Desh prem par nibandh
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जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है । वह नर नहीं, नर पशु निरा है और मृतक समान है ।।”
जिस व्यक्ति में देश-प्रेम की भावना का अभाव है और जो अपने देश व अपनी जाति की उन्नति करना अपना धर्म नहीं समझता, उस मनुष्य का जीवन व्यर्थ है । जिस देश में हम पैदा हुए हैं, जिसकी धूल में लोट-लोटकर हम बड़े हुए हैं, जिसका अन्न खाकर हम पले हैं, उसके प्रति हमारा प्रेम होना स्वाभाविक है ।
मातृभूमि तो माता के समान है । जिस प्रकार माता से हमारा अटूट प्रेम होता है उसी प्रकार अपने देश के प्रति हमारा प्रेम अटल होता है । इसीलिए वेद में कहा गया है- ‘नमो मातृ भूम्यै, नमो मातृ भूम्यै ।’ सचमुच माता और जन्मभूमि स्वर्ग से बढ़कर होती हैं । पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्रजी ने भी कहा है:
”जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ।”
मनुष्य ही नहीं वरन् चर-अचर, पशु-पक्षी सभी अपनी मातृभूमि से प्यार करते हैं ।
योगेश्वर श्रीकृष्ण ने इसी भावना से अविभूत होकर कहा है :
”ऊधौ मोहि ब्रज बिसरत नाहिं ।”
जिस व्यक्ति में देश-प्रेम की भावना का अभाव है और जो अपने देश व अपनी जाति की उन्नति करना अपना धर्म नहीं समझता, उस मनुष्य का जीवन व्यर्थ है । जिस देश में हम पैदा हुए हैं, जिसकी धूल में लोट-लोटकर हम बड़े हुए हैं, जिसका अन्न खाकर हम पले हैं, उसके प्रति हमारा प्रेम होना स्वाभाविक है ।
मातृभूमि तो माता के समान है । जिस प्रकार माता से हमारा अटूट प्रेम होता है उसी प्रकार अपने देश के प्रति हमारा प्रेम अटल होता है । इसीलिए वेद में कहा गया है- ‘नमो मातृ भूम्यै, नमो मातृ भूम्यै ।’ सचमुच माता और जन्मभूमि स्वर्ग से बढ़कर होती हैं । पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्रजी ने भी कहा है:
”जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ।”
मनुष्य ही नहीं वरन् चर-अचर, पशु-पक्षी सभी अपनी मातृभूमि से प्यार करते हैं ।
योगेश्वर श्रीकृष्ण ने इसी भावना से अविभूत होकर कहा है :
”ऊधौ मोहि ब्रज बिसरत नाहिं ।”
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