, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश तथा राजस्थान जैसे राज्यों में पच्चास फीसदी स्थान आरक्षित कर महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी की ओर एक सराहनीय कदम उठाया गया, परंतु अभी संसद में यह काम होना बाकी है। विश्व के अधिसंख्य देशों में महिलाएं आशातीत प्रगति कर रही हैं। शिक्षा और आर्थिक मजबूती ने बेशक महिलाओं की पहचान बदली है। उनमें पैरों पर खड़े होने का स्वावलंबन प्रस्फुटित हो रहा है। महिलाओं को यह बात अपने दिमाग में बैठानी होगी कि उनकी शक्ति अद्वितीय है। अपने भीतर छिपी प्रतिभा व ऊर्जा को बाहर लाना होगा। समाज में अब काफी खुलापन आ गया है। इसलिए बिना किसी झिझक के महिलाओं को इंसाफ के खातिर अन्याय के खिलाफ खुद की आवाज बुलंद करनी होगी, तभी समाज में बदलाव आ सकता है। आज महिलाओं ने जल, थल ही नहीं अपितु अंतरिक्ष तक पहुंचकर दुनिया को अचिंंभत कर दिया है।
पिछले बीस वर्षों में महिलाओं ने अपने कार्यों से आकाश छुआ है। वेलेंतिना तेरेस्कोवा नाम की रूसी महिला ने जब अंतरिक्ष की यात्रा की और विश्व की प्रथम महिला अंतरिक्ष यात्री होने का कीर्तिमान बनाया, फिर तो पूरी दुनिया में महिलाओं को अंतरिक्ष में भेजने की स्पर्धा चल पड़ी। अलीगढ़ में जन्मी सुमन शर्मा दुनिया की प्रथम ऐसी महिला हैं, जिन्होंने रूसी मिंग हवाई जहाज को उड़ाने का कीर्तिमान स्थापित किया है। मणिपुर के गरीब परिवार से निकली विश्व की श्रेष्ठ जाबाज महिला एवं ओलंपिक कांस्य पदक विजेता बॉक्सर एमसी मेरीकॉम को 2009 में देश के सर्वोच्च खेल पुरस्कार 'राजीव गांधी खेल रत्न' से सम्मानित किया गया है। हरियाणा के हिसार में जन्मी सायना नेहवाल ने तब इतिहास रच दिया, जब ख्याति प्राप्त एशियन सैटेलाइट टूर्नामेंट को दो बार जीता और ऐसा करने वाली पहली खिलाड़ी बनी। एवरेस्ट पर दो बार पहुंचने वाली प्रथम महिला संतोष यादव तथा विकलांग ओलंपिक खिलाड़ी दीपा मलिका ग्रैंड मास्टर तानिया सचदेव और पर्वतारोही, रीना कौशल सहित विभिन्न महिला शख्सियतों ने स्पर्धाओं के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित किए हैं।
देश के सबसे बड़े व प्रमुख भारतीय स्टेट बैंक की चेयरपर्सन अरुंधती भट्टाचार्य इस पद पर पहुंचने वाली प्रथम महिला बनीं। निजी क्षेत्र के भारत के दिग्गज बैंक आईसीआईसीआई की एमडी और सीईओ चंदा कोचर ने पुरुष प्रधान बैंकिग क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। बैकिंग के क्षेत्र में शानदार योगदान के लिए उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है। कॉरर्पारेट जगत् में विश्व की सर्वाधिक शक्तिशाली 50 महिलाओं की सूची में अमेरिका की वाणिज्यिक पत्रिका फार्चून ने फरवरी 2014 के सर्वे में भारतीय मूल की पेप्सिकों प्रमुख व सीईओ इंदिरा नुई को तीसरा तथा चंदा कोचर को 18वां स्थान प्रदान किया है। लेखन के क्षेत्र में भी महिलाएं तेजी से आगे बढ़ रही हैं। इन दिनों स्त्री विमर्श की एक नई आंच परोसती लेखिकाएं नारी मुक्ति का नया व्याकरण गढ़ने में मशगूल हैं।
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